धर्मनिष्ठ समय से परे हो जाता है, शाश्वत हो जाता है जैसे सूर्य

sun rise
 अंततः एक दृश्य है

'भूत' ही भविष्य है

आनेवाला समय आख़िरकार अतीत में समाहित होगा। हर आगामी का अंत अतीत ही है। चाहे वो समय कितना भी अच्छा हो लेकिन ठहरेगा नहीं! अतीत उसको निगल ही लेगा। हम नश्वर का आनंद और विलाप करते हैं। एक अतीत हमारी भी प्रतीक्षा में है। पूरे ब्रह्मांड में समय की रेल चल रही है जो कभी नहीं रुकती। यह रेल तुम्हें कहीं-भी कभी-भी उतार सकती है। यह तुम्हारे कर्मों और भाग्य के ऊपर निर्भर है कि उतरने में तुम्हें कितनी चोट आएगी। हो सकता है तुम आहिस्ता से उतर जाओ या कि बेरहमी से फेंक दिए जाओ। तुम खुद भी नहीं जानते कि तुम्हारी यात्रा कितनी लम्बी होगी।

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तुम्हें अपनी यात्रा और सहयात्रियों से मोह कितना था। मोह रहेगा तो निश्चय ही विलाप रहेगा और यदि धर्म रहे तो ब्रह्ममार्ग प्रस्फुटित होता है। समय धर्म को एक खँरोच भी नहीं पहुँचा सकता। समय में धर्मावलंबी को धारण करने का सामर्थ्य भी नहीं। धर्मनिष्ठ समय से परे हो जाता है, शाश्वत हो जाता है जैसे सूर्य।

सूर्य के समान तो नहीं लेकिन प्रकाश हमारे भीतर भी है और वह विस्तार चाहता है...वो भी इसी यात्रा में। अज्ञानता बस ये है मनुष्य का उद्देश्य केवल यात्रा का आनंद है। तुम्हारी यात्रा निरन्तर आगे बढ़ रही है। इस रेल का कोई गन्तव्य नहीं लेकिन यात्रियों का है। तुम केवल एक समययात्री हो।

© जया मिश्रा 'अन्जानी'

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