मेंथा में गुणवत्ता सुधार पर एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

Organizing a one day farmer training program on quality improvement in Mentha
 
Organizing a one day farmer training program on quality improvement in Mentha
मसाला बोर्ड (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार) के प्रादेशिक कार्यालय, बाराबंकी के द्वारा एवं कृषि विभाग, इंटीग्रल कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.ए.एस.टी.), इंटीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ के सहयोग से एक दिवसीय ‘‘मेंन्था पर गुणवत्ता सुधार प्रशिक्षण कार्यक्रम‘‘ का आयोजन ग्राम कुम्हारपुर जनपद बाराबंकी में किया गया ।



कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए डॉ. अम्बरीष सिंह यादव, एसोसिएट प्रोफेसर, कृषि विभाग, आई.आई.ए.एस.टी, इंटीग्रल यूनिवर्सिटी ने ‘‘टिकाऊ उत्पादन के लिए जैविक खेती‘‘ के बारे में जानकारी दी। डॉ. यादव ने किसानों को समझाया कि उर्वरकों के अविवेकपूर्ण उपयोग और दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा कम हो जाती है और अंततः मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो जाता है।

उन्होंने किसानों से मिट्टी में कार्बनिक कार्बन सामग्री को समृद्ध करने के लिए खेत के कचरे, खाद, हरी खाद, वर्मीकम्पोस्ट आदि का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने विभिन्न जैविक खाद तैयार करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया और कीट प्रबंधन के लिए आईपीएम प्रौद्योगिकियों के उपयोग का विस्तार से वर्णन किया। पुदीना एक अत्यधिक व्यावसायिक उन्मुख फसल है और इसे ज्यादातर नकदी फसल के रूप में बेचा जाता है। पुदीना का प्रकार ‘‘पुदीना‘‘ से भिन्न होता है, जिसका उपयोग अक्सर जड़ी बूटी के रूप में किया जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण आवश्यक तेल पौधों में से एक है जिसका उपयोग अक्सर कॉस्मेटिक, औषधीय और अन्य उत्पादों में किया जाता है। भारत में, फसल लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगाई जाती है, जिसमें से 90ः उत्तर प्रदेश राज्य में है। बाराबंकी फसल के मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में से एक हैय वहाँ, मेन्थॉल टकसाल लगभग 80,000 हेक्टेयर भूमि पर व्याप्त है। 

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श्री संदीप सिंह यादव, सहायक निदेशक, मसाला बोर्ड (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार) क्षेत्रीय कार्यालय, बाराबंकी ने निष्कर्षण उद्देश्यों और विकास योजनाओं (मिंट डिस्टिलेशन यूनिट, क्यूजीबीजी, एक्सपोजर विजिट क्यूआईटीपी) के कार्यान्वयन के लिए पुदीना गुणवत्ता के महत्व पर जोर दिया । उन्होंने बताया कि हमारे देश में पुदीना की 52 मसालों की खेती की जाती है. भारत दुनिया में पुदीना तेल का अग्रणी निर्यातक है, और यू.पी. यह देश के कुल क्षेत्रफल का 85 प्रतिशत है। उन्होंने किसानों को पुदीना की खेती, प्रसंस्करण और निर्यात गुणवत्ता (व्यक्तिगत किसान पुदीना आसवन इकाई और एफपीओ क्वालिटी गैप ब्रिज समूह के लिए) से संबंधित मसाला बोर्ड भारत की विभिन्न योजनाओं के बारे में भी बताया।

इसी क्रम में विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉक्टर नीतिश कुमार पांडे ने बदलते हुए जलवायु एवं अंधाधुंध रसायनों के उपयोग को प्रकृति के लिए खतरनाक बताते हुए बताया कि प्राकृतिक खेती के महत्व पर जोर दिया, उन्होंने गाय के गोबर, मूत्र और अन्य प्राकृतिक उत्पादों से बीजामृत, जीवामृत, घनामृत, दशपर्णी आदि जैसे विभिन्न पर्यावरण-अनुकूल कृषि इनपुट तैयार करने के लिए कृषि पद्धतियों में गाय के महत्व का उल्लेख किया। कृषि प्रणाली में पशुधन का एकीकरण पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में मदद करता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में 50 किसानों और छात्रों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए डॉक्टर नीतिश कुमार पांडे सहायक प्राध्यापक ने सभी वैज्ञानिकों एवं प्रशिक्षण में आए हुए किसान भाइयों का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रक्षेत्र प्रबंधक अभिजीत श्रीवास्तव एवं फैसल किरमानी का सराहनीय योगदान रहा।

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