तुलसी संगत साधु की, हरे कोटि अपराध
मृत्यु तो अवश्यंभावी है लेकिन मृत्यु आने से पहले संसारी व्यक्ति कई बार हानि,अपमान,वियोग के भय से मृत्यु तुल्य कष्ट पाते हैं शुकदेव भगवान जैसे सद्गुरु की प्राप्ति हो जाए तो मनुष्य मृत्यु के भी भय से मुक्त हो जाता है । राजा परीक्षित ने संत के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया तो उन्हें भी इस कर्म का फल भुगतना पडा।
किंतु साधू का श्राप भी ईश्वर की भक्ति का साधन बन गया।सुख एवं दुख तो संसार में रहने वाले लोगों को आते रहते हैं परंतु दुख में भी जो प्रभु की कृपा को अनुभूति करता है वही प्रभु का सच्चा भक्त है कुंती महरानी ने भगवान श्रीकृष्ण को दुख में स्मरण किया और भगवान की प्राप्ति की ।दुख भगवद प्राप्ति का एक साधन है, दुख में जीव पाप कर्म करता है।
भक्ति का फल केवल ईश्वर का दर्शन है भक्ति का प्रभाव ऐसा है कि भगवान स्वयं भक्त के लिए दौडे चले आते हैं , विदुर जी ने ऐसी भक्ति की, कि द्वारिकाधीश भगवान उनके घर पर आए। सुलभा महरानी ने प्रभु को केले के छिलके खिलाए और भगवान की कृपा प्राप्त की भगवान ने विदुर जी का जीवन कृतार्थ कर दियाnमन का नियत्रंण संयम से होता है कपिल भगवान का आख्यान सुनाते हुए आचार्य श्री संतोष भाईजी ने बताया मन चंचल है उसका नियंत्रण अभ्यास एवं वैराग्य से संभव है । महाराज जी ने सत्संग का महत्व बताते हुए कहा कि एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनिआध,तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध आध्यात्मिक चर्चा जरूर करना चाहिए
कथा में आज मुख्य रूप श्रीमती रेखा श्रीवास्तव,सुशील मोहन शर्मा,गणेश अग्रवाल,सुनीता अग्रवाल,अजीत सोनी, वीर सिंह,निर्देश दीक्षित,धर्म देव सिंह ,नंद लालजी,राम कुमार सिंह,श्यामसुंदरजी ,जितेंद्रसिंह, राम प्रकाशजी कमलेश कुमारमिश्रा,निरंजन जी,इंद्र प्रकाशजी ,उमा प्रसाद पांडे , उदय भान जी,रेणु मिश्र ,घनश्याम त्रिपाठी,रंजीत मिश्रा,मुदित बीबपाठक,तनय सोनी आजेंद्र मिश्र,अथर्व राज,अनुज सिंह, राहुल सिंहआदि बहुत से भक्त उपस्थित रहे कथा श्रवण कर आत्मा विभोर हुए।