नागा जो पेड़ नहीं काटते, लेकिन काट दी थी औरंगज़ेब की सेना

Mahanirvani Akhada- When Naga Sadhus Brutually Defeated Aurangzeb's Army
 
नागा जो पेड़ नहीं काटते, लेकिन काट दी थी औरंगज़ेब की सेना
धर्मनगरी प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में पहुंचे श्रद्धालु भक्तिरस में डूबे हुए हैं... वैसे कुंभ मेला जब भी लगता है तो साधू-संतों, खासकर नागा साधुओं की चर्चा सबसे ज़्यादा होती है, क्योंकि साधुओं का ये ग्रुप हमेशा एक रहस्य पैदा करता रहा है... ये आम लोगों के लिए हमेशा curiosity का सब्जेक्ट होता है... नागा साधुओं के कामकाज अजरज भरे होते हैं... ये किस पल खुश हो जाएंगे और कब खफा ये कोई नहीं जानता... आपने देखें होंगे बहुत से वीडियोज़ जिसमें साधु संत लोगों को आशीर्वाद देते हुए भी और उनको मारते पीटते हुए भी नज़र आ रहे हैं... नागा साधुओं की वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि वगैरह सब उनके अखाड़े के मुताबिक होते हैं, जिनसे वो जुड़े होते हैं... प्रमुख तौर पर 13 अखाड़ों को मान्यता प्राप्त हैं, जिसमें 7 शैव, 3 वैष्णव और 3 उदासीन अखाड़े हैं... ये अखाड़े देखने में एक जैसे लगते हैं, लेकिन इनकी परंपराएं-पद्धति सब अलग-अलग होती हैं.

वैसे जब से महाकुंभ शुरू हुआ है, तब से आपने अखाड़ों के बारे में सुना तो बहुत होगा, लेकिन अखाड़ा होता क्या है, ये आपको पूरी तरह से नहीं पता होगा..अखाड़ा actually साधुओं का वो दल होता है, वो ग्रुप होता है, जो शस्त्र विद्या में निपुण होता है... वैसे आम भाषा में कुश्ती वगैरह के लिए ग्राउंड के लिए अखाड़ा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है... इससे साधुओं का अखाड़ा का संबंध भी इसी से है... कहा जाता है कि अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द निकला है... पहले अखाड़े शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता था और इन्हें साधुओं का बेड़ा ही कहा जाता था... बताया जाता है कि मुग़ल काल में अखाड़ा शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा...

 बात चली है जब मुग़ल काल की तो चलिए आपको इससे जुड़ा एक बड़ा ही रोचक किस्सा सुनाते हैं... औरंगज़ेब को भला कौन नहीं जानता... औरंगज़ेब को The Last Of Great Mughals का दर्जा हासिल है... औरंगज़ेब हमारे देश में एक बहुत बड़ा पॉलिटिकल मुद्दा भी है... पता है क्यों? क्योंकि औरंगज़ेब को एक बड़े ही खलनायक मुगल बादशाह के तौर पर जाना जाता है... कहा जाता है कि औरंगज़ेब एक कट्टरपंथी मुस्लिम था, जिसने इस्लाम का परचम फहराने के लिए ऐसा कत्लेआम मचाया था, जिसकी कोई इंतेहा नहीं...

औरंगजेब ने भारत पर 1658 से 1707 तक राज किया... ऐसा कहा जाता है कि उनके शासन में भारत में 1000 हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया... कई मंदिर ऐसे थे, जिन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई गई... उदाहरण के तौर पर अगर बताऊं मैं आपको तो औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को भी ध्वस्त करने का फरमान दिया था और उसकी जगह ईदगाह मस्जिद बनाई गई... औरंगजेब ने मंदिर से सारा धन भी लूट लिया था... केशवदेव मंदिर को जनवरी 1670 में गिराया गया था... औरंगजेब की कार्रवाई राजनीतिक रूप से भी प्रेरित हो सकती है, क्योंकि जिस समय मंदिर को नष्ट किया गया था, उस समय उसे मथुरा क्षेत्र में बुंदेलों के साथ-साथ जाट विद्रोह के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ा था... और तो और कहा ये भी जाता है कि बनारस की मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने बिशेश्वर मंदिर की जगह पर करवाया था... वो मंदिर हिंदुओं के बीच बेहद पवित्र था... इसी जगह पर उन्हीं पत्थरों से औरंगजेब ने एक ऊंची मस्जिद का निर्माण कराया... बनारस की दूसरी मस्जिद का निर्माण गंगा के तट पर तराशे हुए पत्थरों से कराया गया था... ये भारत की प्रसिद्ध मस्जिदों से एक है... इसमें 28 टावर हैं, जिनमें से हर एक 238 फीट लंबा है... ये गंगा के तट पर है और इसकी नींव पानी की गहराई तक फैली हुई है... औरंगजेब ने मथुरा में भी एक मस्जिद का निर्माण कराया था... कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण गोबिंद देव मंदिर की जगह पर किया गया था...

इसके अलावा औरंगजेब ने विजय मंदिर, सोमनाथ मंदिर जैसी भी कई सारी मंदिरों को नष्ट करके वहां मस्जिद बनवाईं... हालांकि, ये डाटा प्रमाणित नहीं है और आपकी खबर इन सारे दावों की पुष्टि भी नहीं करता है..जब औरंगज़ेब की नज़र बनारस की काशी विश्वनाथ पर पड़ी तो उसने काशी विश्वनाथ को तबाह करने की प्रतिज्ञा ली... हालांकि, काशी विश्वनाथ को तोड़ने की पहली कोशिश में औरंगजेब कामयाब नहीं हो पाया था... अपनी मुगल सेना के साथ उसने पहली बार साल 1664 में मंदिर पर हमला किया था... लेकिन नागा साधुओं ने मंदिर का बचाव किया और औरंगजेब की सेना को बुरी तरह हराया... मुगलों की इस हार का वर्णन James G. Lochtefeld की किताब 'The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Volume 1' में मिलता है...

इस किताब के मुताबिक, वाराणसी के महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने औरंगजेब के खिलाफ कड़ा विरोध किया था और मुगलों की हार हुई थी... लेखक ने इस ऐतिहासिक घटना को वाराणसी में महानिर्वाणी अखाड़े के अभिलेखागार यानी Archive में एक हाथ से लिखी किताब में देखा... उन्होंने इस घटना को अपनी किताब में 'ज्ञान वापी की लड़ाई' के तौर पर बताया...

साल 1664 में काशी विश्वनाथ की रक्षा करने वाले नागा साधुओं का वर्णन जदुनाथ सरकार की किताब 'A History of Dashanami Naga Sanyasis' में भी मिलता है... जदुनाथ सरकार के मुताबिक, नागा साधुओं ने महान गौरव प्राप्त किया था... सूर्योदय से सूर्यास्त तक युद्ध छिड़ गया था और दशनामी नागाओं ने खुद को नायक साबित कर दिया... उन्होंने विश्वनाथ के सम्मान की रक्षा की...

औरंगजेब ने 4 साल बाद यानी 1669 में वाराणसी पर फिर से हमला किया और मंदिर में तोड़फोड़ की... औरंगजेब जानता था कि मंदिर हिंदुओं की आस्था और भावनाओं से जुड़ा है, इसलिए उसने ये सुनिश्चित किया कि इसे फिर से नहीं बनाया जाएगा और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया... ये मस्जिद आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है... स्थानीय लोककथाओं और मौखिक कथाओं के मुताबिक, लगभग 40,000 नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की हंसते-हंसते आहुति दे दी थी...

 औरंगजेब की सेना से लोहा लेने वाले महानिर्वाणी अखाड़े के बारे में भी आपको थोड़ी जानकारी दें देते हैं... महानिर्वाणी अखाड़ा की स्थापना झारखंड के हजारीबाग जिले के गढ़कुंठा बैजनाथ धाम में विक्रम संवत 805 ईस्वी में हुई थी... रूप गिरि सिद्ध, उत्तम गिरि सिद्ध, रामस्वरूप सिद्ध, शंकर पुरी मौनी, भवानीपुरी, देववन मौनी, ओंकार भारती और पूर्णानंद भारती जैसे तपस्वी संतों ने अखाड़े की नींव रखी थी...
ये आवाहन और अटल अखाड़े से जुड़े संत थे... अखाड़े के इष्टदेव भगवान कपिलमुनि हैं... आठ संतों से शुरू हुए अखाड़े में मौजूदा समय लगभग 15 हजार संन्यासी हैं... इस अखाड़े के नागा संत अपनी वीरता व अदम्य साहस के लिए जाने जाते हैं...

मौजूदा समय इस अखाड़े में लगभग आठ हजार नागा संत हैं... इन्हें पहाड़ी, आदिवासी के साथ उन क्षेत्रों में प्रवास कराने का निर्देश है जहां सरकारी सुविधाएं कम हैं... ऐसे क्षेत्रों में रहकर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करने के साथ धर्मांतरण रोकने में भी लगाया गया है... इस अखाड़े की स्थापना के समय सनातन धर्म पर हमले हो रहे थे... तब संतों ने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़े और जीते भी... इस महानिर्वाणी अखाड़े से समय-समय पर राजाओं तक ने भी मदद ली... इन्हीं के चलते आज करोड़ों हिंदू सुरक्षित हैं...

महानिर्वाणी अखाड़े में सूर्यप्रकाश और भैरव प्रकाश नाम के दो भाले हैं... माना जाता है ये अखाड़े के स्थापना काल से हैं... हर रोज़ इनकी पूजा होती है... कुंभ-महाकुंभ के शाही स्नान में पहले दोनों भालों को स्नान कराया जाता है, उसके बाद सभी संत डुबकी लगाते हैं... आपको जानकर हैरानी होगी कि महानिर्वाणी अखाड़े में खाना बनाने के लिए गैस सिलेंडर का इस्तेमाल नहीं होता... भंडारे में प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल होता है... अखाड़े की गोशाला की गायों के गोबर से बने कंडे और लकड़ी से खाना बनाया जाता है... साधु-संतों की निगरानी में सात्विक और पौष्टिक भोजन तैयार होता है... खासबात ये है कि अखाड़े में हरे पेड़ों को काटने पर पाबंदी है...तो मतलब समझें आप, महानिर्वाणी अखाड़े के साधु-संत पेड़ नहीं काटते, लेकिन जब बात सनातन की आ जाती है तो वो राक्षसों का विनाश करने में फिर पीछे नहीं हटते

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