Ticketless train travel : अराजकता और 'चोरी और सीनाजोरी' की बढ़ती प्रवृत्ति

Ticketless train travel: Chaos and the growing trend of 'theft and bravado'
 
Ticketless train trave

(डॉ. सुधाकर आशावादी - विनायक फीचर्स)

संचार क्रांति और मोबाइल मैसेज बॉक्स में डिजिटल टिकट के चलन के बाद से, भारतीय रेलवे में बेटिकट यात्रियों के हौसले आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गए हैं। जहाँ पहले प्लेटफ़ॉर्म पर प्रवेश के लिए भी टिकट लेना ज़रूरी था, वहीं अब बेख़ौफ़ होकर रेल यात्रा की जा सकती है।

कभी बेटिकट यात्रा करना एक 'हुनर' माना जाता था, जिसके पकड़े जाने पर भारी जुर्माना वसूला जाता था। जुर्माने का भुगतान न करने वाले यात्रियों को जेल भेजने की भी ख़बरें आती थीं। हालांकि, अब ऐसे समाचार कम ही सुनने को मिलते हैं कि रेलवे ने सघन धरपकड़ अभियान चलाकर बेटिकट यात्रियों से जुर्माना वसूला हो। रेलवे स्टेशनों के प्रवेश और निकास द्वार पर टिकट चेकिंग में आई ढिलाई का सर्वाधिक लाभ ऐसे यात्री उठा रहे हैं।

एसी कोचों में महिला यात्रियों का बढ़ता दुस्साहस

विगत कुछ समय से रेलवे में एक नई और चिंताजनक प्रवृत्ति देखने को मिली है: वातानुकूलित (AC) कोच में बेटिकट यात्रा करने वाली महिलाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। पहले भी दैनिक यात्री (महिला या पुरुष) समूह बनाकर किसी भी कोच में यात्रा करते रहे हैं, जिनके सामने रेल प्रशासन अक्सर घुटने टेकता रहा है। किंतु वर्तमान में महिलाओं का बेटिकट यात्रा करना और पकड़े जाने पर टिकट परीक्षक (TTE) पर फर्जी आरोप लगाना एक फैशन बन चुका है।

  • वायरल घटनाएँ: एक महिला अध्यापिका द्वारा टीटीई पर आरोप लगाने का वीडियो वायरल हुआ, जिसका परिणाम सार्वजनिक नहीं हुआ। इसी प्रकार, प्रथम श्रेणी के कोच में दो महिलाओं ने न केवल बेटिकट यात्रा की, बल्कि टीटीई को धमकाते हुए मुफ्त यात्रा को अपना अधिकार बताया और अपने रेलवे में कार्यरत रिश्तेदार का हवाला दिया।

यह घटनाएँ यह गंभीर सवाल खड़ा करती हैं कि क्या किसी रेलवे कर्मचारी का रिश्तेदार होने मात्र से किसी को भी किसी भी कोच में बेटिकट यात्रा करने का अधिकार मिल जाता है? और क्या महिला होने के आधार पर बेटिकट यात्रा की छूट को नारी सशक्तिकरण का प्रभाव माना जाए?

रेलवे की अक्षमता और अराजकता की चुनौती

भारतीय रेल देश के आवागमन का प्रमुख साधन और भारत सरकार का एक उपक्रम है। जहाँ एक ओर सामान्य और अनारक्षित बोगियों में लाखों गरीब परिवार बेटिकट यात्रा करते हैं, वहीं वातानुकूलित कोचों में महिला यात्रियों की यह 'चोरी और सीनाजोरी' जैसी घटनाएँ रेलवे की अक्षमता और लापरवाही को उजागर करती हैं।

यह प्रवृत्ति रेलवे प्रशासन के लिए एक कठिन चुनौती बन सकती है। यदि इस प्रकार की अराजकता के विरुद्ध कठोर दंडात्मक कार्यवाही नहीं की गई, तो यह न केवल राजस्व का नुकसान करेगी, बल्कि यह प्रवृत्ति सामान्य आरक्षित यात्रियों के लिए भी परेशानी और अव्यवस्था का कारण बनेगी, जिनके पास वैध टिकट हैं। रेलवे को अपनी चेकिंग प्रणालियों को सुदृढ़ करने और ऐसे अराजक व्यवहार के विरुद्ध कठोर कानूनी नज़ीर पेश करने की आवश्यकता है।

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