चिपको आंदोलन कब और क्यों हुआ | Chipko Andolan Ke Bare Mein Bataiye?

चिपको आंदोलन के पीछे मुख्य उद्देश्य क्या है | Chipko Andolan Kab Shuru Hua Tha?

chipko andolan in hindi

Chipko Andolan In Hindi

Chipko Andolan Kya Hai?

Chipko Andolan Kab Hua Tha?

Feminism... नारीवाद... बहुत बातें होती हैं इस पर... आज के दौर में तो और भी ज़्यादा... Instagram Reels पर डांस करना भी एक किस्म का Feminism है और लखनऊ की सड़कों पर खुलेआम किसी कैब ड्राइवर को पीट देने को भी Feminist Approach बता दिया जाता है... खैर, आज के दौर का Feminism कितना और कैसा Result देता है, ये तो अपनी अपनी सोच पर depend करता है... लेकिन पुराने दौर में Feminism बहुत ही Productive हुआ करता था... चिपको आंदोलन से बड़ा Example और इसका क्या होगा... 

चिपको आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?

चिपको आंदोलन को पूरे 50 बरस पूरे हो चुके हैं... इसकी शुरुआत हुई थी मार्च 1974 में, चमोली जिले में, जो उस वक्त उत्तर प्रदेश का एक शहर था, लेकिन साल 2000 में उत्तराखंड की स्थापना के बाद यह शहर उत्तराखंड के हिस्से में चला गया... बहुत से लोगों को चिपको आंदोलन के बारे में हर एक बात पता होगी, लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी होंगे खासकर हमारे युवा पीढ़ी जो देश के इस खास आंदोलन से पूरी तरह से अनजान होगी... लिहाज़ा, उन्हीं के लिए आज हमने एक खास रिपोर्ट तैयार की है जिसमें हम बताएंगे कि यह चिपको आंदोलन आखिर क्या था और इसकी शुरुआत किस लिए की गई थी...  'चिपको' का मतलब चिपके रहना या गले लगे रहना और आंदोलन का मतलब तो आपको पता ही है, किसी भी मुद्दे पर लोगों को इकट्ठा करना और और राजतंत्र से अपनी बात मनवाना...

चिपको आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?

लेकिन अब इसका मतलब आप यह मत समझ लीजिएगा कि चिपको आंदोलन में लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे से चिपक जाते थे... हां, ये बात सही है कि वो चिपकते थे लेकिन पेड़ों से... जी हां, उसे दौर की साहसी महिलाओं ने जंगलों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों से चिपकने का एक नायाब तरीका अपनाया था... पेड़ों से चिपक कर वो जंगल काटने आए लोगों से दहाड़ते हुए कहतीं थीं... पहले हमें काटो तब जंगल काटना महिलाओं के इस अद्भुत साहस के सामने जंगल काटने आए ठेकेदारों को अपने हथियार डालने पड़े थे... Forest preservation यानी वन संरक्षण के इस अनोखे आंदोलन ने न सिर्फ देश भर में पर्यावरण के प्रति एक नई जागरूकता पैदा की बल्कि international level पर Eco Feminism का एक नया मुहावरा भी develop किया...

चलिए अब बताते हैं कि चिपको आंदोलन की शुरुआत किस तरह से और किन लोगों से हुई थी...

दरअसल, ये वाकिया है साल 1974 का, जब वन विभाग ने जोशीमठ के रैणी गाँव के क़रीब 680 हेक्टेयर जँगल ऋषिकेश के एक ठेकेदार जगमोहन भल्ला को नीलाम कर दी... गाँव की महिलाओं ने जब आरी और कटान की तैयारी देखी तो वो दहल गईं क्योंकि जंगल उनका जीवन था... लेकिन उस वक्त गाँव में कोई पुरूष नहीं था जो उन ठेकेदारों को रोकता... लिहाजा, अब उनके सामने एक ही रास्ता था- अपनी जान देकर जंगल को बचाना... इसकी पहल की गौरा देवी ने... उन्होंने गाँव की महिलाओं को इकट्ठा किया... ठेकेदार के एजेंटों को इस विरोध का अंदाज़ न था... जब सैकड़ों की तादाद में उन्होंने महिलाओं को पेड़ों से चिपके देखा तो उनके होश उड़ गये... ठेकेदारों ने उन्हें धमकी दी, उन्हें डराया धमकाया लेकिन महिलाएं जस की तस नहीं हुईं...

चिपको आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?

आखिरकार, जंगल काटने आए ठेकेदारों को खाली हाथ लौटना पड़ा... फिर सरकार ने गांव के लोगों के लिए जंगल की अहमियत को समझते हुए एक समिति बनाई जिसकी सिफारिश पर इस क्षेत्र में जंगल काटने पर 20 सालों के लिये पाबंदी लगा दी गई... अलकनंदा घाटी से उभरा चिपको का संदेश जल्द ही दूसरे इलाकों में भी फैलता गया... नैनीताल और अलमोड़ा में आंदोलनकारियों ने जगह-जगह हो रही जंगल की नीलामी रोकी... 1977 में इसमें छात्र भी शामिल हो गए... और आंदोलन मजबूत होता गया... चिपको आंदोलन देशभर में फैला और इस तरह से पर्यावरण को बल मिला...

चिपको आंदोलन कब खत्म हुआ?

खैर, ये तो रही उस दौर की बात, आज की बात करें तो जिस जंगल को महिलाओं ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर बचाया था आज कई जगहों पर वहां उनका जाना भी प्रतिबंधित है... जिसका मतलब यह निकलता है कि कुछ लोगों की जंगलों पर बुरी नजर है... Urbanization के नाम पर जो जंगलों को बर्बाद करने की योजना चल रही हैं, उससे पर्यावरण को बहुत गहरा नुकसान हो रहा है... अगर जल्द ही इस ओर कुछ बड़े Steps नहीं लिए गए तो यकीनन हम अपनी बर्बादी की दास्तां अपने हाथों से ही लिख रहे हैं...

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