झांसी अग्निकांड  : जो बच्चे बच गए थे  क्या उन माँ को मिले उनके बच्चे  

Jhansi fire incident : Did the mother who survived find her children?
Jhansi fire incident : Did the mother who survived find her children?
झांसी : झांसी अग्निकांड की एक बात मुझे सोचने पर मजबूर करती है। इसे पढ़िए फिर बताइएगा। जिस वार्ड में आग लगी उस वार्ड में कुल 49 बच्चे थे। इसमें 30-35 तो ऐसे थे जिनकी उम्र महीने भर से भी कम है। 10-15 तो एक हफ्ते के अंदर ही पैदा हुए थे। चूंकि स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट है तो उसमें उन्हीं बच्चों को रखा जाता है जिनकी स्थिति क्रिटिकल है। घर के लोग न देख पाते हैं न मिल पाते हैं। बच्चे की मां को बीच-बीच में बुलाकर दूध पिलवाया जाता है। कई बच्चे तो ऐसे थे जिन्हें मां ने भी नहीं देखा था, उन्हें नली के जरिए सप्लिमेंट दिया जा रहा था। 

15 नवंबर की रात आग लगी। लोग अंदर की तरफ भागे। जिसे जो बच्चा मिला वह उसे लेकर बाहर आया। वार्ड में भर्ती 12 बच्चों की मौत हो गई। 10 जलकर, 2 बीमारी से। अब सवाल है कि लोग जो बच्चे निकालकर आए थे वह क्या जिसे दिया गया उसी के थे। कैसे पहचाना गया? क्योंकि छोटे बच्चे तो कई बार एक जैसे ही दिखते हैं, पहचानना मुश्किल होता है। जिनकी मौत हुई वह भी बुरी तरह से जले। मतलब पहचानना मुश्किल। फिर कैसे तय हुआ कि इन्हीं-इन्हीं के बच्चों की मौत हुई? 

 जब लोग अंदर गए हो तो वहां से भी 1-2 बच्चों को उठा लाए हों। मैंने यह सवाल झांसी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एसएन सेंगर साहब से पूछा था, उन्होंने ऑफ कैमरा कुछ टेक्निकल जवाब दिया, वह समझ नहीं आया। m ये सवाल इसलिए दिमाग में आया क्योंकि एक महिला एक बच्चा लेकर गई थी। तीन दिन तक उसे अपना समझकर दूध पिलाया। फिर मेडिकल कॉलेज ने महिला को बुलाया और उससे बच्चा लेकर दूसरा दिया। क्योंकि उस महिला के पास दूसरे का बच्चा चला गया था। 

लिस्ट में कोई डॉक्टर हो तो बताए। क्या पहचानने के लिए बच्चों के शरीर पर कुछ निशान लगाया जाता है या फिर खून टेस्ट व डीएनए के जरिए पहचान होती है। क्योंकि अगर यह कहा जाए कि कुछ लोगों के बच्चे बदल गए, या फिर कोई यह कह दे कि जो मरे वह दूसरों के बच्चे थे। फिर इसे खारिज कैसे किया जाएगा?


 

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