History of EVM in India : क्यों Supreme Court को EVM पर लगाना पड़ा था बैन?

Kya EVM Se Bhajpa Ko Fayda Hoga?

evm machine hack case in supreme court

EVM And BJP

Benefits Of EVM Machine

EVM Kaise Kam Karta Hai
 

2024 का लोकसभा चुनाव बेहद करीब है... देश में इन दिनों चुनावी माहौल बना हुआ है... और चुनावी माहौल में ईवीएम पर विपक्ष अपनी छाती न पीट रहा हो, ये तो हो ही नहीं सकता... ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की ख़िलाफत की सबसे बड़ी सूत्रधार है कांग्रेस पार्टी... पिछले कई सालों से जब-जब इस देश में चुनाव आते हैं तो कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में समूचा विपक्ष ईवीएम को अपनी हार का दोष देने लगता है...

ईवीएम क्या है और यह कैसे काम करती है?

दोगलापन ज़रा ये देखिए कि जहां बीजेपी हारती है, वहां ये कहते हैं कि ईवीएम मशीन बिल्कुल सही काम करती है, लेकिन जहां बीजेपी जीतती है वहां ये ईवीएम हैक करने का राग अलापना शुरू कर देते हैं... आपको‌ बता दें कि जिस ईवीएम का विरोध कांग्रेस पार्टी दिन-रात किया करती है, उसको लाने वाली भी वही थी... कब और कैसे? ये हम अपनी इस रिपोर्ट में बताने जा रहे हैं... आज हम जानेंगे ईवीएम की पूरी हिस्ट्री-जियोग्राफी... ईवीएम पर जाने से चलिए पहले समझते हैं कि पहले किस तरह से वोटिंग होती थी...

evm machine pic

पहले दो लोकसभा चुनावों यानी 1952 और 1957 की बात करें तो हर कैंडिडेट को एक अलग बैलट बॉक्स दिया जाता था... इस पर उसका सिंबल चिपका होता था... बैलट पेपर पर भी प्रत्याशियों के नाम और सिंबल नहीं होते थे... वोटरों को एक pre-printed बैलट पेपर अपनी पसंद के प्रत्याशी के बैलट बॉक्स में डालना होता था... फिर इन्हीं के नतीजों के दिन गिनती होती थी जोकि एक long running process था... और वोटिंग के इसी तरीके की वजह से बूथ कैप्चरिंग, फर्जी वोट, बैलट बॉक्स की लूट जैसे मामले देश के कई हिस्सों में लगातार होते रहे... इसी को देखते हुए 1960-61 में केरल और ओड़िशा के चुनाव में एक नया सिस्टम लाया गया... बैलट पेपर पर मार्किंग शुरू हुई... ये मार्किंग सिस्टम 1999 के लोकसभा चुनाव तक चलता रहा...

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड क्या है?

अब शायद आप सोच रहे होंगे कि 1999 के बाद से ही ईवीएम का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया होगा... तो इसका जवाब है नहीं... Election Commission of India ने EVM पर काम 1977 में ही शुरू कर दिया था... इसके लिए 1977 में तत्कालीन चुनाव आयुक्त एसएल शकधर ने हैदराबाद की इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) के ऑफिस जाकर ये जानने की कोशिश की कि क्या ऐसी कोई इलेक्ट्रॉनिक मशीन बन सकती है जिसके सहारे इलेक्शन हो सकें... ECIL की हां पर उसे ये काम सौंप दिया गया. 1979 में एक prototype बन भी गया... 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने इस prototype को सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के सामने चलाकर दिखाया... 

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड क्या है

इसी बीच Bharat Electronics Limited ने भी एक खोज कर डाली थी... कंपनी ने एक micro computer based voting equipment बनाया, सबसे पहले इसका इस्तेमाल कंपनी की यूनियन के चुनाव में ही हुआ था जहां ये कारगर साबित हुआ था... जनवरी 1981 में Bharat Electronics Limited ने चुनाव आयोग से बात की... 29 जुलाई 1981 को फिर एक मीटिंग हुई... BEL, ECIL, कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के बड़े अधिकारियों के बीच... बातचीत सफल रही... लेकिन 19 मई 1982 को जो हुआ वो historical था... चुनाव आयोग ने संविधान के आर्टिकल 324 के अंतर्गत EVM के इस्तेमाल का ऐलान कर दिया... अब पहली बार EVM का इस्तेमाल होने जा रहा था... कहां हुआ? एक उपचुनाव में... केरल की परूर विधानसभा के लिए हो रहे उपचुनाव में... इसके बाद 1982-83 के बीच 10 ऐसे उपचुनावों में EVM का इस्तेमाल किया गया...

ईवीएम मशीन का आविष्कार कब हुआ?

लेकिन इन सफलताओं के बीच एक पेंच फंस गया... दरअसल, केरल के जिस उपचुनाव में पहली बार EVM चली थी... वहां लड़े प्रत्याशी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए... यहां भी एक मजेदार किस्सा है... हुआ ये कि पहले तो EVM का विरोध चुनाव से पहले एक सिवान पिल्लै नाम के प्रत्याशी ने किया... केरल हाइकोर्ट में मामला लेकर पहुंच गए, मगर कोर्ट ने इस विरोध में कुछ खास नहीं पाया और याचिका खारिज कर दी... मजेदार बात ये रही कि चुनाव बाद नतीजा आया तो यही प्रत्याशी सिवान पिल्लै चुनाव जीत गए... मगर फिर एक हारा प्रत्याशी ये मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया... जहां से मार्च 1984 में फैसला आया कि EVM का इस्तेमाल चुनाव में नहीं हो सकता क्योंकि EVM के इस्तेमाल के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है... नतीजा केरल की परूर विधानसभा में फिर से बैलट पेपर पर चुनाव हुआ...

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड क्या है

खैर, इसके बाद फिर वही हुआ जो होना चाहिए था... तत्कालीन राजीव गांधी सरकार एक्टिव हुई और दिसंबर 1988 में संसद से इसके लिए बाकायदा एक कानून बना दिया गया... REPRESENTATION OF THE PEOPLE ACT 1951 में एक नया सेक्शन 61A जोड़ा गया... इसके तहत अब चुनाव आयोग को EVM के इस्तेमाल की आजादी थी... 15 मार्च 1989 को ये कानूनी संशोधन अमल में आया... हालांकि इसका इस्तेमाल अभी भी किसी चुनौती से कम नहीं था... गाहे-बगाहे इसका हर राजनीतिक पार्टी की तरफ से विरोध होता रहता था... हालांकि इन सब विरोधों, EVM में तमाम तरह के टेक्निकल अपडेट्स के बीच 1998 तक इसके इस्तेमाल पर एक आम राय बना ली गई... 1998 में EVM का इस्तेमाल एक बार फिर हुआ... 16 विधानसभाओं में... दरअसल उस वक्त मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो इन्हीं तीनों राज्यों की कुछ विधानसभाओं में इसका इस्तेमाल किया गया... 1999 के आम चुनाव में 46 लोकसभा सीटों पर इसका इस्तेमाल हुआ...

ईवीएम मशीन कैसे चलती है?

फरवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान 45 विधानसभाओं में इसका इस्तेमाल हुआ और फिर आया एक बड़ा साल... साल 2001 का, जब तमिलनाडु, केरल, पुद्दुचेरी और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव पूरी तरह से EVM के सहारे करवाए गए... इसके बाद से सभी विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल होने लगा... 2004 के आम चुनावों में भी सभी 543 लोकसभाओं में इसका इस्तेमाल किया गया... बस तभी से चुनाव ईवीएम के ज़रिए ही होते आ रहे हैं...  तो ये थी ईवीएम की पूरी हिस्ट्री-जियोग्रैफी... वैसे आपको क्या लगता है, विपक्ष जो हर रोज़ ही ईवीएम को बीजेपी की मशीन होने का दावा करता रहता है, इस पर आप क्या राय रखते हैं, अपनी राय हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर कीजिएगा...

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