अवैध निर्माण: ज़िम्मेदारी किसकी और दंड किसे?

Illegal construction: Whose responsibility is it and who should be punished?
 
अवैध निर्माण: ज़िम्मेदारी किसकी और दंड किसे?

डॉ. सुधाकर आशावादी - विनायक फीचर्स द्वारा)

देश भर में अवैध निर्माणों की बढ़ती संख्या एक गंभीर चिंता का विषय है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसके लिए दोषी कौन है और दंड किसे दिया जाना चाहिए। जब कानून अपना शिकंजा कसता है, तो उसमें मानवीय संवेदनाओं या व्यापक सामाजिक प्रभाव के लिए कोई जगह नहीं होती। कानून इस बात पर विचार नहीं करता कि उसके निर्णय से कितने परिवार बेरोज़गार होंगे, या राष्ट्रीय संसाधनों (समय और धन) की कितनी बर्बादी होगी।

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यदि कानून निर्णय के अनुपालन से राष्ट्रीय संसाधनों को होने वाली क्षति का पूर्वानुमान लगाता, तो 28 अगस्त, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर्स को ध्वस्त नहीं किया जाता। करोड़ों रुपये की लागत से बने इन आवासीय टावरों को अवैध घोषित कर गिरा दिया गया। बताया गया कि यह फैसला नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक के बीच मिलीभगत और नियमों के उल्लंघन के कारण लिया गया था।

इसी तरह की एक घटना मेरठ में भी हुई, जहाँ आवासीय क्षेत्र में व्यावसायिक उपयोग को अवैध बताते हुए शास्त्री नगर के सेंट्रल मार्केट में लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद दीवाली के अवसर पर 22 दुकानों के कॉम्प्लेक्स को ज़मींदोज कर दिया गया। ये घटनाएं मात्र उदाहरण हैं कि जब कानून अपनी पर आता है तो क्या कुछ नहीं कर सकता।

सरकारी तंत्र की लापरवाही और विलंब पर सवाल

विचारणीय बिंदु यह है कि कानून तब क्यों जागता है जब बहुत देर हो चुकी होती है। विकास प्राधिकरणों और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये की बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो जाती हैं। भूमाफियाओं द्वारा सरकारी ज़मीनों पर बड़ी कॉलोनियां बना दी जाती हैं, जबकि रेलवे पटरियों के आसपास या देश के विभिन्न हिस्सों में बसे अवैध कब्ज़े या घुसपैठियों पर कानून की नज़र ही नहीं पड़ती।

एक ओर सरकार 'सबका साथ सबका विकास' की बात करती है और बिना किसी भेदभाव के गरीबों को आवास उपलब्ध कराती है, वहीं दूसरी ओर वह करोड़ों की लागत से बने बहुमंजिला आवासीय और व्यावसायिक भवनों के निर्माण के बाद उन्हें ध्वस्त करने में अपना धन और समय बर्बाद करने के लिए विवश होती है।

दोषियों को पहले दंड क्यों नहीं?

मूल मुद्दा यह है कि पहले सरकारी तंत्र अपनी नाक के नीचे अवैध निर्माणों को पूरा होने देता है। नोटिस देने की औपचारिकता पूरी करके निर्माणकर्ताओं से धन की उगाही की जाती है। जब निर्माण पूरा हो जाता है, बस्तियां बस जाती हैं, और आवासीय क्षेत्रों में बाज़ार बन जाते हैं, तब सरकार को पता चलता है कि निर्माण अवैध है।

सवाल यह है कि अवैध निर्माण को शुरुआती चरण में ही क्यों नहीं रोका जाता? यदि निर्माण पूरा हो जाता है, तो उसे गिराने की कवायद शुरू करने से पहले उन जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित क्यों नहीं किया जाता, जिनकी मिलीभगत और संरक्षण में यह अवैध निर्माण संभव हुआ।

विध्वंस करना सरल है, लेकिन निर्माण में लंबा समय, श्रम और धन लगता है। यदि अवैध निर्माण विकसित करने के दोषी निर्माणकर्ता हैं, तो उससे बड़ी दोषी वह व्यवस्था है, जिसकी लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते अवैध निर्माण किया जाना संभव हुआ है। सरकारों और कानूनविदों को मिलकर इस समस्या के समाधान के लिए कोई सकारात्मक हल खोजना चाहिए।

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