केवल भौगोलिक इकाई नहीं समृद्ध एवं सांस्कृतिक राष्ट्र भी है हमारा भारत

Our India is not just a geographical entity but also a rich and cultural nation
 
Our India is not just a geographical entity but also a rich and cultural nation

(संदीप सृजन-विभूति फीचर्स) देश और राष्ट्र शब्द को हम प्रायः एक ही शब्द के पर्यावाची के रूप में उपयोग करते है और दोनों को एक ही मानते हैं लेकिन दोनों के मायने अलग अलग है। हम भारतीयों के साथ समस्या यह हो गयी है कि हमारे सारे शब्द, सारी चर्चाएं पश्चिमी चश्मे से गढ़ी और मानक बनायी गयी हैं। इसी वजह से शब्दों का घालमेल कई बार भ्रम पैदा करता है। राष्ट्र और देश में मिलावट का भी यही कारण है। हमें यह समझना होगा कि देश एक भौगोलिक इकाई है और राष्ट्र एक सांस्कृतिक इकाई है।


देश शब्द के मूल में ‘दिश’ धातु है, उसी से देशांतर और देश बने हैं। यह भौगोलिक सीमाओं से आबद्ध है। यानी, कहें तो देश शब्द संकुचित है, राष्ट्र शब्द व्यापक। राष्ट्र विभिन्न साधनों से संयुक्त और समृद्ध सांस्कृतिक पहचान वाला ‘देश’ है। यह एक जीवंत और सार्वभौमिक इकाई है, विविधताओं से युक्त अद्भुत शक्ति से सम्पन्न भूखंड या कहें जीवन-दर्शन का द्योतक है। देश सीधे तौर पर रेखाओं में बांधता है। इसीलिए, हम जब ‘भारत’ को एक राष्ट्र के तौर पर संबोधित करते हैं, तो उसकी व्यंजना बिल्कुल अलग होती है और जब हम भारत को ‘देश’ के तौर पर अंगीकार करते हैं, तो उसकी व्यंजना बिल्कुल अलग होती है।

Our India is not just a geographical entity but also a rich and cultural nation
राष्ट्र शब्द को अगर बहुत मोटे शब्दों में समझे तो कह सकते है। एक निश्चित भौगोलिक सीमा के भीतर रहने वाले एक जन-समूह को ही तो हम राष्ट्र कहते हैं, जिनकी एक पहचान होती है और वह समूह आम तौर पर धर्म, इतिहास, नैतिक आचारों या विचारों, मूल्यों आदि में एक समान दृढ़ता रखता है। इसे और भी साफ करना चाहें तो राष्ट्र लोगों का वैसा स्थायी समुच्चय या समूह है जिनके बीच सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक-धार्मिक संबंध न केवल होते हैं, बल्कि वे उनको एकजुट भी करते हैं।


राष्ट्र के तौर पर हमारी भावना एक हो, हम एक राष्ट्रवादी विचारधारा से पनपें, इसके लिए महज दो-तीन शर्तें हैं। हमें एक ऐतिहासिक समुदाय के रूप में राष्ट्रीय चेतना को जगाना होता है, राजनीतिक औऱ आर्थिक संप्रभुता प्राप्त करना होती है, अपनी साझा संस्कृति का विकास करना होता है और नकार की जगह सकार को अपनाना, सकारात्मक भावनाओं का विकास करना होता है। जिस तरह बिना अदहन के भात नहीं बन सकता, उसी तरह राष्ट्रवादी विचारधारा के सम्यक विकास के बिना अंतरराष्ट्रीयतावाद भी नहीं आ सकता है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संघर्ष में भी भारतीय राष्ट्रीयता का यही विकास हम देखते हैं, जो भाषा, धर्म और क्षेत्र के बंधनों से निकलकर एक मंच पर आ खड़ी हुई। 


ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा दिया गया शब्द ‘नेशन-स्टेट’ दरअसल, कानून के डर में निहित शक्ति का नाम है, जबकि राष्ट्र का मूल आधार लोगों की भावना है, यह लोगों की मानसिकता से बनता है, राष्ट्र भूखंड भी होता है, लेकिन यह भूखंड मात्र नहीं होता, राष्ट्र मतलब उसके नागरिक, उसके लोग होते हैं। शायद अंग्रेज इसीलिए कई बार ‘नेशन यानी देश’ के लिए ‘पीपल यानी लोग’ शब्द का भी इस्तेमाल कर जाते हैं। राष्ट्र के संबंध में यह सोचना लाजिमी है कि राष्ट्र किन लोगों का? तो इसकी तीन मोटी शर्तें हैं, एक तो जिस देश में रहें, उसके प्रति उन लोगों की भावना। दूसरे, इतिहास में घटित भावनाओं के संबंध में भावनात्मक समानता, चाहे वे नकारात्मक हों या सकारात्मक, और तीसरी और सबसे अधिक जरूरी शर्त यह है कि वे लोग समान संस्कृति वाले हों। 


राष्ट्र जाहिर तौर पर केवल भूखंड मात्र नहीं, वह जीवंत लोगों का समुच्चय है, राष्ट्र केवल दंड-भय से या ज़बर्दस्ती किसी के ऊपर आरोपित नहीं किया जा सकता, लेकिन राष्ट्र को भारतीय संदर्भों में अगर आप ‘नेशन-स्टेट’ के चश्मे से देखेंगे, तो भारी गफलत में पड़ेंगे। यह वैसी ही गफलत होगी, जो कालिदास को पूरब का शेक्सपियर कहती है और समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन। यह और कुछ नहीं, हमारे उपनिवेशवाद के नशे का परिणाम मात्र होगा।


भारत में संदर्भों को उसी के अनुरूप लेना होगा, तभी शायद समुचित व्याख्या हो सकेगी। भारत में इतिहास-लेखन भी इसीलिए मिथक और तथ्य की सीमा-रेखा के बीच झूलने लगता है कि यहां यूरोपीय और अरबी इतिहासकारों की तरह तिथिवार (क्रोनोलॉजिकल) लिखने में लोगों की दिलचस्पी नहीं रही। यहां इतिहास या संस्कृति में जब कोई बड़ा झटका लगा, तभी उसके परिवर्तन की बात भी दर्ज हुई, जाहिर तौर पर टाइम यहां अंग्रेजी का समय न रहकर ‘काल’ के अर्थ में है, जिसका क्षण-क्षण परिवर्तन नहीं होता और शायद इसीलिए हमारा इतिहास भी तथ्य, मिथक और कपोल-कल्पना तक की यात्रा कर जाता है। और हमें अपने इतिहास और परम्पराओं तक को गल्प बताने को प्रेरित करता है। ।(विभूति फीचर्स)

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