नई सदी नई सरदी

new century new winter
new century new winter
क्यूं रूठी टूटी झरती बदरी का बस छूटा 
क्यूं  नैन भरे कारे कजरा का रंग छूटा
बिन सावन के कैसी बरसती धार है 
क्या किसी का बिलखता अधूरा प्यार है,

ये कैसी प्यास है जो बुझी नही 
है आस कैसी के मिटी नहीं 
आसमान में दिखते कैसे नजारे हैं 
रोज़ बदलते मौसम के क्या इशारे हैं,

फिज़ा में जो ये नई सरदी बह रही है 
कहीं बदलते युग की दस्तक तो नहीं 
जो कैद थी गुमनामी ताले में सदियों से 
सज़ा काट के जो अब रिहा हो रही है,

इस सर्द हवा के सवाल कई
हर सांस को जिंदा करना है 
जो भूल गए थे जीना खुलकर 
उनमें नव जीवन भरना है,

ना जागीर है किसी की ना इसपे कोई पहरा
घुटती सांसों को जिंदा करना मकसद गहरा 
इस हवा में अब खुले आम हिसाब होगा 
हर अधर्म का उसी क्षण विनाश होगा,

मंदिर की प्राचीर से न्याय के द्वार तक
धीर धारा के पत्तों की नर्म की बेलें होंगी 
उपवन खुशहाली की सुगंध सा खिलेगा
जब नई सदी की उसमें खाद पड़ेगी,

ये  स्वपन नहीं अटल सोच है 
बोलती पैरों की हर खरोच है 
मौसमी रुख बदलने की जल्दी है 
ये नई सदी की सरदी है,

बिजली कोई ना कंपन है 
बिखरे संतरी अंग हैं 
नए रंग आसमान के 
नई चाल धरा की है
मीठी गुलाबी सरदी 
हर सेहत से संपूर्ण है।

~नीतू माथुर

Share this story