ब्रिक्स से भारतीय जानकारों को बहुत उम्मीद

बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। ब्रिक्स सम्मेलन में भारत और चीन ने हर बार समझदारी का परिचय दिया है। दोनों देश द्विपक्षीय मसलों को उठाने से बचते रहे हैं। यही वजह है कि ब्रिक्स से भारतीय जानकारों को बहुत उम्मीद है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में वरिष्ठ शोधार्थी विकास आनंद का कहना है कि ब्रिक्स से उम्मीद लगाने की वजह भारत-चीन ही नहीं, बाकी सभी सदस्य देशों मसलन ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और रूस ने इस मंच पर कभी द्विपक्षीय मसलों को नहीं उठाया।
ब्रिक्स से भारतीय जानकारों को बहुत उम्मीद
ब्रिक्स से भारतीय जानकारों को बहुत उम्मीद बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। ब्रिक्स सम्मेलन में भारत और चीन ने हर बार समझदारी का परिचय दिया है। दोनों देश द्विपक्षीय मसलों को उठाने से बचते रहे हैं। यही वजह है कि ब्रिक्स से भारतीय जानकारों को बहुत उम्मीद है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में वरिष्ठ शोधार्थी विकास आनंद का कहना है कि ब्रिक्स से उम्मीद लगाने की वजह भारत-चीन ही नहीं, बाकी सभी सदस्य देशों मसलन ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और रूस ने इस मंच पर कभी द्विपक्षीय मसलों को नहीं उठाया।

विकास आनंद कहते हैं कि यह ठीक है कि सीमा को लेकर भारत और चीन के बीच कुछ विवाद है। लेकिन इस मसले पर दोनों ही देशों ने कभी तीसरे देश को नाक घुसाने का मौका नहीं दिया है। अभी हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का इस सिलसिले में यह कहना है कि सीमा विवाद भारत-चीन का आपसी मसला है और वे खुद इसे सुलझा लेंगे।

विकास आनंद के अनुसार, भारत और चीन के बीच कई मसलों पर सहयोग दिखता है। विकास आनंद के मुताबिक, आज के दौर में चीन सबसे ज्यादा चावल भारत से आयात कर रहा है। विकास आनंद का कहना है कि दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते के लिए यह अच्छा संकेत हो सकता है। गौरतलब है कि चीन ने पिछले साल भी भारत से सबसे ज्यादा चावल आयात किया था।

विकास आनंद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का हवाला देते हुए कहते हैं कि इन दोनों संस्थाओं के प्रमुख अक्सर या तो अमेरिकी या फिर ताकतवर यूरोपीय देशों का व्यक्ति होता है। इसलिए यहां विकासशील देशों की बात कम ही सुनी जाती है। ब्रिक्स इन मायनों में अलग है, इसलिए यहां विकासशील देशों की आर्थिक जरूरतों पर सहानुभूति पूर्वक सुना जा सकता है। वैसे भी विश्व व्यापार संगठन और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों पर ब्रिक्स देश लगातार एक-दूसरे की आर्थिक जरूरतों के मुताबिक सहयोग करते हैं, इसलिए भी ब्रिक की जरूरत ज्यादा है और इससे उम्मीद भी भरपूर है।

ब्रिक्स की कुछ कमियों की ओर भी विकास आनंद ध्यान दिलाते हैं। विकास के मुताबिक, ब्रिक्स देशों के आपसी व्यापार में अभी चीन का पलड़ा भारी है। ब्रिक्स के आपसी कारोबार में सभी सदस्य देशों को फायदा पहुंच सके, इसके लिए जरूरी है कि इस व्यापार को संतुलित किया जाए। विकास आनंद को उम्मीद है कि ब्रिक्स देश आपसी सहमति से इस मसले का भी माकूल उपाय तलाश लेंगे। ब्रिक्स ने विस्तार की ओर भी कदम बढ़ाया है। इसके लिए प्रस्ताव भी पारित हो चुका है। विकास की नजर में, ऐसा जरूरी भी है। आर्थिक तौर पर एकतरफा झुके दिखती विश्व व्यवस्था को संतुलित करने के लिए ब्रिक्स का आधार बढ़ाया जाना जरूरी है।

(उमेश चतुर्वेदी)

--आईएएनएस

एएनएम

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