संघ की प्रेरणा और संस्कारित दृष्टि को साकार करते मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

Chief Minister Dr. Mohan Yadav realizing the inspiration and cultured vision of the Sangh
 
Chief Minister Dr. Mohan Yadav realizing the inspiration and cultured vision of the Sangh

(पवन वर्मा – विनायक फीचर्स)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी यात्रा में मध्यप्रदेश की धार्मिक-सांस्कृतिक नगरी उज्जैन का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है। मालवा क्षेत्र की यह धरती वह स्थान है, जहाँ 1930-40 के दशक में ही संघ कार्य का बीज बोया गया था। भोपाल से लेकर नीमच और इंदौर से मध्यभारत तक संघ के विस्तार में उज्जैन की भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही। डॉक्टर हेडगेवार के आह्वान पर हुए हैदराबाद आंदोलन से लेकर जूनागढ़, दादरा-नगर हवेली और गोवा मुक्ति आंदोलन तक उज्जैन के स्वयंसेवकों ने अपना बलिदान दिया।

इसी उज्जैन की भूमि पर पले-बढ़े और संघ की शाखाओं से संस्कारित हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज गर्व के साथ मुख्यमंत्री रहते हुए भी संघ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। विजयादशमी के अवसर पर भोपाल सहित प्रदेशभर में आरएसएस द्वारा आयोजित शस्त्र पूजन और पथ संचलन कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री स्वयं गणवेश धारण कर, दंड हाथ में लेकर सम्मिलित हुए। सादगीपूर्ण ढंग से पहुंचे मुख्यमंत्री ने परंपरागत शैली में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।

डॉ. यादव का राजनीतिक जीवन संघ की शाखाओं से शुरू होकर विद्यार्थी परिषद तक पहुँचा। वहीं से संगठन, अनुशासन और राष्ट्रभावना का अनुभव प्राप्त कर उन्होंने राजनीति में अपनी पहचान बनाई। आज मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए वे अपने निर्णयों और योजनाओं में संघ की वैचारिक दृष्टि को मूर्त रूप दे रहे हैं।

शिक्षा और संस्कृति में संघ की छाप

डॉ. मोहन यादव की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में ऐसे सुधार किए हैं, जिनसे भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों का समावेश हो सके। विद्यालयों में नैतिक शिक्षा, विश्वविद्यालयों में वैदिक अध्ययन केंद्र और धर्म-दर्शन कक्षाओं की शुरुआत इसका उदाहरण है। यह शिक्षा को केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का माध्यम मानने वाली दृष्टि को दर्शाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में महाकाल लोक का विकास, सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारियाँ, राम वन गमन पथ और श्रीकृष्ण पाथेय जैसी योजनाएँ उनकी सरकार के सांस्कृतिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करती हैं। ये पहल न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर, पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रही हैं।

सामाजिक समरसता और ग्रामोदय

सरकार ने सबका साथ-सबका विकास की नीति को व्यावहारिक रूप दिया है। दलित, पिछड़े, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यक समुदायों के उत्थान हेतु विशेष योजनाएँ लागू की गईं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्वावलंबी बनाने के लिए गौशालाओं का संवर्धन, प्राकृतिक खेती और ग्रामोदय की योजनाएँ चलाई जा रही हैं। आदिवासी जिलों जैसे झाबुआ, धार, मंडला और शहडोल में शिक्षा व स्वास्थ्य नेटवर्क का विस्तार, युवाओं को कौशल विकास से जोड़ना और उनकी संस्कृति का सम्मान करना सरकार की सामाजिक समरसता की दिशा में उठाए गए ठोस कदम हैं।

राष्ट्र चेतना और परंपराओं का सम्मान

युवाओं में राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक चेतना जागृत करने हेतु स्वदेशी अभियान चलाया जा रहा है। इसमें स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का स्मरण, स्थानीय इतिहास का अध्ययन और भारतीय भाषाओं पर बल दिया जा रहा है। इसके साथ ही विक्रमादित्य के आदर्शों को राज्य स्तरीय कार्यक्रमों में स्थान देना और वैदिक घड़ी का सरकारी संस्थानों में प्रयोग शुरू करना भारतीय परंपराओं को सम्मान देने का उदाहरण है।

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