अब अदालत से निपटेगा तुलसीदास जी के जन्मभूमि का विवाद डा. स्वामी भगवदाचार्य ने गोंडा के सिविल कोर्ट में दायर किया 

Now the dispute over the birthplace of Tulsidas ji will be settled by the court. Dr. Swami Bhagvadacharya filed the case in the Civil Court of Gonda.
Now the dispute over the birthplace of Tulsidas ji will be settled by the court. Dr. Swami Bhagvadacharya filed the case in the Civil Court of Gonda.
गोंडा। करोड़ो-करोड़ लोगों के आस्था के प्रतीक प्रभु श्री राम तथा श्री कृष्ण की जन्मभूमि का निर्धारण जब अदालतों द्वारा ही किया जा रहा है, तो श्रीराम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मभूमि का निर्धारण भी ठोस साक्ष्यों के आलोक में अदालत से ही कराया जाएगा। इसके लिए जिले की एक अदालत में वाद योजित किया जा चुका है, जिस पर आगामी 25 नवम्बर 2024 को सुनवाई शुरू होनी है। यह बात सनातन धर्म परिषद तथा श्री तुलसी जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष डा. स्वामी भगवदाचार्य ने रविवार को पत्रकारों से वार्ता के दौरान कही।


गोंडा जिले में सरयू नदी के तट पर स्थित सूकरखेत के निकट राजापुर को गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि घोषित किए जाने की मांग को लेकर पिछले चार दशक से देश भर में जागरूकता अभियान चला रहे डा. भगवदाचार्य ने कहा कि गोस्वामी जी की जन्मभूमि राजापुर (गोंडा) होने के बारे में एक नहीं, अनेक अकाट्य प्रमाण हैं। पूरे देश के विश्वविद्यालयों में जाकर उन्होंने इस विषय पर गोष्ठियों और सम्मेलनों के माध्यम से अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से रखी है। कई बार इस पर विद्वानों द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय भी लिया जा चुका है, किन्तु जनप्रतिनिधियों में इच्छाशक्ति की कमी के कारण यह विवाद ज्यों का त्यों बना हुआ है।

उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा दावा बांदा (अब चित्रकूट) के राजापुर का है, किंतु वह ऐतिहासिक दस्तावेजों द्वारा पूरी तरह से खारिज हो जा रहा है। डा. भगवदाचार्य के अनुसार, आईएएस अधिकारी डांगली प्रसाद वरुण के सम्पादन में प्रकाशित बांदा जिले के गजेटियर के पृष्ठ संख्या 301 पर स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि राजापुर, जिसे मजगंवा भी कहते हैं, बांदा शहर से 88 किमी. दूर यमुना नदी के दाहिने तट पर स्थित है। ‘ऐसा कहा जाता है कि राम चरित मानस के रचयिता, प्रसिद्ध संत तुलसीदास यमुना के तट पर जंगल में आए थे, जहां अब राजापुर है और स्वयं को प्रार्थना व ध्यान में समर्पित कर दिया।

उनकी पवित्रता ने जल्द ही अनेक अनुयायियों को आकर्षित किया, जो उनके आसपास बस गए।’ वह कहते हैं कि बांदा का गजेटियर स्वयं वहां के समर्थकों का दावा खारिज करता है। गजेटियर के अनुसार, तुलसीदास नामक एक संत राजापुर (पूर्व में मजगवां) आए, न कि वहां पैदा हुए। इसके अलावा इम्पीरियल गजेटियर आफ इंडिया (कोलकाता) का वॉल्यूम 21 भी बांदा गजेटियर का समर्थन करता है। गजेटियर के अनुसार, ‘इस शहर (राजापुर) की स्थापना रामायण के प्रसिद्ध लेखक तुलसीदास ने की थी।’ बांदा गजेटियर की ही बात मानें तो स्पष्ट है कि तुलसीदास के वहां आने के बाद उनके अनुयायी सानिध्य में आते गए और बसते गए। परिणाम स्वरूप एक गांव बस गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि राजापुर, गोस्वामी तुलसीदास ने बसाया था। जो व्यक्ति किसी गांव को बसाने वाला हो, वह उसकी जन्मभूमि कैसे हो सकती है?


डा. भगवदाचार्य ने कहा कि किसी के जन्म स्थान से सम्बंधित तथ्य को उजागर करने के लिए जनश्रुति, इतिहास, साहित्यिक शोध के साथ भाषा की परख एवं समाज शास्त्रीय अध्ययन निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। उन्होंने कहा कि मध्ययुगीन कवि भवानीदास ने ‘तुलसी चरित्र’ में लिखा है, ‘दुतियवास अघनास किय, पावन सूकरखेत। त्रय योजन जो अवध ते, दास दरस सुख देत।’ गोंडा का सूकरखेत अयोध्या से पश्चिमोत्तर लगभग 36 किमी दूर स्थित है। यहां गुरु नरहरि दास की कुटिया से मात्र पांच किमी. की दूरी पर स्थित राजापुर ग्राम के एक अनाथ ब्राह्मण पुत्र रामबोला ने बचपन में राम कथा का मर्म समझा था। उन्होंने स्वयं लिखा है, ‘सो मैं निज गुरु सन सुनी, कथा सो सूकरखेत। समुझी नहिं तस बालपन, तब मैं रहेउं अचेत।’ डा. भगवदाचार्य प्रश्न करते हैं कि आज से पांच सौ वर्ष पूर्व बालपन में कोई अनाथ बालक भटककर अपने गांव से पांच किमी.

दूर किसी संत के आश्रम तक तो पहुंच सकता था, किंतु बांदा से गोंडा आने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। उन्होंने कहा कि गोस्वामी जी ने अयोध्या, चित्रकूट आदि पौराणिक स्थलों को छोड़कर अपने किसी भी ग्रंथ में वर्तमान में प्रचलित किसी शहर का उल्लेख नहीं किया है, किन्तु दोहावली में वे अपने ननिहाल बहराइच का उल्लेख करना नहीं भूले हैं : ‘लही आंख कब आंधरे, बांझ पूत कब ल्याइ। कब कोढ़ी काया लही, जग बहराइच जाय।’ समझा जा सकता है कि बाल्यकाल में गुरु के सानिध्य में सूकरखेत तथा वयस्क होने पर अयोध्या निवास करते समय उन्होंने प्रति वर्ष जेठ के महीने में हजारों की संख्या में लोगों को सालार मसऊद गाजी की दरगाह की जियारत के लिए जाते हुए देखा होगा और जनता की अंध भक्ति के विरुद्ध एक आक्रांता की निंदनीय कब्र पूजा पर यह सवाल खड़ा किया होगा। डा. भगवदाचार्य के अनुसार, यह निर्विवाद सत्य है कि ‘रामलला नहछू’ गोस्वामी जी की प्रथम रचना है। गोस्वामी जी के जन्म स्थान के निर्धारण में इस रचना का वैसा ही निर्णायक महत्व है, जैसा किसी विलुप्त प्रजाति की प्रकृति के विनिश्चय में उसके उपलब्ध अश्मीकृत पुरावशेष का अथवा एक पुरातत्व वेत्ता के लिए उत्खनन से प्राप्त कार्बन पदार्थों का होता है। राम लला नहछू में जिस शब्दावली और संस्कारों जैसे वररक्षा, सगाई, गोदभराई, तिलकोत्सव, घोड़चढ़ी, कुंआ घुमाई, हल्दी, नाखुर (नहछू), सिल पोहनी, गवन, अनौनी पठौनी, सीताचार, जयमाल आदि का उल्लेख है, वह आज भी गोंडा में सर्वत्र प्रचलित है। इसके अलावा अन्यत्र कहीं नहीं।


उन्होंने कहा कि विनय पत्रिका में ‘राजा मेरे राजाराम, अवध सहरू है’ के माध्यम से गोस्वामी जी ने साफ कर दिया है कि उनके स्वामी राम हैं तथा उनका नगर अवध है। उनकी जन्मभूमि राजापुर और गुरु नरहरि दास का आश्रम सूकरखेत अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा मार्ग पर ही स्थित है। राजापुर में आज भी भारद्वाज गोत्रीय दुबे ब्राम्हणों के यहां शादी विवाह के अवसरों पर महिलाएं सांझ न्यौतने के समय तुलसी, पिता आत्माराम व माता हुलसी को बुलौवा देकर याद करती हैं। पितृ पक्ष में तुलसी व आत्मा राम के नाम श्राद्ध किया जाता है। यहां तक कि गोस्वामी जी के पिता आत्मा राम दुबे के नाम राजस्व अभिलेखों में राजापुर में भूखंड संख्या 2281 क्षेत्रफल 9.04 एकड़ ‘आत्मा राम का टेपरा’ नाम से दर्ज है। उन्होंने कहा कि 31 मई 1960 को दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय हिन्दी परिषद के अधिवेशन में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने सोरों (एटा) की समस्त सामग्री को अप्रमाणिक, तर्कहीन, जाली एवं निराधार सिद्ध कर दिया। डा. नगेन्द्र के बार-बार आह्वान करने के बाद भी अधिवेशन में उपस्थित कोई विद्वान इसका निराकरण करने के लिए आगे नहीं आया।

जनवरी 1997 में लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने बांदा व एटा के दावों को तथ्यहीन एवं निराधार माना तथा गोंडा के राजापुर को तुलसी की प्रामाणिक जन्म भूमि के रूप में स्वीकार किया। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में कुलपति प्रो. सुरेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में आयोजित चतुर्थ विश्व तुलसी सम्मेलन में विद्वानों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि गोस्वामी तुलसीदास की जन्म स्थली गोंडा जिले का राजापुर ही है। भविष्य में इस विषय पर और विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद अब तक अधिकारिक रूप से राजापुर (गोंडा) को गोस्वामी जी की जन्मभूमि घोषित नहीं किया जा सका है। इसके विपरीत राज्य सरकार ने राजापुर (चित्रकूट) के विकास के लिए 21 करोड़ की धनराशि स्वीकृत करके साढ़े चार करोड़ रुपए अवमुक्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अवमुक्त धनराशि को तत्काल रोकने के लिए शासन को तथ्यों से अवगत कराते हुए पत्र लिखा गया है। साथ ही जन्मभूमि के विवाद के निर्धारण के लिए केंद्र व राज्य सरकारों समेत सभी सम्बद्ध पक्षों को पार्टी बनाते हुए अदालत का दरवाजा भी खटखटाया गया है। अदालत आगामी 25 नवम्बर 2024 को इस पर सुनवाई शुरू करेगी।

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