हंस आसमान में चाहे जैसे उड़े जब वह पानी पर उतरता है, तो बहुत ही खूबसूरत तरीके से जल को स्पर्श करता है:सुधीर मिश्रा

21 -22 वर्ष की अवस्था में उन्होंने थिएटर की शुरुआत की। तब तक यह नहीं स्पष्ट था कि, जाना किधर है? थिएटर के वक्त उन्हें निर्देशक, बादल सरकार मिले, जिन्होंने उनकी सोच को बदला। बादल सरकार को सुधीर मिश्रा अपना गुरु मानते हैं। उन्होंने बताया कि, 22 वर्ष की आयु में उन्हें कुंदन शाह मिले, जिन्होंने उनसे स्क्रिप्ट लिखने को कहा। और परिणाम स्वरुप 'जाने भी दो यारो' जैसी लोकप्रिय फिल्म लोगों को देखने को मिली।
उन्होंने युवा छात्र-छात्राओं के लिए कहा कि, हंस आसमान में चाहे जैसे उड़े जब वह पानी पर उतरता है, तो बहुत ही खूबसूरत तरीके से जल को स्पर्श करता है। इसी तरीके से हम सबको अपना अपना पानी ढूंढना पड़ता है, जिससे कि धरातल पर हमारी लैंडिंग अच्छी हो सके। उन्होंने लखनऊ के बारे में पूछे जाने पर कहा कि, लखनऊ पूरे देश में एक अकेला ऐसा शहर है, जो सिंगुलर टाउन है। ऐसा शहर पूरे देश में नहीं है। उन्होंने लखनऊ के बारे में कहा कि, यहां का सेकुलरिज्म ओरिजिनल है, फेक नहीं है। यहां बदतमीजी भी बहुत तमीज से होती है। वहीं पर उन्होंने कहा कि, लखनऊ के लोग सीधी बात नहीं करते। लेकिन उनकी बातों में एक इश्क सा होता है। उन्होंने कहा कि, तमीज का अर्थ केवल विनम्रता नहीं बल्कि, एक पूरी संस्कृति है। लखनऊ और नवाबियत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि, लखनऊ केवल नवाबियत तक है। ऐसा नहीं है बल्कि उसके आगे और उसके पीछे भी बहुत कुछ है। उनकी फिल्मों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, मैंने कोई परंपरा नहीं शुरू की। लेकिन एक परंपरा को आगे जरुर बढ़ाया। लखनऊ की विरासत पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि, लखनऊ की विरासत के प्रति यहां के लोग थोड़े कम संवेदनशील और गंभीर दिखते है। उन्होंने सिनेमा और समाज के संबंधों पर कहा कि, जो समाज में होता है वही सिनेमा दिखाता है। लेकिन सिनेमा बहुत सी अच्छी चीजे भी दिखाता है और सच्चाई भी दिखता है। लेकिन लोग अच्छी चीजों को कम ग्रहण करते हैं और दूसरी चीजों को ज्यादा कॉपी करते हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में परफेक्शन का जमाना होगा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरे परिदृश्य को बदलने वाला है। इसलिए छात्र-छात्राओं को पढ़ना होगा, मेहनत करनी होगी और टेक्नोलॉजी से अपने आप को जोड़ना होगा। तभी समय के साथ कदम से कदम मिलाकर वह चल सकेगे।
प्राचार्य प्रो विनोद चंद्रा ने सुधीर मिश्रा से आग्रह किया कि, महाविद्यालय में भविष्य में खुलने वाले फिल्म एवं मीडिया सेंटर के लिए उनका सहयोग करे। इस पर सुधीर मिश्रा ने कहा कि,महाविद्यालय के फिल्म मीडिया स्टडीज के लिए वह अपना पूरा योगदान देंगे। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत राइटिंग और एडिटिंग के कोर्स से की जाए तो ज्यादा अच्छा है। राइटिंग और एडिटिंग एक दूसरे के पूरक है। राइटिंग एडिटिंग को सिखाती है और एडिटिंग राइटिंग को सिखाती है। उत्तर प्रदेश में एडिटिंग एवं राइटिंग की प्रतिभाओं का भंडार है। उनको दिशा देना आवश्यक है और वह इस कार्य में महाविद्यालय को अपना पूरा सहयोग प्रदान करेंगे।
लिट़् फेस्ट के दूसरे सत्र में आयोजित संबाद में डॉ अंशु माली शर्मा ने इतिहासकार रवि भट्ट के साथ लखनऊ का नवाबी इतिहास विषय पर संवाद किया। श्री रवि भट्ट ने बताया कि, वह यहां के पूर्व छात्र रह चुके हैं। कई वर्ष पहले यहां के केकेसी इंटर कॉलेज से ही उन्होंने 9वी व 10वी की पढ़ाई की। उनकी जड़ों में जो मजबूती है वह इसी कॉलेज की वजह से है। उन्होंने कहा कि, पढ़ाई में जब मन नहीं लगता था, तब कक्षा में खिड़की पर आकर चारबाग की ट्रैफिक देखकर मन बहलाते थे। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि, लखनऊ भाषा और साहित्य की भूमि है। उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों को यह नहीं मालूम होगा की मिर्ज़ा ग़ालिब पर लखनऊ का बहुत एहसान है। उन्होंने बताया कि, जिंदगी जिंदा दिली का नाम है, लिखने वाले शेख इमाम बक्श और आतिश ने लखनऊ में उर्दू स्कूल ऑफ शायरी की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि,मीर अनीस, मीर तकी मीर, आतिश और मिर्ज़ा ग़ालिब चार मशहूर शायरों में से साढे तीन लखनऊ के ही हैं। कहते हैं कि मिर्ज़ा ग़ालिब आधे लखनऊ के ही थे। उन्होंने बताया कि, रेखता के जगह पर रेखती की शुरुआत लखनऊ से ही हुई थी जो की महिलाओं की आवाज समझी जाती थी।
लेकिन समय बीतने पर में उर्दू की इस समृद्ध विधा के विलुप्त हो जाने से उर्दू शायरी कमजोर हुई। उन्होंने लखनऊ के बारे में बताया कि, यह एक अद्भुत शहर है। 1947 में बंटवारे के वक्त पूरे देश में हिंसा हुई, किंतु लखनऊ में एक भी हिंसा नहीं होना ही यहां की खूबसूरती है। यहां पर शिया शासको का प्रभुत्व रहा और कहते हैं कि सुन्नियों से ज्यादा उनका जुड़ाव हिंदुओं से था। श्री रवि भट्ट ने बताया कि, आज उनकी शूटिंग का सेट, रेड पार्ट 2 लखनऊ में लगा हुआ था। जहां से वह सीधे शूटिंग कॉस्ट्यूम में ही महाविद्यालय लिट फेस्ट में प्रतिभाग करने के लिए पहुंचे। उनका इस महाविद्यालय से पुराना जुड़ाव है जो उनको यहां खींच लाया।
तीसरे सत्र में प्रो एस सी हजेला ने प्रोफेसर आफॅ इमीनेंस, प्रो निशि पांडेय से 'लखनऊ का लिबास और संस्कृति' विषय पर संवाद किया। लखनऊ के लिबास और पहनावे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि, नवाबों के समय में हिंदू और मुस्लिम पुरुषों का पहनावा लगभग एक जैसा था। किंतु महिलाओं का पहनावा अलग होता था। पुरुष नवाबी दिल्ली जैसी पोशाक पहनते थे। किंतु वह उतने भारी भरकम नहीं होते थे, जितने दिल्ली के नवाबों के होते थे। वह लोग हल्के और टाइट पोशाक पहनते थे। महिलाएं बहुत तड़क-भड़क वाले कपड़े नहीं पहनती थी किंतु बहुत ही सुरुचि पूर्ण ढंग से सिले हुए, सोबर दिखने वाले पोशाक पहनती थी। उस समय की चिकनकारी और जरदोजी, आज भी चलन में है। आज के युवा इन पहनावो को अपने हिसाब से पहनते हैं। उस समय की ब्राइडल कॉस्टयूम आज भी प्रचलन में है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि, साहित्य और संस्कृति मानवीय मूल्यो को बढ़ाती है। उनमे गिरावट नहीं आने देती। उनके अनुसार लखनऊ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, लखनऊ के बाहर से आया कोई भी युवा या व्यक्ति इसे 2 वर्षों के भीतर ही अपना लेता है। और इसमें सराबोर हो जाता है।
फेस्ट मे संवाद कार्यक्रमों के साथ पुस्तक प्रदर्शनी भी छात्र-छात्राओं के लिए लगाई गई है, जिसका उद्घाटन का सुधीर मिश्रा एवं वी.एन. मिश्र ने फीता काटकर किया। पुस्तक मेले में देश और प्रदेश के मशहूर प्रकाशनों की पुस्तके प्रदर्शित की जा रही है। छात्र-छात्राओं में इन बुक स्टालों के प्रति एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिला।कार्यक्रम के समापन पर जी सी शुक्ला, मंत्री प्रबंधक ने सभी अतिथियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। प्रो पायल गुप्ता ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर अनेक गणमान्य अतिथि, महाविद्यालय के शिक्षक एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।