बद्रीनाथ के पीछे की कहानी क्या है | Bhagwan Badrinath Ke Kapat Kab Khulenge?

बद्रीनाथ धाम कहां स्थित है | Badrinath Dham Ke Bare Mein Bataiye?

 बद्रीनाथ के कपाट किसकी कुंडली देखकर खोले जाएंगे

बद्रीनाथ धाम कहां स्थित है?

Badrinath Dham Ka Kya Mahatva Hai?

बद्रीनाथ किसका अवतार है?

कहते हैं कि अपने जीवन में अगर एक बार भी बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर लिए जाएं तो दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है... इसके साथ ही अगर बद्रीनाथ धाम में अपने पितरों का पिंडदान किया जाए तो उन्हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है... यही वजह है कि भारत के साथ ही दूर देशों में बसे हिंदू धर्म के मानने वाले लोग बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार किया करते हैं... और उन्हें हम बता दें कि आपका यह इंतजार खत्म हो गया है... क्योंकि उस शुभ मुहूर्त, उस शुभ घड़ी का ऐलान हो गया है जब बद्रीनाथ धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे... 12 मई  2024, यह तारीख अपने ज़हन में बिठा लीजिए... क्योंकि इसी दिन से श्रद्धालु बद्री धाम के दर्शन कर पाएंगे... वैसे आज की अपनी इस खास रिपोर्ट में हम आपको बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से जुड़ी एक रोचक कहानी आपको बताने जा रहे हैं... लेकिन उससे पहले बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ खास बातें आपको बता देते हैं...

बद्रीनाथ किस भगवान का मंदिर है?

हिंदुओं के चार तीर्थ स्थल हैं... बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारिका और रामेश्वरम... भारत में देवभूमि कहे जाने वाले राज्य उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा के तट पर स्थित बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है... ऐसा माना जाता है कि यह भगवान विष्णु का निवास स्थल है... यह भी मानता है कि पहले यह भगवान शिव शंकर का निवास स्थान हुआ करता था... लेकिन भगवान विष्णु ने छल से इसे अपना स्थान बना लिया और तब से यह विष्णु धाम कहलाया जाने लगा... इसके पीछे भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है... कहते हैं कि नारद जी की सलाह पर भगवान विष्‍णु ने अपने निवास स्थान यानी शेषनाग की शैया को छोड़ दिया और तपस्‍या के लिए एक शांत स्‍थान ढूंढने निकल पड़े... इस कोशिश में वे हिमालय की ओर चल पड़े, तब उनकी नज़र पहाड़ों पर बने बद्रीनाथ पर पड़ी... विष्‍णुजी को लगा कि यह तपस्‍या के लिए अच्‍छा स्‍थान हो सकता है... जब विष्‍णुजी वहां पहुंचे तो देखा कि वहां एक कुटिया में देवों के देव महादेव और माता पार्वती विराजमान थे... विष्णु जी को अहसास हो गया कि अगर भगवान शंकर से उनके निवास स्थान मांगा जाएगा तो वह क्रोधित हो जाएंगे... लिहाजा उन्होंने एक योजना बनाई... उन्होंने एक छोटे से बच्चे का अवतार लिया और बद्रीनाथ के दरवाजे पर रोने लगे... बच्‍चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती बच्चे को गोद में उठाने के लिए बढ़ने लगीं... शिवजी ने उन्हें बच्चे को गोद में उठाने के लिए रोका भी लेकिन माता पार्वती नहीं मानी... उन्‍होंने एक मां बनकर बच्चे को दूध पिलाया और सुला दिया... बच्चों को आराम से सोता देख माता पार्वती वहां से चली गईं और दूसरे कामों में व्यस्त हो गईं... माता पार्वती जब वापस लौटीं तो कुटिया का दरवाजा अंदर से बंद था... पार्वतीजी बच्‍चे को जगाने की कोशिश करने लगीं पर द्वार नहीं खुला... इसके बाद भगवान शिव शंकर विष्णु जी का पूरा खेल समझ गए और उन्होंने माता पार्वती से केदारनाथ चलने का आग्रह किया जिस पर माता पार्वती भी मान गईं... बस तभी से बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का निवास स्थान हो गया...

 बद्रीनाथ के कपाट किसकी कुंडली देखकर खोले जाएंगे


बद्रीनाथ के कपाट किसकी कुंडली देखकर खोले जाएंगे?

खैर, अब आपको वो रोचक जानकारी देते हैं जो इस धाम के कपाट खुलने से जुड़ी हुई है... अगर हम आपसे कहें कि बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने के लिए एक राजा की कुंडली को देखा जाता है तो क्या आप यकीन करेंगे... यकीनन नहीं... क्योंकि आज की तारीख जब राजा-रानी ही नहीं हैं तो उनकी कुंडली देखने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता... लेकिन बद्रीनाथ धाम से जुड़ी इस हकीकत पर आपको यकीन करना ही होगा... जी हां, दरअसल बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीख हर साल बसंत पंचमी के दिन घोषित की जाती है... इसके लिए एक सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है... आपको मालूम ही होगा कि प्राचीन समय में राजा को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता था... इसलिए राजा की कुंडली देखकर, सारे ग्रहों की दशा और दिशा समझने के बाद ही राजपुरोहित कपाट खोलने की तारीख निश्चित करते हैं... खास बात यह भी है कि बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की घोषणा भी राजदरबार में ही की जाती है... कहते हैं कि टिहरी नरेश के कुल देवता खुद भगवान बद्री विशाल ही थे, उनके नियंत्रण में ही सभी परंपराओं का पालन किया जाता है... यही वजह है कि राजमहल से ही बद्री के कपाट खुलने की तिथि की घोषणा महाराज खुद ही करते हैं...

 बद्रीनाथ के कपाट किसकी कुंडली देखकर खोले जाएंगे

राजा सुदर्शन शाह, जो टिहरी राजवंश के पहले राजा थे उन्हें जनता ने बोलांदा बद्रीश का नाम दिया था... पहले तो मान्यता यह भी थी कि जो भक्त भगवान बद्री विशाल के दर्शन करने के लिए नहीं पहुंच पाते थे, उन्हें राजा के दर्शन मात्र से ही बद्री धाम के दर्शन के समान पुण्य मिल जाता था...

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