विदेशी धरती पर भारत की गरिमा को धूमिल करते राहुल गांधी

Rahul Gandhi tarnishing India's dignity on foreign soil
Rahul Gandhi tarnishing India's dignity on foreign soil

(डॉ राघवेन्‍द्र शर्मा-विनायक फीचर्स) ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष और राहुल गांधी के नजदीकी सहयोगी सैम पित्रोदा ने दावा किया है कि राहुल गांधी पप्पू नहीं है। उल्लेखनीय है कि सैम पित्रोदा अमेरिका के टेक्सास शहर में भारतीय मूल के छात्रों के समक्ष राहुल गांधी का परिचय प्रस्तुत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी उच्च शिक्षित, पढ़े लिखे और किसी भी विषय पर गहन सोच रखने वाले रणनीतिकार हैं। राहुल गांधी उच्च शिक्षित, पढ़े-लिखे और रणनीतिकार हैं, इस विषय पर भी बात कर लेंगे। फिलहाल शुरुआत इस सवाल से करते हैं कि राहुल गांधी पप्पू हैं अथवा नहीं। बेशक इस मुद्दे पर सैम पित्रोदा के साथ हमारी वैचारिक सहमति है कि जिस राहुल गांधी का परिचय सैम पित्रोदा टैक्सास के छात्रों से करा रहे थे,

वह पप्पू कतई नहीं हैं। सहमति यह कि जो राहुल गांधी अमेरिका के टेक्सास में छात्रों से रूबरू कराए जा रहे थे वे पप्पू तो बिल्कुल नहीं है और उन्हें पप्पू कहा जाना भी नहीं चाहिए। क्योंकि जो उन्हें पप्पू कहता है, दरअसल वह राहुल गांधी की अनेक खूबियों के साथ एक पक्षीय अन्याय कर बैठता है। मसलन राहुल गांधी पप्पू हैं ही नहीं, बल्कि वे राजनीति के एक ऐसे मंझे हुए खिलाड़ी हैं, जो समयानुकूल रणनीति को अपनाते हुए सिर्फ इस बात को ध्यान में रखते हैं कि येन केन प्रकारेण आम आदमी के बीच अपना सियासी उल्लू सीधा होना चाहिए। फिर भले ही ऐसा करने से भारत की छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल ही क्यों ना करनी पड़ जाए।

जैसा कि अक्सर होता रहता है, राहुल गांधी जब कभी भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तब भारतीय गरिमा और उसके दैदीप्यमान आभामंडल को धूल-धुसरित करना नहीं भूलते। इस बार भी राहुल गांधी जब चार दिवसीय अमेरिकी यात्रा पर गए तो हमेशा की तरह इस बार भी अपने कर्तव्यों की इति श्री करना नहीं भूले। विदेशी धरती पर उन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ कहा कि भारत में रोजगार की समस्या है। जबकि चीन में निश्चित रूप से रोजगार की समस्या नहीं है। इसके अलावा वर्जीनिया के हर्नडान में कह बैठे कि भारत में सिखों की धार्मिक स्वतंत्रता पर सवालिया निशान हैं। इस बात को लेकर लड़ाई है कि सिखों को पगड़ी, कड़ा आदि पहनने और गुरुद्वारा जाने की इजाजत दी जाएगी या नहीं? साथ में यह भी कह दिया कि यह समस्या भारत में केवल सिखों के लिए ही नहीं, सभी धर्मों के लिए मुंह बाए खड़ी हुई है।


बड़ा आश्चर्य होता है राहुल गांधी के इस बयान को सुनकर कि भारत में सिखों को उनकी धार्मिक अभिव्यक्तियों को व्यक्त करने पर भी सवालिया निशान अंकित हैं। यह बात भी वह राहुल गांधी कह रहे हैं जिनकी दादी की उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दिए जाने पर कांग्रेस भारत भर के सिखों के खून की प्यासी हो गई थी। वह राहुल गांधी, जिनके पिता ने सिखों के सामूहिक नरसंहार पर यह कहा था कि जब कोई बड़ा बरगद का वृक्ष गिरता है तो धरती थोड़ी बहुत हिलती ही है। जबकि मुझे लिखते हुए बेहद संतोष होता है की तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो अथवा भारतीय जनता पार्टी, हम सब उन बेहद प्रतिकूल हालातों के बीच भी सिखों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए थे, आज भी खड़े हुए हैं और आगे भी खड़े रहेंगे।


 यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने भारत विरोधी मानसिकताओं को प्रोत्साहित करते हुए और भारत की नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले बयान विदेशी मंचों पर  दिये हों। एक बार तो वे भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिका से दखल करने की गुजारिश भी कर चुके हैं। हद तो यह हो गई कि इस बार राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा पर ठीक उसी प्रकार के आरोप लगाए जैसे अनेक भारत विरोधी संगठन लंबे अरसे से इन दोनों राष्ट्रभक्त संगठनों के बारे में गाल बजाते रहे हैं। जैसे - राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस महिलाओं को घर पर और एक खास भूमिका तक सीमित रखना चाहती है।

स्पष्ट करना उचित रहेगा कि इस तरह के शातिराना बयान देने वाले व्यक्ति को पप्पू तो कतई नहीं माना जा सकता। राहुल गांधी का यह गुण तो ऐसी उच्च कोटि का है जिसे ध्यान में रखते हुए उन्हें घर का भेदी ही कहा जा सकता है। वह घर का भेदी जो विदेश की धरती पर अपने ही देश के बारे में नकारात्मक बातें करता हो और चीन जैसे शत्रु देश की तारीफ करने का एक भी अवसर हाथ से जाने देना नहीं चाहता हो। निसंकोच लिखा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर जितने भी देश के नेता विदेश यात्राओं पर जाते हैं, तब वह अपने घरेलू मामलों को बाहरी नेताओं अथवा मीडिया के सामने नहीं रखते। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केवल उन्हीं मसलों को रखा जाता है, जिन्हें उठाने पर या तो हमारे देश को नुकसान पहुंचाने वाली शक्तियां आहत होती हों अथवा जिन मसलों को उठाए जाने पर हमारे देश को किसी भी प्रकार का लाभ अर्जित होता हो। यहां इस बात का उल्लेख करना उचित रहेगा कि भारत में लंबे समय तक कांग्रेस का ही शासन बना रहा।

जाहिर है आज जिसे भाजपा कहा जाता है, कल वह भारतीय जनसंघ हुआ करती थी। तब और अब, जब कभी भी उक्त दल के नेता पक्ष अथवा विपक्ष में रहते हुए विदेश यात्राओं पर गए, तब तब उन्होंने भारत के अंदरूनी मामलों का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिक्र तक नहीं किया। तब भी जबकि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने संविधान की हत्या करते हुए देश पर जबरन आपातकाल थोप दिया था और विरोधी दल के नेता चुन चुन कर जेलों में ठूंसे जा रहे थे। लेकिन वाह रे राहुल गांधीजी, यह जब कभी भी विदेश जाते हैं तो संभवत लिखकर ले जाते हैं कि इस बार भारतीय अस्मिता और उसकी गरिमा को किस प्रकार तार तार करना उचित रहेगा। अब यदि ऐसे व्यक्ति को यदि कोई पप्पू कहता है तो फिर सैम पित्रोदा का असहज होना स्वाभाविक है। उन सैम पित्रोदा का, जो कालांतर में भारतीय नागरिकों को केंद्र में रखकर नस्लीय टिप्पणी करने के कारण ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाए जा चुके हैं।

यह और बात है कि कांग्रेस में उन्हें चुनावी नुकसान से बचने की गरज से पदावनत किया था। किंतु जैसे ही चुनाव संपन्न हुए, उन्हें पुनः इस पद पर बहाल कर दिया गया। जाहिर है उनका यह पुनर्वसन राहुल गांधी के आदेश पर ही किया गया होगा। तो फिर उनका इतना फर्ज तो बनता ही है कि वे राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि को कुछ हद तक तो कम करने का उद्यम करें, सो वे कर भी रहे हैं। बेशक यह उनके द्वारा अपने ऊपर चढ़े हुए एहसानों को उतारने की एक प्रक्रिया भर ही है। लेकिन फिर भी उनकी जुबान से निकले हुए सत्य को नकारा नहीं जा सकता। यह सत्य ही है कि जो राहुल गांधी इस वक्त विदेशी दौरे पर हैं वह पप्पू तो नहीं हैं।

क्योंकि पप्पू भारतीय समाज में उस सरल सहज और बाल सुलभ बुद्धि के बच्चे को कहा जाता है, जो पानी से पप्पा और रोटी से अट्टा ही कह पाता है। लेकिन राहुल गांधी तो ऐसे नहीं हैं! उन्हें पूरी सुनियोजित रणनीति के साथ संविधान खत्म करने का हऊआ खड़ा करना बखूबी आता है। वे चुनावी फायदा लेने के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ लोगों के खातों में हजारों नहीं लाखों रुपए भेजने का झूठ "ठकाठक ठकाठक" वाली शैली में सफलता के साथ बोलना जानते हैं और चुनाव पश्चात उसे भली भांति भूल जाना भी जानते हैं। अब यदि कोई ऐसे चालक दिमाग के धनी राहुल गांधी को पप्पू कहे तो फिर वह अपनी अपरिपक्वता ही जाहिर करेगा और कुछ नहीं।

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