Motivational Story | हेलमेट मैन ऑफ इंडिया राघवेंद्र सिंह | Helmet Man of India | Real Life Hero
Helmet Man Of India In Hindi | कहानी हेलमेट मैन ऑफ इंडिया की।
हेलमेट की आवश्यकता क्यों है?
Helmet Man Raghvendra Story
Helmet Man Raghvendra Story In Hindi
Sadak Durghatna Aur Helmet Man Ki Kahani
भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं और उससे होने वाली मौत के आकड़े चौकाने वाले हैं। साल 2022 में कुल 4 लाख 61 हजार से ज्यादा सड़क हादसे हुए। जिनमें 1 लाख 68 हजार लोगों की मौत हो गई। सड़क हादसे में सिर्फ एक इंसान की मौत नही होती है बल्कि कोई अपने भाई को खोता है, कोई पिता तो कोई अपना बेटा खोता है। सड़क दुर्घटना के दौरान दो पहिया वाहनों से मरने वालों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग होते हैं जिन्होंने हेलमेट नही लगाया होता। ऐसे ही एक सड़क हादसे में अपने मित्र को खोने के बाद राघवेन्द्र कुमार को समझ आया कि हेलमेट को लेकर लोगों को जागरूक करने की कितनी जरूरत है और फिर उन्होंने इसे ही अपने जीवन का मिशन बना लिया। आज राघवेन्द्र कुमार को लोग Helmat Man Of India के नाम से जानते हैं।
दर्द को बनाया अपने जीवन का मिशन
बिहार के रहने वाले राघवेन्द्र तमाम सपने लेकर 2009 में दिल्ली पहुंचे। राघवेन्द्र दिल्ली में लॉ की पढाई कर रहे थे जहां उनकी मुलाकात हुई बिहार के ही रहने वाले कृष्ण कुमार से। कृष्ण कुमार अपने माता पिता का एक लौता बेटा था और देखते-देखते राघवेन्द्र को कृष्ण कुमार के रूप में न सिर्फ अपना अच्छा दोस्त बल्कि छोटा भाई भी मिल गया। लेकिन 2014 में एक ऐसी घटना घटी कि राघवेन्द्र की जीवन की दिशा ही बदल गयी जब ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे जोकि तब नया नया बना था उनके भाई समान दोस्त कृष्ण कुमार की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गयी। राघवेन्द्र बताते हैं कि उनके दोस्त ने हेलमेट नहीं लगाया था, हेड इंजरी होने के कारण चार घंटे सड़क पर तड़पता रहा फिर किसी तरह अस्पताल पहुंचा। घर वालों और राघवेन्द्र को एक आस थी कि किसी तरह उनके दोस्त की जिंदगी बच जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 10 दिनों के बाद एक परिवार ने कई मन्नतों के बाद मिले अपने एकलौते बेटे और राघवेन्द्र ने अपने दोस्त को खो दिया। राघवेन्द्र ने अपने इस दर्द को अपने जीवन का मिशन बना लिया और अपने सर पर हेलमेट पहन कर उन्होंने ठाना कि अब किसी को बिना हेलमेट गाडी नहीं चलाने देंगे।
सड़कों पर मुफ्त में बांटे हेलमेट
राघवेन्द्र कहते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों के बेहतर जीवन के लिए उन्हें जूते, कपडे, बाइक आदि देते हैं लेकिन घर से निकलते हुए उन्हें हेलमेट या उसके बारे में जानकारी नहीं देते कि ये कितना जरुरी है। उन्होंने इसी को अपना मिशन बनाया कि वो सड़क पर चलने वाले लोगों को तो हेलमेट के लिए जागरूक करेंगे ही बल्कि उन्हें मुफ्त में हेलमेट भी देंगे ताकि कोई और माता-पिता इस तरह अपने बेटे को न खोये। राघवेन्द्र अपने इस मिशन के तहत अभी तक 22 से अधिक राज्यों में 60 हजार से अधिक हेलमेट सड़क पर बाट चुके हैं जिसमें से 35 लोगों की जान वो अब तक बचा चुके हैं जो रोड एक्सिडेंट में उनके दिए हेलमेट पहने होने के कारण बच गए।
अभियान को वो एक युद्ध की तरह देखते हैं
राघवेन्द्र ने अपने खर्चे पर ही मुफ्त में हेलमेट बाटने और सड़क पर बिना हेलमेट पहने बाइक सवारों को समझाने की ठानी। वो कहते हैं कि इस अभियान को वो एक युद्ध की तरह देखते हैं क्योंकि जितनी बड़ी संख्या में लोग पहले युद्ध में अपनी जान देते थे हमारे देश में आज के समय में उतने सड़क हादसों में मारे जाते हैं। इस सफर में उन्हें न सिर्फ अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा बल्कि उन्हें अपना नोएडा स्थित घर भी बेचना पड़ा लेकिन राघवेन्द्र ने हार नहीं मानी। वो बताते हैं कि इसमें उनके परिवार और उनके दोस्तों ने पूरा साथ दिया जिससे उन्हें अपने अभियान के लिए मोटिवेशन भी मिलता रहा। उन्होंने बताया कि जब पहली बार बिहार में एक दुकान से एक लाख 84 हजार के हेलमेट खरीदे तो दुकानदार भी सदमें में आ गया लेकिन जब उसे इतनी बड़ी संख्या में हेलमेट खरीदने का कारण पता चला तो उसने राघवेन्द्र की फोटो अपने दुकान में लगाई।
Helmat Man Foundation
उत्तराखंड सरकार ने राघवेन्द्र को रोड सेफ्टी का ब्रांड एम्बेसडर बनाया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और कई राज्य की सरकारें उनकी तारीफ तो करती है लेकिन उन्हें सिर्फ तारीफ नहीं बल्कि सहायता भी चाहिए। उन्होंने बताया लेकिन इस सफर में ऐसे कई परिवार सहायता के लिए आगे आये जिन्होंने सड़क दुर्घटना में किसी अपने को खोया था। राघवेन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट से 4 साल के बच्चे का हेलमेट को लेकर एक कानून भी पास करवाया है और वो माता-पिता को बाइक पर बच्चों को हेलमेट पहनाने को लेकर जागरूक भी करते हैं जिसके तहत वो कई कैंप भी लगाते हैं। हाल ही में उन्होंने Helmat Man Foundation नाम की संस्था बनायी है। जिसके तहत हेलमेट बैंक के जरिये वो स्कूल कॉलेज में जागरूकता फैलते हैं। साथ ही इस वेबसाइट के जरिये लोग राज्य और केंद्र सरकार की सड़क सुरक्षा और दुर्घटना के मुआवज़े की राशि आदि से संबंधित जानकारी भी ले सकते हैं।
देश-विदेश में मिली सराहना
राघवेन्द्र ने इस अपने इस अभियान में सुरक्षा के साथ में शिक्षा को शामिल किया। जिसके तहत वो पुस्तकों के बदले में हेलमेट देते हैं और इन पुस्तकों को गरीब बच्चों तक पहुंचाते हैं। इसका विचार भी राघवेन्द्र को तब आया जब उनके दोस्त की दान की हुई पुस्तकों से पढ़कर एक बच्चे ने टॉप किया। अभी तक राघवेन्द्र 12 लाख बच्चों तक पुस्तकें पहुंचा चुके हैं। कई तरह के कैंप लगाकर वो ऐसे बच्चों तक किताबे पहुंचाने का काम कर रहे हैं जिन्हे इनकी जरुरत है। राघवेन्द्र के इन प्रयासों के लिए उनकी काफी सराहना की जा रही है। बड़े-बड़े मंचों पर जा कर अपनी प्रेरणा से भरी कहानी ये हेलमेट मैन सुना चुके हैं। आज शायद ही कोई हो जो हेलमेट मैन यानी राघवेन्द्र और उनकी कहानी को जानता न हो।
वैसे तो राघवेन्द्र को उनके इस काम और प्रयासों के लिए कई अवार्ड मिले हैं लेकिन वो बताते हैं कि आज उन्हें पूरा भारत ही अपने परिवार जैसा लगता है और उनके सारे संघर्ष और प्रयास सार्थक लगते हैं जब देश के साथ ही साथ विदेशों से भी लोग आकर उनकी सराहना करते हैं और उन्हें Helmat Man Of India कह कर बुलाते हैं।