What is Kachchatheevu Island Issue : क्या है कच्चाथीवू द्वीप विवाद, क्यों लोकसभा चुनाव के बीच कर रहा ट्रेंड
Wikipedia के अनुसार
श्रीलंका का कच्चाथीवू द्वीप विवादों से घिरा है. इस विवाद की शुरुआत भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के कार्यकाल के दौरान हुई थी. वहीं, इस द्वीप को लेकर पीएम मोदी (PM Modi) ने कांग्रेस और इंडी (INDIA) पर निशाना साधा! लेकिन इससे पहले आपको यह जानना ज़रूरी है कि कच्चाथीवू द्वीप क्या है और इससे जुड़ा विवाद क्या है?
क्या और कहां है कच्चाथीवू द्वीप?
विकिपीडिया के अनुसार, कच्चाथीवू द्वीप एक आइलैंड है, जो भारत-श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ में फैला हुआ है. यह एक निर्जन द्वीप है. अतः यहाँ बसना संभव नहीं है. यह द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच हिन्द महासागर में स्थित है. यह द्वीप 1.6 किलोमीटर लंबा और 300 मीटर चौड़ा है. भारत से इस द्वीप की दूरी लगभग 33 किमी है. इस द्वीप
यानी रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है.
वहीं श्रीलंका से यह द्वीप लगभग 62 किमी दूर है. ऐसा बताया जाता है कि इस द्वीप पर एकमात्र चर्च है, जिसका निर्माण 20 सदी में अंग्रेजों द्वारा द्वारा किया गया था. इस चर्च का नाम सेंट एंथोनी है. कहा जाता है कि इस चर्च का संचालन भारत और श्रीलंका दोनों ही देशों के पादरी करते हैं.
क्या है कच्चाथीवू द्वीप विवाद?
दरअसल, कच्चाथीवू द्वीप विवाद का सिलसिला साल 1974 के दौरान का है. उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई बार श्रीलंका के साथ कच्चाथीवू द्वीप के विवाद को सुलझाने की कोशिश की. इस मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला काफ़ी लंबा चला. कुछ साल बाद इंदिरा गांधी ने कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया. उनके इस निर्णय का साथ पूरी कांग्रेस सरकार ने दिया. हालाँकि, इंदिरा गांधी उस वक्त इस द्वीप के रणनीतिक महत्व पर ध्यान नहीं दे पाई. इंदिरा गांधी ने इस द्वीप को दोनों देशों के बीच एक मैत्रीपूर्ण संबंध और आपसी रिश्ते मज़बूत करने का मार्ग समझा.
इस द्वीप के लिए दोनों देशों के बीच हुआ समुद्री समझौता
श्रीलंका और भारत के बीच एक समुद्री समझौता हुआ! इस समझौते के तहत ही श्रीलंका को कच्चाथीवू द्वीप (Kachchatheevu Isaland) मिला. इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की अनुमति दी गई. लेकिन भारतीय मछुआरों के इस द्वीप पर मछली पकड़ने को लेकर कई विवाद आये दिन सुनने को मिलते हैं. वहीं, साल 1976 में दोनों देशों के बीच एक और समझौता हुआ. इस समझौते के तहत किसी भी देश को दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने की अनुमति नहीं थी.
अब तक जारी है यह विवाद
1983 में श्रीलंका में गृहयुद्ध शुरू हुआ. जिसके बाद भारतीय मछुआरों के लिए श्रीलंका जाना आम बात थी. इसको लेकर श्रीलंकाई काफ़ी नाराज़ थे. वहीं साल 2009 में जाफना में गृहयुद्ध समाप्त हुआ तो श्रीलंका ने अपनी समुद्री सुरक्षा और मज़बूत कर दी. आपको बता दें कि इस द्वीप पर आज भी जब भारतीय मछुआरे मछली पकड़ने जाते हैं तो श्रीलंकाई सेना द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लेती है. यही विवाद अब तक जारी है.
लोकसभा चुनाव में किसको होगा फ़ायदा?
इंदिरा सरकार के दौरान कच्चाथीवू द्वीप समझौते और भारतीय मछुआरों में नारागज़ी के बावजूद दक्षिण में कांग्रेस का वोट प्रतिशत BJP से ज़्यादा है. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर दक्षिण भारत में अपनी सत्ता सँभाले रखी है. आपको बताते चलें कि दक्षिण में भारतीय मछुआरों की संख्या बेहद ज़्यादा है. वहीं, इन मछुआरों का जीवनयापन का एक मात्र ज़रिया मछली पालन है. कच्चाथीवू द्वीप विवाद ने मछुआरों के जीवन को पूरी तरह से प्रभावित किया है. ऐसे में, अगर केंद्र की भाजपा सरकार इस मसले को गंभीर से लेती है तो पार्टी के वोट बैंक पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है.