क्यों दूर रहे उपचुनाव से ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ

Why Jyotiraditya Scindia and Kamal Nath stayed away from the by-elections
Why Jyotiraditya Scindia and Kamal Nath stayed away from the by-elections
(पवन वर्मा-विनायक फीचर्स)  मध्यप्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ काफी कद्दावर नेता माने जाते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले कांग्रेस में थे फिर वे भाजपा में आ गए और वर्तमान में वे केंद्र सरकार में मंत्री हैं। केंद्र में मंत्री होने के बाद भी वे मध्यप्रदेश की राजनीति में अप्रसांगिक नहीं है।यहां उनका रुतबा और दबदबा दोनों बरकरार है। वहीं कई बार केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ  के कद का तो मध्यप्रदेश कांग्रेस में आज  कोई नेता है ही नहीं। ऐसे में हाल ही में हुए विधानसभा के उपचुनावों से इन दोनों नेताओं की अनुपस्थिति प्रदेश की राजनीति में चर्चा का विषय बन गई है।। प्रदेश में संभवतः ऐसा पहली बार हुआ है जब ये दो दिग्गज नेता चुनाव प्रचार से नदारद रहे।


मध्य प्रदेश के दो विधानसभा क्षेत्रों में 13 नवंबर को मतदान हुआ है। इसमें एक क्षेत्र केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल में है, जबकि दूसरा विधानसभा क्षेत्र केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रभाव क्षेत्र का है। शिवराज सिंह चौहान ने तो अपने दबदबे वाले क्षेत्र में जमकर प्रचार किया यहां तक कि उनके पुत्र कार्तिकेय चौहान ने भी भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार किया लेकिन दूसरे केंद्रीय मंत्री  ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने को उपचुनाव के प्रचार से दूर रखा।  

Why Jyotiraditya Scindia and Kamal Nath stayed away from the by-elections
अब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरशोर से चल रही है कि आखिर भाजपा और कांग्रेस में ऐसा क्या हुआ कि दोनों ही दल के प्रमुख नेताओं में शामिल सिंधिया और कमलनाथ ने इन उपचुनावों में प्रचार से दूरी बना ली।
 सिंधिया और रावत की दूरियां लोकसभा चुनाव के दौरान विजयपुर से कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत भाजपा में शामिल हो गए थे। बाद में उन्होंने विधानसभा से  इस्तीफा दिया। उनके इस्तीफा देने से विजयपुर सीट रिक्त हुई और इस पर उपचुनाव हुआ। इस बार रावत को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया। रामनिवास रावत, सिंधिया राजघराने के करीबी माने जाते थे।

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के वे करीबी थे। माधवराव सिंधिया के निधन के बाद वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीक हो गए। कांग्रेस में राम निवास रावत को हमेशा से सिंधिया गुट का ही माना गया। वर्ष 2018 में रामनिवास रावत को कांग्रेस ने मध्य प्रदेश कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया।  वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में रामनिवास रावत विजयपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी थे, लेकिन वे चुनाव हार गए थे। इसी दौरान मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनी और सवा साल बाद 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।

इस कथा का क्षेपक यह रहा कि हमेशा सिंधिया के साथ रहने वाले रावत सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल नहीं हुए। इसके बाद वर्ष 2023 में रावत फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बन गए। इसके बाद अचानक उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। इन पांच सालों में घटनाक्रम तेजी से बदलता रहा और रामनिवास रावत तथा ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच दूरियां तेजी से बढ़ती गई, जिसका नतीजा यह हुआ कि रावत के भाजपा में आने के बाद भी सिंधिया उनके चुनाव में प्रचार के लिए विजयपुर नहीं आए। हालांकि सिंधिया से दूरी होने के बाद  रावत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के करीबी हो गए। इसके चलते मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उन्हें न सिर्फ अपने मंत्रिमंडल ने शामिल किया, बल्कि उन्हें वन विभाग जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी दिया। यह विभाग भाजपा के एक आदिवासी वर्ग से आने वाले मंत्री नागर सिंह चौहान के पास था। उनसे यह विभाग वापस लिया गया और रामनिवास रावत को यह अहम विभाग दिया गया। इन सबमें खास बात यह भी रही कि रावत को मंत्री तब बनाया गया जब वे विधायक भी नहीं थे।


 मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर 

विजयपुर उपचुनाव में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की प्रतिष्ठा इसलिए भी दांव पर लगी हुई है,क्योंकि विजयपुर से कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत को भाजपा में लाने का काम स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ही किया था। इस विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। यहां से 1980 के बाद से भाजपा सिर्फ तीन बार ही विधानसभा का चुनाव जीत सकी। हालांकि रावत इस सीट से 6 बार विधायक रह चुके हैं। ऐसे में सिंधिया का इस सीट पर प्रचार के लिए नहीं आना प्रदेश भाजपा की राजनीति में सब ठीक चल रहा है इस पर सवाल खड़े कर रहा है।

 क्या नाराज है कमलनाथ 

इधर कमलनाथ जो एक साल पहले तक मध्य प्रदेश कांग्रेस के सर्वेसर्वा हुए करते थे, अब कांग्रेसी दृश्यपटल से ओझल से दिखाई देते हैं। वे इन उपचुनावों में कहीं दिखाई ही नहीं दिए। उनका प्रचार का कार्यक्रम  तय जरुर  हुआ था, लेकिन एक दिन पहले उनका एक संदेश प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को मिला कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिए वे अपना दौरा रद्द कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के विधानसभा चुनाव हारने के बाद से कमलनाथ कांग्रेस में हाशिए पर माने जा रहे हैं। उन्हें आनन फानन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाया गया। कांग्रेस ने उन्हें  मल्लिकार्जुन खड़गे की टीम में भी जगह नहीं दी । हालांकि इन सबके बीच उनके बेटे नकुलनाथ को जरूर पार्टी ने छिंदवाड़ा से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया, लेकिन तब भी पार्टी के बड़े नेताओं ने छिंदवाड़ा से दूरी बनाए रखी। परिणामस्वरुप कमलनाथ अपने बेटे को चुनाव भी नहीं जिता पाए। इन सबसे लगता है कि कमलनाथ कहीं न कहीं अपनी पार्टी के इस व्यवहार से नाराज है। इसी बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अपनी टीम का गठन कर दिया, उसमें भी कमलनाथ के समर्थकों को वह वजन नहीं दिया गया, जिसकी उम्मीद उनके समर्थकों को थी। बीच-बीच में यह भी खबरें चलती रही कि कमलनाथ भाजपा में जा रहे हैं, इन सभी खबरों का कमलनाथ लगातार खंडन करते रहे। अब उनके उपचुनाव में प्रचार नहीं करने को लेकर भी तरह तरह की चर्चाएं प्रदेश में चल रही है और अमूमन शांत रहने वाली मध्यप्रदेश की राजनीति में दोनों प्रमुख दलों के नेताओं की चुनाव प्रचार में खामोशियां काफी कुछ कह रही हैं।

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