एम०एल०के०पी०जी० कॉलेज का वनस्पति विज्ञान विभाग इस उद्देश्य की पूर्ति मे सदैव तत्पर रहा

The Botany Department of M.L.K.P.G. College was always ready to fulfill this objective.
एम०एल०के०पी०जी० कॉलेज का वनस्पति विज्ञान विभाग इस उद्देश्य की पूर्ति मे सदैव तत्पर रहा
डेस्क ( वैभव )  : उच्च शिक्षा का उद्देश्य विभिन्न अनुशासनों में शोध परक शिक्षण एवं अध्ययन को बढ़ावा देना है। एम०एल०के०पी०जी० कॉलेज का वनस्पति विज्ञान विभाग इस उद्देश्य की पूर्ति मे सदैव तत्पर रहा है। विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ राजीव रंजन इस दिशा में विशेष सक्रिय हैं । अभी हाल ही में उनके निर्देशन में अजय कुमार ने “Studies on foliicolous fungi from Katarniaghat Wildlife suctuary Bahraich, Uttar Pradesh” विषय पर अपना शोध कार्य संपन्न करके पी0एचडी की उपाधि प्राप्त की है।

उनकी मौखिकी परीक्षा उत्कल विश्वविद्यालय उड़ीसा के प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर श्रीरूप गोस्वामी के द्वारा संपन्न हुई जिसमे अजय कुमार ने अपने शोध से संबंधित सभी प्रश्नों का सम्यक उत्तर देकर उक्त महत्वपूर्ण उपाधि अर्जित की है। उनका यह शोध विभिन्न वनस्पतियों के पत्तों में लगने वाले रोगों के कारण और निदान पर आधारित रहा है।

जिसमें अजय कुमार ने 407 पादप प्रजाति (188 वंश) में लगे रोगों का अध्ययन किया और 9 नई कवक प्रजातियों की खोज की। अजय कुमार ने अपने शोध में उक्त प्रजातियों में लगने वाले रोगों के मूल कारणों का पता लगा कर उन रोगों को दूर करने के उपाय वर्णित किए हैं।  उनका यह अध्ययन वनस्पति विज्ञान के अध्येताओं विशेष कर पादप रोग विज्ञान के क्षेत्र में शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। उनकी इस उपलब्धि के लिए विभाग के सभी सहयोगी शिक्षकों डॉ मोहम्मद अकमल, डॉ शिव महेंद्र सिंह, श्री राहुल कुमार, श्री श्रवण कुमार, श्री राहुल यादव, डॉ वीर प्रताप सिंह, विपिन तिवारी, सौम्या शुक्ला, राशि सिंह, धर्मेश श्रीवास्तव एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर जे० पी० पांडेय जी ने हार्दिक बधाई दी।

इसके पूर्व में डॉ राजीव रंजन के निर्देशन में शिवदत्त तिवारी ने पुरावनस्पति विज्ञान से संबंधित शोध कार्य संपन्न करके पी0एचडी की उपाधि प्राप्त की है। उनका यह शोध कार्य हिमाचल प्रदेश की सरकाघाट के शिवालिक के मध्य नूतन अवसादो से विभिन्न प्रकार के पादप जीवाश्मों (तना ,पत्ती और फलों के जीवाश्म) के एक बड़े समुदाय को एकत्रित करने पर है।शिवदत्त तिवारी ने पुरा वानस्पतिक अध्ययन से आवृत्तबीजी के 20 कुल के 30 वंश व 31 प्रजातियों की विद्यमानता की खोज की।प्राप्त किए गए पादप समुच्चय मे फैबेसी कुल के सदस्य अधिक संख्या में पाए गए हैं।

शिवालिक द्रोणियों से प्राप्त समस्त प्रजातियों के मौजूदा वितरण को दर्शाता है कि अधिकतर प्रजातियां 58% सदाहरित वनों में वितरित हैं। जबकि आजकल सरकाघाट के शिवालिक द्रोणो में पर्णपाती वन पाए जाते हैं तथा हरित प्रजातियां इस क्षेत्र से विलुप्त हो रही है जो आज पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश, म्यांमार एवं मलेशिया के सदाहरित वनों में मिलते हैं। जहां अनुकूल जलवायु की परिस्थितियाँ विद्यमान रहती हैं। शिवदत्त तिवारी का यह शोध कार्य पुरा वानस्पतिक अध्ययेताओं और शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा ऐसा विचार उनके मौखिकी में आए हुए पुरा वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ, विद्वान एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ महेश प्रसाद ने व्यक्त किया है। उक्त अवसर पर विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर प्रकृति राय, डॉ किरण गुप्ता, डॉ अंकिता श्रीवास्तव, डॉ ए०के० वर्मा, डॉ आशीष श्रीवास्तव, प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉक्टर महेश प्रसाद, डॉ शिव महेंद्र सिंह, डॉ वीर प्रताप सिंह, श्री विपिन तिवारी, डॉ शिवदत्त तिवारी, जहीन हसन, श्रीमती शालिनी गुप्ता एवं विश्वविद्यालय के छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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