बहुपक्षीय प्रणाली के लिए चीन और भारत की भूमिका अहम- प्रो. लोहनी

बीजिंग, 21 जून (आईएएनएस)। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन जल्द ही आयोजित होने वाला है। चीन इस बार के सम्मेलन का मेजबान देश है। ऐसे में इस सम्मेलन से दुनिया को क्या-क्या अपेक्षाएं हैं। कोरोना महामारी और वैश्विक चुनौतियों के इस दौर में ब्रिक्स की भूमिका क्या हो सकती है। इन सभी मुद्दों पर सीएमजी संवाददाता अनिल पांडेय ने बात की चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में फैकल्टी ऑफ आर्ट्स के डीन प्रो. नवीन लोहनी से।
बहुपक्षीय प्रणाली के लिए चीन और भारत की भूमिका अहम- प्रो. लोहनी
बहुपक्षीय प्रणाली के लिए चीन और भारत की भूमिका अहम- प्रो. लोहनी बीजिंग, 21 जून (आईएएनएस)। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन जल्द ही आयोजित होने वाला है। चीन इस बार के सम्मेलन का मेजबान देश है। ऐसे में इस सम्मेलन से दुनिया को क्या-क्या अपेक्षाएं हैं। कोरोना महामारी और वैश्विक चुनौतियों के इस दौर में ब्रिक्स की भूमिका क्या हो सकती है। इन सभी मुद्दों पर सीएमजी संवाददाता अनिल पांडेय ने बात की चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में फैकल्टी ऑफ आर्ट्स के डीन प्रो. नवीन लोहनी से।

बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत, चीन और ब्रिक्स में शामिल अन्य देश कोरोना महामारी की चुनौतियों से मुकाबला करते हुए बहुपक्षीय प्रणाली को सुधारने और मजबूत करने के लिए चर्चा करने जा रहे हैं। पिछली ब्रिक्स बैठक में भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य नेताओं ने जोर दिया था कि वे बहुपक्षीय व्यवस्था को सु²ढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आगामी शिखर सम्मेलन में पिछले सम्मेलन में शामिल कुछ मुद्दों को जोड़ा जा सकता है। जिनमें क्षेत्रीय सहयोग सहित विभिन्न मामलों में इन देशों ने क्या प्रगति हासिल की, इन पर भी चर्चा होगी। जैसा कि हम जानते हैं कि ब्रिक्स व्यवस्था में क्षेत्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने पर कार्य करने पर ध्यान दिया जाता रहा है।

वहीं कोरोना महामारी के बाद ब्रिक्स देश अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने पर ध्यान दे सकते हैं। इनमें रिमोट सेंसिंग को लेकर क्षेत्रीय सहयोग पर जो समझौते हुए थे, उनकी क्या स्थिति है। साथ ही हरित पर्यटन और ब्रिक्स गठबंधन की आगे की रणनीति पर चर्चा। विशेष तौर पर पिछले बार के सम्मेलन में आतंकवाद रोधी कार्ययोजना पर ध्यान दिया गया था। क्योंकि सभी देशों में आतंकवाद संबंधी चुनौतियां मौजूद हैं। इंटरनेट के इस दौर में आतंकी गतिविधियों का मुकाबला कैसे हो, सूचना और खुफिया जानकारी का साझाकरण किस हद तक किया जा सकता है, ताकि संबंधित देशों के बीच विश्वास बढ़े।

इसके साथ ही वैक्सीन उत्पादन और बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर भी इन देशों के बीच एक साल पहले विचार-विमर्श हुआ था।

इसके साथ ही उक्त पांचों देशों में आर्थिक प्रगति, क्षेत्रीय संतुलन, सामूहिक विकास की स्थिति और भविष्य की योजनाओं को लेकर कितनी सफलता हासिल हुई, इस पर भी चर्चा होने की जरूरत है।

कोरोना महामारी के बीच वैश्विक परिस्थिति में चीन व अन्य विकासशील देशों की क्या भूमिका हो सकती है, इसके जवाब में प्रो. लोहनी कहते हैं कि ब्रिक्स की स्थापना के बाद से ही हम इस बात पर चर्चा करते रहे हैं कि हम उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हैं, हाल के वर्षों में हमारी उपलब्धियों में इजाफा भी हुआ है। साल 2009 से लेकर अब तक की समीक्षा की जाएगी तो निश्चित तौर पर ये देश आगे बढ़े हैं, 2010 में दक्षिण अफ्रीका भी इसमें शामिल हुआ। ये देश एक-दूसरे के साथ किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं। हमने देखा है कि कोरोना संकट व आवाजाही के सीमित संसाधनों के बावजूद इनके बीच में आपसी सहयोग और संतुलन मजबूत हुआ है, विशेषकर व्यापारिक क्षेत्र में। ऐसे में कहा जा सकता है कि विश्व की 42 प्रतिशत आबादी वाले ब्रिक्स गठबंधन के बीच सहयोग बढ़ना जरूरी है।

इसके साथ ही 2012 में भारत में आयोजित ब्रिक्स बैठक में कहा गया था कि वैश्विक सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि के लिए ब्रिक्स की भागीदारी। इन देशों ने एक मंच पर आने के साथ-साथ एक-दूसरे का सम्मान, साझेदारी और मजबूती को आगे बढ़ाने पर ध्यान देने की बात कही है। जहां तक चीन के साथ भारत के व्यापार की बात करें तो गत दो वर्षों में इसमें कमी नहीं आयी है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम देख सकते हैं कि चीन ने अपनी स्थिति को मजबूत किया है। अलग-अलग रूपों में उसने वैश्विक राजनीति को प्रभावित किया है।

लेकिन यह बात जरूर है कि भारत व चीन के बीच कुछ अंतर्विरोध और गतिरोध के कारण समस्याएं पेश आयीं। इसके चलते 2020 में राजनयिक संबंध स्थापना के 70 वर्ष पूरे होने पर 70 बड़े कार्यक्रम आयोजित होने वाले थे, अगर ऐसा होता तो संबंध बेहतर होते, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसकी एक वजह कोरोना महामारी रही, जबकि सीमा संबंधी मुद्दे पर तनाव के कारण भी ज्यादा प्रगति नहीं हुई।

पर यह मानना होगा कि ब्रिक्स देशों में चीन की भूमिका बहुत अहम है, क्योंकि चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वह अन्य राष्ट्रों को साथ लेकर चले यह उम्मीद करते हैं।

इसके अलावा कुछ देश बहुपक्षवाद को नकारते हुए एकतरफावाद पर जोर देर रहे हैं। लेकिन प्रो. लोहनी मानते हैं कि शायद ही अब हम पीछे जा सकें, यानी कि वैश्वीकरण की स्थिति से पीछे हटना मुश्किल है। पर महत्वपूर्ण बात यह है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका का जो एकाधिपत्यवाद हुआ था, अब हाल के वर्षों में वह स्थिति नहीं रही है। साथ ही एशिया के देशों को अपनी स्थिति को जानने और समझने का अवसर मिला है। लेकिन भारत ने खुद को अलग तरह से पेश किया है, भारत पहले से कहीं अधिक स्पष्ट तरीके से अपनी बातों को रख पा रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव के बीच भी भारत की विशिष्ट भूमिका सामने आयी है। क्योंकि भारत ने किसी एक देश को महत्व न देते हुए अपनी जरूरतों और आवश्यकताओं के मद्देनजर अपना पक्ष रखा है। एक तरह से वैश्विक राजनीति में यह भारत की बड़ी सफलता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बीच ब्रिक्स देशों में स्वास्थ्य संबंधी सहयोग, समन्वय को बढ़ाने की आवश्यकता है। क्योंकि इन देशों की आबादी ज्यादा है। इस दौरान जब हम क्षेत्रीय आवश्यकताओं व वैश्विक जरूरतों को जोड़कर देखते हैं तो स्वास्थ्य एक बहुत बड़ा मुद्दा है। वर्तमान कोरोना संकट ने यह साबित कर दिया है कि आप अकेले रहते हुए मुश्किलों को हल नहीं कर सकते हैं। यहां बता दें कि इन देशों की जनसंख्या विश्व का कुल 42 फीसदी है, ऐसे में अगर हम आपसी सहयोग बढ़ाते हैं तो निश्चित तौर पर लोगों को बहुत लाभ होगा।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

--आईएएनएस

एएनएम

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