राजनीति में राष्ट्रीय दृष्टि तथा राष्ट्रीयता का भाव होना चाहिए

There should be a national vision and a sense of nationalism in politics
There should be a national vision and a sense of nationalism in politics
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय).श्री जयनारायण मिश्र, महाविद्यालय, केकेसी,  लखनऊ मे आज संविधान दिवस के अवसर पर छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों के बीच संविधान दिवस व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।  इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो राकेश कुमार मिश्रा, राजनीति शास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने संविधान निर्माण एवं उसके वर्तमान संदर्भों पर विस्तृत बातें छात्र-छात्राओं से साझा की। 


उन्होंने कहा कि जिस समय संविधान बन रहा था वह वक्त कुछ और था।  उस समय कांग्रेस पार्टी बहुमत में थी फिर भी संविधान निर्माण में पार्टी का दखल न के बराबर था। क्योंकि सभी लोग किसी राजनीतिक मंतव्य से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय महत्व के लिए कार्य कर रहे थे। भारतवर्ष के प्रथम राष्ट्रपति, डॉ राजेंद्र प्रसाद की अगुवाई में स्थापित संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी का कार्यभार, विधिवेत्ता एवं विद्वान, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी के हाथ में था। उनकी टीम में 7 सदस्य थे और श्री के.एम. मुंशी जी को छोड़कर कोई भी सदस्य पार्टी का नहीं था। 

संविधान सभा एवं उसकी समिति के सदस्यों की सबसे बड़ी खासियत थी, कि सभी सदस्य अपने-अपने क्षेत्र के उत्कृष्ट विद्वान और विशेषज्ञ थे। समूची संविधान सभा की आवाज, भारत के हर एक नागरिक की आवाज थी। संविधान में शामिल की जाने वाली छोटी से छोटी बात पर भी विस्तृत चर्चा होती थी और किसी मुद्दे पर यदि मतभेद होता था तो उसका हल भी चर्चा के ही माध्यम से निकाला जाता था। उन्होंने बताया कि भारत का संविधान सबसे बड़ा संविधान और लिखित संविधान है। इसे कई राष्ट्रों के संविधानों को अध्ययन करके बनाया गया।

उन्होंने कहा कि संविधान का हर निर्णय लोगों की सर्वसम्मति से लिया गया। संविधान सभा की चर्चाएं बहुत ही गंभीर और देश को दूरगामी दिशा देने वाली  होती थी। संविधान सभा में होने वाली बहस कोई आम बहस नहीं थी। इस बात का सभी को एहसास था कि यह संविधान राष्ट्र निर्माण की  आधारशिला बनेगा। अतः सभी अपने दायित्वों को लेकर के गंभीर होते थे। उन्होंने कहा कि आज की स्थिति को यदि हम देखें तो संविधान में अनेकों अनेक संशोधन केवल पिछले 20 से 25 वर्षों में कर दिए गए। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के 200 साल के इतिहास में अब तक केवल 20 से 25 संशोधन किए गए होंगे।

उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है की संविधान स्वतंत्रता के उपरांत ही बना  इसको बनाने के प्रयास स्वतंत्रता मिलने से पूर्व भी किए गए थे। जैसे 1928 में नेहरू रिपोर्ट,  हिंदू महासभा का 1945 का संविधान एवम एम एम रॉय का 1944 का संविधान। उन्होंने कहा कि संविधान को जैसे ही अंगीकार किया गया कुछ विरोध के भी स्वर आए  कुछ लोगों ने उसे उधार का संविधान तक कहा और कहा कि एक ये एक पैच वर्क है और इसमें हमारी भारतीयता की मूल आत्मा शामिल नहीं है। लोगों ने कहा कि ब्रिटिश इंडिया एक्ट 1935 को ही ज्यादातर संविधान में शामिल किया गया,

 तो आजाद भारत का पूर्णतया आत्मस्थ और आत्मनिर्मित संविधान कहां रहा। उन्होंने कहा कि संविधान बनने के उपरांत लोकनायक जयप्रकाश नारायण इससे काफी निराश थे। उन्होंने एक वैकल्पिक संविधान की भी रचना की और इसका नाम रिकंस्ट्रक्शन आफ इंडियन पालिटी 1958 रखा था। उन्होंने कहा कि आज भी राजनीतिक और सामाजिक जीवन में लोग आलोचना करते हैं किंतु यह आलोचनाएं राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर के होती हैं। ऐसी राजनीति देश को खंडित करती है। राजनीति में राष्ट्रीय दृष्टि तथा राष्ट्रीयता का भाव होना चाहिए। उन्होंने कुछ दशकों में आई राजनीति में नैतिक मूल्यों की गिरावट पर भी चर्चा की  उन्होंने कहा कि एक अच्छी राजनीतिक इच्छा शक्ति से संविधान और लोकतंत्र को पोषण मिलता है।  उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के विचारों को पूरी तरीके से संविधान में आत्मसात नहीं किया गया। उनकी कुछ बातों को नीति निर्देशक तत्वों के रूप मे अंगीकृत किया गया।  इस अवसर पर उन्होंने उपस्थित शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के साथ संविधान की प्रस्तावना एक साथ वाचन भी  किया।

प्रा प्रोफेसर विनोद चंद्रा ने इस अवसर पर सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि संविधान ही हमारे देश की मूल आत्मा है। और संविधान निर्माताओ ने हमें एक इशारा दिया है कि संविधान बनाना हमारा काम था। अब इसको जीवंत बनाए रखना, इसका पालन करना और इसकी उत्कृष्टता के आलोक में देश का विकास करना हमारा फर्ज है। आज के दिन हम सब इस बात को ना भूले की संविधान निर्माण में कितनी कठिनाइयां थी और कितने महत्तम प्रयास किए गए। हमें विश्व का सबसे सुंदर संविधान प्राप्त हुआ है जो हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है। अतः हम सबको अपने लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए संविधान को भी मजबूती से दिशा देते रहना आवश्यक है। 

इस अवसर पर शिक्षक शिक्षिकाओं एवं छात्र-छात्राओं को राष्ट्रपति, माननीय द्रौपदी मुर्मू के संभाषण का लाइव टेलीकास्ट भी दिखाया गया। व्याख्यान माला के सफल समापन पर डॉ सन्निवेश मिश्रा, प्रभारी विधि संकाय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।  इस अवसर पर राजनीति शास्त्र विभाग के प्रो बृजेश मिश्रा, डॉ अंशुमालि शर्मा सहित महाविद्यालय के अनेक शिक्षक एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

Share this story