यम द्वितीया: भगवान चित्रगुप्त पूजन का पर्व

 
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लेखिका: अंजनी सक्सेना | स्रोत: विनायक फीचर्स
भारतीय संस्कृति में कायस्थ समुदाय को एक विद्वान, चतुर और प्रशासनिक रूप से दक्ष जाति के रूप में देखा जाता है। प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में, विशेष रूप से गुप्त काल से लेकर मुगल और मराठा शासन तक, कायस्थ राजकीय कार्यों में अत्यंत विश्वसनीय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। प्रशासन, लेखा-जोखा और राजस्व विभागों में विशेषकर पटवारी जैसे पदों पर कायस्थों की प्रमुख भागीदारी थी।

भगवान चित्रगुप्त: कायस्थों के आदि पुरुष

कायस्थ स्वयं को धर्म के लेखाकार और मानव कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले देवता भगवान चित्रगुप्त का वंशज मानते हैं। धर्मशास्त्रों में चित्रगुप्त जी को धर्मराज यम के सहायक बताया गया है, जो प्रत्येक जीव के पाप और पुण्य का लेख संकलित करते हैं।
पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने चार वर्णों की सृष्टि की — ब्राह्मण को मुख से, क्षत्रिय को भुजाओं से, वैश्य को पेट से और शूद्र को चरणों से उत्पन्न किया। इसके पश्चात, उन्होंने अपनी काया से एक दिव्य पुरुष की रचना की — जो श्यामवर्ण, विशाल भुजाओं वाले, कमल समान नेत्रों से युक्त और हाथों में कलम-दवात धारण किए हुए थे। ब्रह्मा जी ने उन्हें देखकर पूछा, “तुम कौन हो?” उस पुरुष ने उत्तर दिया, “मैं आपकी ही काया से उत्पन्न हुआ हूँ, कृपया मेरा नाम और धर्म निर्धारित करें।”
ब्रह्मा जी ने कहा, “चूंकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ होगा और चित्त की गुप्त अवस्था से उत्पन्न होने के कारण तुम चित्रगुप्त कहलाओगे। तुम्हारा कार्य धर्मपुरी में रहकर प्राणियों के कर्मों का लेखा रखना होगा।”

चित्रगुप्त जी की वंश परंपरा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान चित्रगुप्त के दो विवाह हुए — एक सूर्य कन्या से और दूसरा नाग कन्या से। इनसे बारह पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम पर कायस्थों की बारह उपजातियां मानी जाती हैं। चित्रगुप्त जी ने अपने पुत्रों को वेद-शास्त्रों की शिक्षा दी और उनके लिए धार्मिक कर्तव्यों की रूपरेखा भी बनाई। इनमें प्रमुख हैं — देवताओं की आराधना, पितरों का तर्पण और अतिथियों की सेवा। साथ ही, उन्होंने महिषासुर मर्दिनी की पूजा का भी आदेश दिया।

यम द्वितीया और चित्रगुप्त पूजा

भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विशेष महत्व यम द्वितीया के दिन होता है, जिसे भाई दूज के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली के दूसरे दिन मनाई जाने वाली इस तिथि पर कायस्थ समाज अपने घरों में या सामूहिक रूप से भगवान चित्रगुप्त तथा कलम-दवात की पूजा करता है। इसके अतिरिक्त, होली के बाद आने वाली दूज तिथि को भी चित्रगुप्त पूजन का विशेष महत्व है।
पूजा के दौरान विशेष मंत्रों के साथ चित्रगुप्त जी की स्तुति की जाती है। इन मंत्रों में उन्हें दवात, कलम और खल्ली धारण करने वाले ज्ञान के अधिष्ठाता के रूप में स्मरण किया जाता है। धार्मिक विश्वास है कि केवल कायस्थ ही नहीं, अन्य जातियों के लोग भी यदि श्रद्धा से चित्रगुप्त पूजन करें, तो उनके पाप नष्ट होते हैं, आयु में वृद्धि होती है और उन्हें नरक के कष्ट नहीं भोगने पड़ते।

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