मार्ग में जाते हुए विश्वामित्र श्रीराम के द्वारा अहिल्या का उद्धार किये
मुनि की आज्ञानुसार दशरथ अपने दोनों पुत्रों को साथ जाने को कहते है। मार्ग में जाते हुए विश्वामित्र श्रीराम के द्वारा अहिल्या का उद्धार कराते हैं। उसके बाद वन के मार्ग से जाते समय असुर ताड़का राक्षसी उनका रास्ता रोकना चाहती है। विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम ने धर्म की रक्षा लिए अपने एक ही बाण में ताड़का का वध कर देते
है। कथानक के अनुसार ताड़का नाम की राक्षसी अयोध्या के समीप ही सुंदर वन में अपने पति और दो पुत्रों सुबाहू और मारीच के साथ रहती थीं। ताड़का के पास हजार हाथियों के बराबर बल था। उसके तांडव से ही सुंदर वन का नाम ताड़का वन पड़ गया था। महर्षि विश्वामित्र सहित अनेक ऋषि मुनि इन राक्षसों के तांडव से परेशान थे और यज्ञ, जप, तप आदि धार्मिक कार्य करने में परेशान करते थे। महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से अनुरोध कर राम और लक्ष्मण को अपने साथ वन लाए। राम ने ताड़का समेत मारीच और सुबाहू का वध कर धर्म की रक्षा की। जिसको देख दर्शकों ने जय श्रीराम के गगनभेदी जयकारा लगाया। इसके पश्चात विश्वामित्र को राजा जनक द्वारा सीता स्वयंवर का बुलावा निमंत्रण मिलता है,
जिस पर विश्वामित्र राम व लक्ष्मण के साथ जनकपुरी के लिए प्रस्थान करते है, जनकनगरी पहुंचकर विश्वामित्र राम को फूल व फल लाने के लिए भेजते हैं। राम लक्ष्मण माली से पुष्प वाटिका से फूल तोड़ने की अनुमति लेते हैं फूल तोड़ते समय सीता जी अपने सखियों के साथ गौरी पूजन और श्रृंगार के लिए पुष्प वाटिका में आती है तभी श्रीराम को देख सीता जी सहित सखियां उनके शोभा और सौंदर्य को निहारती हैं।
फुलवारी लीला का मंचन देखकर श्रोता भाव विभोर हो उठे। मंचन कार्यक्रम के दौरान कुंवर आनंद पांडे ने राम का अभिनय, सुमित तिवारी ने लक्ष्मण, ओम प्रकाश ने विश्वामित्र, वेद प्रकाश कारूष ने दशरथ, रमेश श्रीवास्तव ने तड़का , राजेश्वरी ने मारीच व दिनेश पाठक ने सुबाहु का किरदार निभाया। जिसको देख दर्शकों ने खूब आनंद लिया। मंचन कार्यक्रम को देखने के दूर दराज से आए हुए लोगों को भीड़ उमड़ी। इस दौरान बाहर से आए हुए कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिगत प्रशासन द्वारा पुलिस की भी तैनाती की गई है।