तुलसी जन्मभूमि विवाद  हल कराने सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे डाॅ. शैलेन्द्र 

Dr. Shailendra reached the Supreme Court to resolve the Tulsi Janmabhoomi dispute
Dr. Shailendra reached the Supreme Court to resolve the Tulsi Janmabhoomi dispute
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)अवधी के महाकवि रामचरित मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास की जन्म भूमि संबंधी सदियों से चल रहे विवाद के निराकरण करने के लिए  लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष व शोध निदेशक डा. शैलेन्द्र नाथ मिश्र जनहित याचिका उच्च न्यायालय से लेकर  उच्चतम न्यायालय तक लडाई लड़ रहे हैं। एससी ने  जन्मभूमि का प्रकरण भूमि से जुड़े होने से सक्षम जिला न्यायालय में मामला प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। अब इसे प्रारंभिक रूप से  जनपद न्यायालय में  प्रस्तुत किया जाएगा। 

इस आशय की जानकारी देते हुए शास्त्री महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष व शोध निदेशक डॉ. शैलेन्द्र नाथ मिश्रा ने बताया कि गोस्वामी  की जन्म भूमि किसी एक स्थान पर  घोषित होनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया  कि कोई  व्यक्ति एक ही स्थान पर पैदा होता है।   तुलसी के साहित्य में व्यक्त आत्मकथ्य, प्रमाण एवं भाषा के मानदंडों पर जिस भी पवित्र भूमि को गोस्वामी तुलसीदास की जन्म भूमि  घोषित किया जाए उसे सभी विद्वानों को स्वीकार करना चाहिए। 
  डाॅ. शैलेन्द्र ने समाधान का सुझाव देते हुए कहा कि चित्रकूट कासगंज व गोंडा इन तीनों जनपदों के नागरिकों के अभिमत के द्वारा भी इस समस्या का लोकतांत्रिक समाधान किया जा सकता है। हिंदी विद्वानों के शोध निष्कर्ष से इस समस्या का समाधान सरकार के निर्देशन में किया जा सकता है। सरकार स्वयं कमीशन/ आयोग बनाकर इस समस्या का अंतिम समाधान कर सकती है।

 गोस्वामी तुलसीदास जन्मस्थली खोज संदर्भ में विगत वर्ष आयोजित शोध यात्रा में  कुछ ऐसी जानकारियां प्राप्त हुई है, जिससे लगता है कि साहित्य के इतिहास में स्वार्थवश साजिश की गई है। तुलसीदास की जन्म भूमि के लिए वर्तमान में उपलब्ध तीनों स्थानों में दो स्थान गलत है। कई जनपदों के दावे के बाद अब प्रदेश सरकार  सोरों (कासगंज ) राजापुर (बांदा) सूकरखेत (गोण्डा) को गोस्वामी की जन्मभूमि स्वीकार किया है। जिसे सामान्यत: अंतिम समस्या कहा जा सकता है कि तुलसीदास  इन्हीं तीन जनपदों में से किसी एक जनपद में जन्म लिए होंगे। उच्च अध्ययन में गोस्वामी ।तुलसीदास के जन्म भूमि का प्रकरण विद्वानों/ शोधकों का विषय न रहकर  करोड़ों तुलसी साहित्य प्रेमी रामभक्तों का है। 
 तुलसीदास के सम्मान में हमें अपने जनपदीय मोह का त्याग करना आवश्यक है।  कालजयी गोस्वामी तुलसीदास पूरी दुनिया के हैं और रहेंगे। लेकिन उन्हें उनका जन्म स्थान भी मिलना चाहिए।

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