हवा हवाई हवाई यात्रा
air air air travel
Tue, 9 Dec 2025
(सुधाकर आशावादी — विनायक फीचर्स)
पहले हवाई यात्रा करने का मतलब था—सपनों में भी पासपोर्ट दिखाना पड़े। मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के लोग तो सिर्फ ऊपर उड़ते जहाज़ को देखकर ही “उड़ान” का अनुभव ले लेते थे। पर जैसे ही “हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई यात्रा” का नारा बाजार में आया, हवाई जहाज़ अचानक उतना ही सुलभ हो गया जितना वाट्सऐप पर फॉरवर्ड संदेश।
अब आम आदमी समय बचाने के चक्कर में बस और ट्रेन की भीड़ छोड़कर सीधा हवाई टिकट बुक करने लगा है। स्थिति यह कि एयरपोर्ट पर भीड़ देखकर रेलवे प्लेटफॉर्म भी शर्मा जाए! निजी कंपनियों ने हवाई यात्रा को इतना आसान बना दिया है कि मुनाफा कमाना उतना ही कठिन… नहीं नहीं, उतना ही आसान हो गया है।
निजी कंपनी यानी कि व्यापारी की ‘उड़नदुकान’। इनका सिद्धांत—ग्राहक की मजबूरी + मांग-पूर्ति का नियम = दाम बढ़ाओ और मुनाफा उड़ाओ। कर्मचारियों की समस्याएं? अरे भई, वो तो इनकी ‘उड़ान योजना’ में शामिल ही नहीं।
और फिर एक दिन, जैसे रेलवे का इंजन बंद पड़ता है, वैसे ही किसी एयरलाइंस की पूरी व्यवस्था ही रनवे पर बैठ गई। कई उड़ानें रद्द, यात्रियों की उम्मीदें ध्वस्त और एयरपोर्ट का हाल—मेले में खोया बच्चा जैसा। भीड़ ऐसी कि कुर्सियाँ भी अपनी सीटें छोड़कर कहीं और बैठ जाना चाहें। परीक्षा देने निकले होनहार छात्र परीक्षा केंद्र से पहले ही आसमान से बाहर हो गए। महीनों से तय यात्राएँ कागज़ों में रह गईं—हवा हवाई!
अब ये विधि का विधान था, कंपनी की बदइंतज़ामी थी या यात्रियों की किस्मत का ‘टर्बुलेंस’—कोई बताने वाला नहीं। उड़ानें रद्द थीं, पर टिकट बुकिंग वैसी ही जारी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। यात्री परेशान थे, मगर राजनीति खुश थी।
यूट्यूबरों की तो चांदी! मौका मिला नहीं कि तुरन्त सत्ता पर ठीकरा फोड़ने की होड़—
“प्रधानमंत्री खुद रनवे पर जाकर पायलट की सीट पर क्यों नहीं बैठते!?” “सरकार खुद आकर यात्रियों के बैग क्यों नहीं उठाती!?” आपदा में अवसर का इससे सुंदर उदाहरण और क्या होगा!
सियासत का पहला नियम गलती किसी की भी हो, दोष सिर्फ सत्ता का। यही लोकतंत्र का “नो-कॉस्ट कैरी-ऑन बैगेज” है।
घर से लेकर हवाई अड्डे तक, समस्याएँ किसी भी व्यवस्था का हिस्सा हैं। समाधान के प्रयास भी होते हैं, लेकिन त्वरित समाधान की अपेक्षा रखने वाले समाज में हथेली पर सरसों उगाने की चाह बढ़ती जा रही है। ऐसे में जब हवाई यात्रा ही हवा हवाई हो जाए, तो सवाल उठना लाज़मी है आख़िर हवाई यात्रा हवा हवाई क्यों हो गई?
