लाखों गरीब छात्रों पर कहर है , यह शासनादेश  वित्त विहीन कालेजों को शिक्षण शुल्क की छूट

This government order is wreaking havoc on lakhs of poor students, exemption in tuition fees to unaided colleges
हरदोई(अम्बरीष कुमार सक्सेना)  प्रदेश सरकार के एक शासनादेश की बजह से हर वर्ष लाखों गरीब छात्र प्रभावित हो रहे हैं।वित्त विहीन मान्यताप्राप्त अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों को मनचाहा शिक्षण शुल्क लेने की छूट देकर राज्य सरकार ने गरीब छात्रों को मुसीबत में डाल रखा है।जिसकी बजह से इण्टर कालेजों के प्रबंधक और प्रधानाचार्य मनमाना भ्रष्टाचार कर रहे हैं।


    करीब चार दशक से प्रदेश में कई पार्टियां बारी बारी से शासन कर चुकी हैं परंतु किसी भी पार्टी की सरकार ने इण्टर कालेजों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना जरूरी नहीं समझा।यही कारण है कि माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गयी है।
 एक तरफ शिक्षा अभियान के नाम पर अरबों रूपये का अनुदान कौशल विकास मिशन , आंगनबाड़ी आदि कार्यक्रमों के द्वारा व्यय किया जा रहा है। दूसरी ओर अभिभावकों की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा पढ़ाई पर खर्च करने वालों से और धन उगाही का रास्ता खोलकर, आखिर सरकार सिद्ध क्या करना चाहती है।इस सबाल का जबाब व्यवस्था तंत्र से जुड़े किसी व्यक्ति के पास नहीं है।


मालूम हो कि तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने सन् 1986 में प्रदेश में वित्त विहीन मान्यता देने का सिलसिला शुरू किया था।इससे पूर्व जिन कालेजों को मान्यता दी जाती थी।उनके अध्यापकों को वेतन भुगतान करने की जिम्मेदारी उठाने के साथ साथ वहां के शिक्षण शुल्क , रखरखाव , और क्षतिपूर्ति की सारी जिम्मेदारी सरकार उठती थी।इस व्यवस्था पर अत्यधिक खर्च होने के कारण एवं सीमित संसाधनों के मद्देनज़र सन् 1986 में तत्कालीन राज्य सरकार ने वित्त विहीन मान्यता देने की नयी परम्परा प्रारम्भ कर दी।इस परंपरा के तहत सरकार संभंधित कालेज के पास कक्षाओं के कमरे होने पर मान्यता दे देती थी।यह कालेज अपने अध्यापकों को वेतन कैसे , कब और कितना देगा , इसकी जिम्मेदारी सम्बंधित कालेज के प्रबंधक को दे दी गयी।इससे वित्त विहीन मान्यताप्राप्त कालेजों के शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का आर्थिक शोषण प्रारम्भ हो गया। और अभिवावकों एवं छात्रों से अवैध वसूली तेज़ हो गयी। परेशान लोगों व शिक्षक संगठनो ने आंदोलन भी किये परंतु नतीजा सिफर रहा।


   वित्त विहीन कालेजों में पढ़ने वाले छात्रों से शिक्षण शुल्क लेने की छूट देकर सरकार ने हाई स्कूल व इण्टर के छात्रों को दो भागों में बाँट दिया।फीस भी प्रबंधकों व प्रधानाचार्यों की मर्ज़ी पर निर्भर होगी। वित्तविहीन कालेज नगर से सुदूर ग्रामीण अंचल तक फ़ैल गए।और लोगों की कमाई का जरिया बन गए। राज्य सरकारें अपनी अक्षमता को छिपाकर उस तबके के छात्रों को सजा दे रही है , जिसकी तरक्की और मदद का दावा वह रात दिन करती है।यह दोहरी व्यवस्था और तुच्छ मानसिकता का प्रमाण है।


यही कारण है कि पूरे वर्ष कालेज प्रबंधकों और प्रधानाचार्यों में अवैध वसूली के धन के बंटवारे को लेकर विवाद होते रहते हैं।जिसके कारण कालेजों में पठन पाठन की बजाय सिर्फ और सिर्फ छात्रों से वसूली के नए नए तरीके ईज़ाद किये जाते हैं।जिला विद्यालय निरीक्षक से लेकर माध्यमिक शिक्षा निदेशक तक कालेजों में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार हैं।अगर समय रहते माध्यमिक शिक्षा पर ध्यान न दिया गया तो वह दिन दूर नहीं है जब अवैध वसूली के केंद्र बने ये कालेज ठप होने की कगार पर आ जायेंगे।

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