राजनीतिक दलों को फंडिंग कैसे मिलती है | Electoral Bond Par Supreme Court Ka Faisla Kya Hai?

चुनावी बांड कैसे खरीदें | Chunavi Band Kya Hai?

इलेक्शन बॉन्ड स्कीम क्या है?


चुनावी बांड कैसे खरीदें?

Chunavi Dalon Ko Funding Kaise Milti Hai

चुनावी फंडिंग क्या है?

लोकसभा चुनाव से पहले देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए चुनावी बॉन्ड जिसे इलेक्टोरल बॉन्ड भी कहते हैं, उस पर रोक लगा दी है...

क्या है Supreme Court का Electoral Bond पर आया फैसला, जिसने उड़ा दी है सरकार की नींद?

आपको बता दें कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पिछले आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित चल रहा था और इस पर सभी की निगाहें टिकी हुईं थीं... देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायधीशों की एक संविधान पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड की क़ानूनी वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई पिछले कई दिनों से कर रही थी... और आज आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इसे यह कहते हुए खत्म कर दिया कि यह स्कीम सूचना के अधिकार और बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उल्लंघन करती है... हालांकि मुद्दे की बात तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार इस इलेक्टोरल बॉन्ड का समर्थन यह कहते हुए करती आई है कि राजनीतिक फंडिंग में ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए यह स्कीम लाई गई है... एक तरफ सरकार यह कह रही है कि उनकी मंशा साफ है और वह यह है कि चुनाव में 'सही' पैसे का इस्तेमाल हो... हालांकि सुप्रीम कोर्ट की राय इससे जरा हट कर निकली, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस चुनावी बांड को रद्द कर दिया गया है...

 चुनावी बांड कैसे खरीदें?

भारत में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत कब हुई थी?

हो सकता है कि अभी तक हमने जो कुछ भी आपको बताया है वो आपको समझ नहीं आया हो... इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले को बेहतर ढंग से समझने के लिए सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि यह इलेक्टोरल बॉन्ड असल में होता क्या है... आप इसे ऐसे समझ लीजिए कि इलेक्टोरल बॉन्ड सियासी दलों को, पॉलीटिकल पार्टीज़ को चंदा देने का एक ज़रिया है... यह एक Promise Letter की तरह है जिसे भारत का रहने वाला कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद की किसी भी राजनीतिक पार्टी को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है...  मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी... इस योजना को 29 जनवरी 2018 को क़ानूनी तौर पर लागू भी कर दिया गया था... इस योजना में प्रावधान है कि भारतीय स्टेट बैंक सियासी दलों को पैसे देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता है... इन्हें ऐसा कोई भी डोनर ख़रीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की पूरी डिटेल्स उपलब्ध हैं... इलेक्टोरल बॉन्ड में Payer यानी भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है... योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं... इन चुनावी बॉन्ड्स के टाइम पीरियड की बात करें तो यह केवल 15 दिनों की होती है... एक बात यहां यह ध्यान देने वाली होती है कि सिर्फ उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो... योजना के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों के टाइम पीरियड के लिए ख़रीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं...

 चुनावी बांड कैसे खरीदें?

इलेक्शन बॉन्ड स्कीम क्या है?

तो इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है इसे आपने अच्छे से समझ लिया, चलिए यह भी जान लीजिए कि अब जब इसे खत्म कर दिया गया है तो फिर क्या बड़ा बदलाव आने वाला है...  आप ये जान लीजिए कि सियासी दलों के लिए सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला एक बड़े झटके के जैसा है... क्योंकि अब कोई भी पार्टी चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा नहीं ले पाएगी और यह उनके लिए सबसे बड़ा दर्द है... अब कोई भी व्यक्ति, कंपनी या संस्था चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा नहीं दे पाएगी... इसके अलावा जिन राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी बॉन्ड को कैश नहीं कराया है, उन्हें इन्हें बैंक में लौटाना पड़ेगा...  अब सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चुप रहेगी... जानकारों की मानें तो ऐसा लगता तो कतई नहीं है... लिहाजा, सरकार के पास इस मामले में रिव्यू पीटिशन दायर करने का एक मौका है... सरकार अगर रिव्यू पीटिशन दाखिल करती है तो उसकी सुनवाई होगी... मज़े की बात तो यह है कि रिव्यू पीटिशन पर सुनवाई वहीं बेंच करती है जिसने इस मामले में फैसला सुनाया होता है... 

 चुनावी बांड कैसे खरीदें?

वैसे लीगल एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि रिव्यू पिटीशन में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदला भी जा सकता है... हालांकि इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा बहुत कम ही हुआ है कि  जज अपने सुनाए गए फैसलों को रिव्यू पीटिशन के बाद बदलें... तो कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला सरकार को बेहद ही गहन चिंता में डालने वाला फैसला है... सरकार अब क्या करती है यह देखना भी दिलचस्प होगा... हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी... 

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