पाताल भुवनेश्वर – कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली का दिव्य उत्सव

नई फसल भगवान भुवनेश्वर को अर्पित करने की प्राचीन परंपरा
 
नई फसल भगवान भुवनेश्वर को अर्पित करने की प्राचीन परंपरा
(रमाकांत पन्त – विभूति फीचर्स)
कार्तिक पूर्णिमा का पर्व पूरे भारत में विशेष उत्साह, भक्ति और दिव्यता के साथ मनाया जाता है। यह दिन राष्ट्रीय स्तर पर दीपोत्सव, श्रद्धा और धार्मिक उत्सवों का अद्भुत संगम माना जाता है। उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद स्थित पाताल भुवनेश्वर क्षेत्र में तो इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। यहां भगवान भुवनेश्वर की अनुकम्पा के स्मरण में देव दीपावली मनाई जाती है।
मान्यता है कि इसी पावन तिथि पर भगवान भुवनेश्वर ने प्रचंड दैत्य त्रिपुर का संहार किया था और त्रिलोक को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। इस उपलक्ष्य में पाताल भुवनेश्वर की पवित्र गुफा में मल्लागर्खा के निवासी अपनी नई फसल भगवान भुवनेश्वर को अर्पित करते हैं। आसपास के गांवों से भी श्रद्धालु इसी परंपरा का पालन करते हुए नई कृषि उपज समर्पित करते हैं।
मंदिर समिति के अध्यक्ष नीलम भंडारी बताते हैं कि प्राचीन काल में महर्षि भृगु ने इस क्षेत्र में तपस्या की थी। उनकी तपस्या के प्रभाव से जब इस भूभाग को भयंकर अकाल से मुक्ति मिली, तब मल्लागर्खा में नए अनाज से भगवान भुवनेश्वर की पूजा आरम्भ हुई। यही परंपरा आज तक अविराम चल रही है।

भृगु ऋषि का पावन क्षेत्र

स्कंद पुराण के मानस खंड में पाताल भुवनेश्वर व समीपस्थ भृगुतम्ब क्षेत्र को दिव्य तपस्थली के रूप में वर्णित किया गया है। मान्यता है कि यहां भृगु ऋषि ने कई वर्षों तक कठोर तप कर त्रिदेव को प्रसन्न किया था। पुराणों में कहा गया है कि इस आश्रम के दर्शन मात्र से जन्म-जन्मांतरों के पापों का विनाश हो जाता है। इस गुफा को भार्गवी भी कहा गया है और तीनों देवताओं का साक्षात वास माना गया है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार हिमालयी क्षेत्र में बारह वर्षों तक वर्षा न होने से भीषण अकाल पड़ा। तब महर्षि भृगु ने इसी क्षेत्र में भगवान शिव की आराधना कर अकाल समाप्त कराया। तब से यह क्षेत्र पुण्य भूमि और सिद्ध तपस्थली के रूप में विख्यात है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा की अनोखी महिमा

गंगोलीहाट स्थित प्रसिद्ध महाकाली दरबार से लगभग 11 किलोमीटर दूर स्थित यह अद्भुत गुफा सदियों के रहस्यों को समेटे हुए है। इसे पाताल लोक का द्वार भी कहा गया है। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर का स्मरण तक हजारों यज्ञों का फल दे देता है और सच्चे भाव से की गई पूजा दस हज़ार अश्वमेध यज्ञों से भी बढ़कर फल देती है। इसी कारण कहा जाता है कि 33 कोटि देवत्व यहां निवास करते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, जप व यज्ञ का विशेष महत्व है। सिख परंपरा में यह दिन गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। काशी में इस तिथि पर देव दीपावली का भव्य आयोजन होता है, जब गंगा तट से राजघाट तक असंख्य दीप जलाकर माता गंगा की आराधना की जाती है।
इसी पावन दिवस पर भगवान विष्णु ने भी मत्स्य अवतार धारण कर वेदों की रक्षा की थी। मान्यता है कि गोलोक धाम में इसी रात रासोत्सव में श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराधा पूजन का आयोजन भी होता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर पाताल भुवनेश्वर में दिखाई देने वाली दिव्यता, लोक परंपरा, पूजा और दीपों की आभा इस क्षेत्र के आध्यात्मिक स्वरूप को अद्वितीय बनाती है।

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