क्वांटिटी एजुकेशन को छोड़ अब हमें क्वालिटी एजुकेशन की तरफ बढ़ना होगा

Leaving behind quantity education, we must now move towards quality education
Leaving behind quantity education, we must now move towards quality education

लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। श्री जय नारायण मिश्र महाविद्यालय, लखनऊ में "पापुलेशन एंड डेवलपमेंट: नेविगेटिंग चैलेंजेस एंड एक्सप्लोरिंग ऑपरुचुनिटीज" विषय पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का समापन मुख्य अतिथि,  आलोक रंजन (पूर्व आईएएस) पूर्व प्रमुख सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार के कर कमलो द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरण के साथ संपन्न हुआ।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जनसंख्या एवं विकास यह मानवता से जुड़े हुए मुद्दे हैं।जनसंख्या की बेहतरी के लिए विकास की दिशा को तय करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि पहले जनसंख्या विकास में बहुत सारी बाधाएं थी।कही  प्राकृतिक आपदाएं, तो कही अनाज की कमी,यह स्वाभाविक तौर पर विद्यमान रहती थी। किंतु 1921 के बाद जनसंख्या वृद्धि में एक ट्रेंड दिखाई देने लगा। धीरे-धीरे सुविधा भी बढ़ने लगी और जनसंख्या वृद्धि पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या शासन और सरकार को ऐसी लगने लगी कि उसे विस्फोट की संज्ञा दी गई।

और उस पर नियंत्रण पाने के लिए आपातकाल के नसबंदी जैसे प्रयास भी किए गए। 20 सूत्री कार्यक्रम में पापुलेशन स्टेबलाइजेशन के लक्ष्य रखे गए। एक सवाल हमेशा बना रहा है कि जनसंख्या डिविडेंड है या डिजास्टर है। इस पर हमेशा डिबेट चलती रहती है। उन्होंने कहा कि भारत आज विश्व में जनसंख्या के मामले में प्रथम स्थान पर है। तो इसको तय करना जरूरी है कि हम इस पर गर्व करें या चिंतित हो।उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से हम अलग-अलग पैमाने पर देखें तो हम पांचवी और तीसरी महाशक्ति बनते दिख रहे हैं। किंतु प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो हम बहुत ही नीचे के पायदान पर हैं। उन्होंने कहा कि हमे  विशाल जनसंख्या को लेकर हमेशा गर्व करना चाहिए। लेकिन उसके पोषण और उसके उचित जीवन स्तर का ख्याल रखना भी हमारा ही काम है। प्रत्येक व्यक्ति के साथ न्याय करने के लिए वितरण में समानता लाना होगा।

जनसंख्या के पुष्प पल्लवित होने के लिए हमें सर्वप्रथम प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना होगा। दूसरा हमें ह्यूमन कैपिटल भी बढ़ानी होगी। शिक्षा, जनसंख्या कल्याण के लिए सबसे बड़ा साधन है। अतः क्वांटिटी एजुकेशन को छोड़ अब हमें क्वालिटी एजुकेशन की तरफ बढ़ना होगा। स्वास्थ्य सेवाओं को आशानुरूप बनाते हुए सर्वांगीण प्रयास करने होंगे तभी एक प्रोडक्टिव जनसंख्या देश में स्थापित होगी। उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 65% आबादी युवाओं की है अर्थात 25 वर्ष से कम आयु के लोगों की है। इन सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य और उचित समय पर उचित रोजगार मुहैया कराकर जनसंख्या के कल्याण के लक्ष्य हासिल किया जा सकते हैं। हम सब मिलकर के इस बात का प्रयास करें कि हम जनसंख्या को एक जेनुइन जनसंख्या में बदलें। हमारी आबादी हमारे लोग कतई डिजास्टर नहीं है। हमें हम सबके लिए कार्य करना होगा।

उन्होंने आशा जताई कि तीन दिन चले अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में निश्चित रूप से ऐसी बातें निकलकर आई होगी जो सरकार, नीति निर्माताओं और राजनैतिक दलों को जनसंख्या कल्याण के लिए कदम उठाने को निर्देशित करेंगी। इस अवसर पर डा अनीस अंसारी, पूर्व कुलपति, उर्दू अरबी फारसी भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ  ने  कहा कि चीन ने आबादी बढ़ाने की तरफ फिर से कदम बढ़ाया है। क्योंकि उनके यहां पापुलेशन डिविडेंड कम है। उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि एक बेहतर समाज के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण होना जरूरी है। और इसका सबसे अच्छा तरीका है लोगों को शिक्षित किया जाए। ताकि जनसंख्या वृद्धि दर स्वतः नीचे आ सके। उन्होंने कहा कि जन्म दर व प्रजनन दर को दृष्टि देने की जरूरत है।

समारोह की विशिष्ट अतिथि, प्रो डोरीना, माल्दोवा विश्वविद्यालय ने कॉन्फ्रेंस में अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि वह भारत और खासकर लखनऊ में पहली बार आई है।उन्होने कहा कि उन्हें भारत बहुत ही पसंद आया। यहां के लोग आपस में बहुत ही प्यार से रहते हैं। यहां का आथित्य सत्कार, लोगों का स्नेह उन्हें कभी नहीं भूलेगा। उन्हे दोबारा जब भी मौका मिलेगा वह लखनऊ और केकेसी कॉलेज में जरूर आएंगी।
समारोह की अध्यक्षता, पंडित राम बिलास मिश्रा, पूर्व कुलपति अवध विश्वविद्यालय ने की। उन्होंने सेमिनार के सफल समापन पर सभी को शुभकामनाएं दी तथा विदेशों से आए हुए वक्ताओं व प्रबुद्ध जनों के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की। 
महाविद्यालय प्राचार्य, प्रो विनोद चंद्रा ने तीन दिनों तक चले अंतरराष्ट्रीय सेमिनार की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।महाविद्यालय मंत्री प्रबंधक,  जी सी शुक्ला ने सेमिनार के सफल समापन पर सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।कॉन्फ्रेंस के तीसरे दिन आयोजित पैनलों में अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने विश्व के अनेक क्षेत्रों में व्याप्त जनसंख्या से जुड़ी समस्याओं को अपने शोध के माध्यम से तथ्य और आंकड़ों के साथ लोगों को अवगत कराया।  वहीं सेमिनार के अन्य सत्रों में देश-विदेश से आए हुए अनेक प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।

सेमिनार में आज आयोजित प्रथम पैनल की अध्यक्षता, प्रो हेलेना हेल, टेम्पयर  यूनिवर्सिटी, फिनलैंड ने की। इस अवसर पर उन्होंने विश्व के उत्तरी गोलार्ध में स्थित राष्ट्रों मे जनसंख्या परिवर्तन और युवाओं पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में महिलाओं और युवाओं के लिए परिस्थितियां काफी विषम रहती हैं। रोजगार, शिक्षा और गरीबी जैसे फैक्टर  युवाओं को दृष्टिगत रखते हुए प्रमुख मुद्दे हैं। इन फैक्टर्स को चुनौतियों की तरह लेकर इनका समाधान ढूंढने के प्रयास किया जा रहे हैं।

इसी सत्र में वक्ता, प्रो नतालिया वाशर, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्राज, ऑस्ट्रिया ने बताया कि ऑस्ट्रिया, यूक्रेन, युगोस्लाविया और अन्य पड़ोसी देश युवाओं के माइग्रेशन एवं शिक्षा के समावेशन से जुड़ी गंभीर समस्याओं से यहां के समाज जूझ रहे हैं। युवाओं के लिए रोजगार, महिलाओं का बढता एकाकी जीवन, प्रति व्यक्ति आय  गिरती हुई प्रजनन क्षमता और युवाओं की कम संख्या एक प्रमुख मुद्दा बने हुए हैं। समाजशास्त्री इसका समाधान अनेक स्तरो पर ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।

प्रो अगिले न्यूमी, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग और क्रॉस बॉर्डर माइग्रेशन को लेकर के मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत क्षेत्र में किए गए अपने कार्य से सभी को अवगत कराते हुए ह्यूमन ट्रैफिकिंग की बदतर परिस्थितियों की बात कर लोगों को राष्ट्र की उन गंभीर समस्याओं के प्रति चेताया जो विकास की आड़ में छुपी रहती है और शासन प्रशासन स्तर पर इन पर कहीं भी गंभीर कार्यवाही नहीं होती। उन्होंने अपना अनुभव बताया कि जब वह युवा थी तब दिल्ली मिरिंडा हाउस में पढ़ती थी और इंफाल आ रही थी। उनकी चेकिंग पुरुष सुरक्षा कर्मी ने की थी। इस घटना से उपजे उनके मन के दर्द को वह जीवन भर नहीं भुला सकेंगी।

उन्होंने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार केवल भोले भाले और कम पढ़े-लिखे लोग ही नहीं है। बहुत ही उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी इसका शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग के सबसे ज्यादा शिकार 18 साल से कम के बच्चे हैं। जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों हैं। ह्यूमन ट्रैफिकिंग करने वाले लोगों के लिए यह एक स्वर्णिम बिजनेस है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार युवा पूरी तरह से यौन, भावनात्मक,  शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का शिकार होते हैं। उनके जीवन में केवल अंधेरा ही बचता है। मणिपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में ह्यूमन ट्रैफिकिंग की दर सबसे ज्यादा है  अभी तक इस पर सरकार की तरफ से कोई भी प्रभावशाली कदम उठाते हुए नहीं दिख रहे। जबकि यह एक गंभीर समस्या है। जहां पर युवा इतनी बदतर स्थिति में आ रहे हो वहां एक स्वर्णिम राष्ट्र की कल्पना करना अपराध लगता है।

प्रो जे नाथन गोविंदर, क्वॉजुलु नेटाल यूनिवर्सिटी, डर्बन, साउथ अफ्रीका ने सैद्धांतिक, सिस्टमैटिक और नीतिगत सीमाओं का उल्लेख करते हुए युवाओं के विकास और समावेशन के बारे में किए गए अपने शोध के निष्कर्ष से सभी को अवगत कराया।इस अवसर पर पैनल विशेषज्ञ, प्रो सारंग पैड गांव करनी अपने शोध लोगों में बढ़ रही शुगर की बीमारी और उसे हो रहे हाइपर टेंशन की बीमारी में संबंध स्थापित करते हुए अपने शोध को प्रस्तुत किया प्रस्तुत किया।
अंतर्राष्ट्रीय डॉन फ्रेंड सिकुड़ना शत्रु पैनल डिस्कशन के चली तथा देश विदेश के लगाना सी प्रतिभागियों ने अपने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस अवसर पर देश विदेश से आए हुए अनेक शिक्षक, शोधछात्र एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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