जीएसटी प्रणाली को और अधिक सरल बनाए जाने की आवश्यकता है: संजय गुप्ता

व्यापारी नेता संजय गुप्ता ने प्रदेश भर के व्यापारियों से जीएसटी की समस्याओं से संबंधित लिए गए फीड बैक के आधार पर तैयार किए गए 20 सूत्रीय मांग पत्र एवं सुझाव पत्र को जीएसटी काउंसिल में भेजने हेतु राज्य कर आयुक्त (वाणिज्यकर) नितिन बंसल को सौपासंगठन अध्यक्ष संजय गुप्ता ने आयुक्त को बताया वर्तमान में जीएसटी के मकडजाल में व्यापारी उलझ गया हैअनेक विसंगतियां को तुरंत दूर करने की आवश्यकता है
जीएसटी की 53वी बैठक में हुए निर्णय का भी नोटिफिकेशन अभी तक जारी नहीं हुआ है उस नोटिफिकेशन को जारी किए जाने की व्यापारी नेता संजय गुप्ता ने मांग की तथा व्यापारियों के मांग पत्र को केंद्रीय वित्त मंत्री एवं जीएसटी परिषद में भेज कर प्रदेश सरकार की ओर से इसको अमल में लाने हेतु प्रदेश सरकार की ओर से व्यापारियों का पक्ष रखने की मांग की प्रतिनिधि मंडल में संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष अविनाश त्रिपाठी, नगर महामंत्री अमित अग्रवाल ,नगर उपाध्यक्ष परवेश जैन, नगर उपाध्यक्ष श्याम सुंदर अग्रवाल, प्रवीण मिश्रा, ट्रांस गोमती अध्यक्ष अनिरुद्ध निगम शामिल थे
ज्ञापन
मांग पत्र /सुझाव पत्र
सेवा में ,
श्री नितिन बंसल जी
राज्य कर आयुक्त
( गुड्स एंड सर्विस टैक्स, उत्तर प्रदेश)
विषय :- जीएसटी परिषद में व्यापारियों की गुड्स एंड सर्विस टैक्स से संबंधित समस्याओं/विसंगतियों के समाधान हेतु मांग/सुझाव भेजने के संबंध मेl
आदरणीय महोदय,
व्यापारियों को गुड्स एंड सर्विस टैक्स प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिसमें से कुछ प्रमुख समस्याएं आपके समक्ष जीएसटी परिषद में भेजने हेतु संदर्भित कर रहे हैl
आपसे विनम्र अनुरोध है कि निम्न समस्याओं/सुझावों एवं मांगों को जीएसटी परिषद में भेज कर संशोधन करवाने की कृपा करें :
(1.) समाधान योजना:-
(क) वर्तमान में गुड्स एंड सर्विस टैक्स प्रणाली के अंतर्गत समाधान योजना की सीमा 1.5 करोड़ रूपए है इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रूपए किए जाने की आवश्यकता है इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा और व्यापारियों को भी सुविधाजनक रहेंगा
(ख). भट्टा व्यवसाय अभी तक समाधान योजना से वंचित हैं जिसे समाधान योजना के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिएl
(ग) CMP 8 में मानवीय भूलवश यदि कोई आंकड़ा गलत प्रेषित हों जाता है तो उसे सुधारने का मौका मिलना चाहिए जिसका प्रावधान फिलहाल उपलब्ध नहीं हैंl
(2.) जीएसटी प्रणाली में एक पक्षीय वाद में वैट अधिनियम की धारा 32 की तरह एक धारा जोड़ी जाए ताकि व्यापारी कर निर्धारण अधिकारी के समक्ष पुनः अपना पक्ष रख सकेl
(3.) जी एस टी में आकस्मिक एवं अनियंत्रित परिस्थितियों जैसे बीमारी, कोर्ट में उपस्थिति, किसी अन्य सरकारी विभाग में उपस्थिति इत्यादि हेतु समय सीमा बढ़ाने का प्रावधान किया जाना चाहिएl
(4.) ऑनलाइन के साथ-साथ रजिस्टर्ड डाक द्वारा नोटिस भेजने का प्रावधान किया जाए ताकि पोर्टल न चलने, इंटरनेट उपलब्ध न होंने या किसी अन्य कारण से अधिवक्ता, अकाउंटेंट या व्यापारी को नोटिस समय पर उपलब्ध न हो पाए तो व्यापारी रजिस्टर्ड नोटिस के आधार पर टैक्सशन प्राधिकारीयों के समक्ष उपस्थित हों सकेंl
(5.) धारा 73 और 16-4 का अभी तक नोटिफिकेशन नहीं आया है यह नोटिफिकेशन शीघ्र जारी किया जाए ताकि 2019-20 की समय सीमा समाप्त होने से पूर्व व्यापारी मूलधन जमा करवा सकेl
(6.) जिन व्यापारियों ने 2017-18, 2018-19 का अर्थ दंड और ब्याज 53वे संशोधन से पूर्व जमा करवा दिया है तो उन्हें उनके कैश लेजर में उक्त धनराशि वापस करने का प्रावधान किया जाना चाहिएl
(7.) विक्रेता व्यापारी ने अपने R1 में यदि क्रेता व्यापारी का बिल समय से अपलोड नहीं किया है तो उसकी ITC क्रेता व्यापारी को अनुमन्य नहीं होती है जो कि प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है, क्योंकि क्रेता व्यापारी द्वारा उक्त बिल का भुगतान मय टैक्स समय पर कर दिया हैl ऐसे में टैक्स भुगतान करने के बावजूद भी क्रेता व्यापारी को आई टी सी के बेनिफिट से वंचित होंने से बचने के लिए जद्दोजहद करनी पडती हैंl संगठन का सुझाव हैं कि विक्रेता व्यापारी से खरीद बिल का स्वीकृत पत्र मांगने की व्यवस्था समाप्त की जानी चाहिएl
(8.) यदि कोई फर्म व्यवसायिक ट्रांसक्शन के समय एक्टिव दिखती है और क्रेता व्यापारी इस आधार पर विक्रेता व्यापारी से क्रय करता है किन्तु बाद में विक्रेता फर्म बोगस या बंद पाई जाती है तो क्रेता व्यापारी को धारा 74 की नोटिस आती है जो की अनुचित है इसमें क्रेता व्यापारी को उत्तरदायी नहीं बनाना चाहिएl
(9.) GST R9 में वार्षिक रिटर्न भरने में मानवीय त्रुटियो को सुधारने का अवसर मिलना चाहिए जो अभी उपलब्ध नहीं हैl
(10.) ऑनलाइन बिलिंग में हुई त्रुटियों को सुधारने का मौका मिलना चाहिएl
( 11.) जिन व्यापारियों का टर्न ओवर 2 करोड़ से ऊपर है यदि उनका वार्षिक रिटर्न नहीं दाखिल हो पाता है, उन पर भारी विलंब शुल्क लगता है जो की नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है वैट अधिनियम की तरह इसमें भी अधिकतम विलंब शुल्क की राशि निश्चित एवं निर्धारित होनी चाहिएl
(12.) सीमेंट पर जीएसटी की दर कम की जानी चाहिए l
(13.) एक व्यापारी को SGST से धारा 73 के अंतर्गत नोटिस आती है, उसी व्यापारी को उसी प्रकरण में CGST से भी धारा 74 की नोटिस आती है जिससे व्यापारी का उत्पीड़न होता है इस विषय पर जिसका क्षेत्राधिकार हो दोनों नोटिसे उसी से आनी चाहिएl
(14.) यदि व्यापारी द्वारा आयकर सीमा में नकद लेनदेन किया है तो क्रय बिल के आधार पर उसकी ITC अनुमन्य होना चाहिए और विक्रेता व्यापारी से स्वीकृत प्रमाण पत्र नहीं मांगा जाना चाहिएl
(15.)SGST, CGST, IGST में अलग-अलग पेनाल्टी लगाई जाती है जो न्यायसंगत नहीं है किसी वित्तीय वर्ष हेतु कोई एक सांकेतिक पेनाल्टी लगाई जानी चाहिएl कठोर कानूनी प्रावधानों के कारण व्यापार जगत में ही भय का वातावरण उत्पन्न हों गया हैं जिसे व्यावहारिक बनाया जाना चाहिएl
(16.) वार्षिक ब्याज की दर वर्तमान में 18% हैं जो बहुत ज्यादा हैं जिसे तुरंत प्रभाव से कम किया जाना चाहिएl पेनल्टी पर भी समान दर से ब्याज लगाया जाता हैंl एक ही ट्रांसक्शन पर पेनल्टी और ब्याज दोनों लगाना अनुचित और कठोर हैंl वैट अधिनियम का सज्ञान लेते हुए नियमों में रियायत दी जानी चाहिएl
(17.) व्यापारी को प्रांत में या प्रांत के बाहर माल खरीदने हेतु जाना पड़ता है ऐसे में यात्रा व्यय जैसे एयर टिकट, होटल बिल पर इत्यादि पर भुगतानित जीएसटी का लाभ व्यापारी को नहीं दिया जाता है जिसे धारा 75 के अंतर्गत रिवर्स कर दिया जाता हैlव्यापारियों को आईटीसी से वंचित नहीं किया जाना चाहिएl
(18.) जीएसटी एक्ट के प्रावधानों का सरलीकरण किया जाना चाहिए जिससे व्यापारी अपने व्यापार पर ज्यादा ध्यान देकर अधिकाधिक टैक्स संग्रह कर जमा करवा सकेंl
(19.) जी एस टी ट्रिब्यूनल को शीघ्र किर्याशील बनाया जाना चाहिएl
(20.) जी एस टी की दर को घटाए जाने पर विचार किया जाना चाहिएl व्यापारी ही नहीं अपितु जनता भी टैक्स की ऊँची दरों से आहत हैंl
वर्तमान माहौल में व्यापारी व्यापार पर पूरा ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा हैं वह नियमों के मकड़जाल में उलझ गया हैं और भारी पेनल्टी और ब्याज के कारण भयग्रस्त हैंl आपसे अनुरोध हैं उपरोक्त बिंदुओं पर आवश्यक कार्यवाही की जानी चाहिएl