इस्कॉन मंदिर के पीछे की कहानी क्या है | Bhagwan Krishna Ram Se Adhik Lokpriya Kyu Hai?

क्यों विदेशी भगवान कृष्ण को मानते हैं | Iskcon Temple Ki Shuruaat Kaise Hui?

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इस्कॉन मंदिर के संस्थापक कौन हैं?
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कृष्ण लोकप्रिय क्यों है

अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश में आस्था और भक्ति का एक अलग ही माहौल दिखाई दे रहा है. भगवान राम के बाद इन दिनों बहस छिड़ी हुई है मथुरा में भगवान श्री कृष्णा के जन्म स्थान को लेकर. कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने भगवान कृष्ण के केशव देव मंदिर को नष्ट करके उसी स्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई थी.

राम से ज़्यादा कृष्ण को क्यों पसंद करते हैं विदेशी?

लिहाज़ा अब उसी जगह पर कृष्ण मंदिर के भव्य निर्माण की मांग तेज हो चली है.  खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी विधानसभा में यह बात कह चुके हैं कि रामलला को खेलते देख भगवान कृष्ण कहां चुप बैठने वाले हैं. उनका इशारा किस ओर था, हम सभी समझते हैं. खैर, भारत में भले ही राम को हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि दी जाती हो, लेकिन विदेशों में कृष्ण के अनुयायियों की संख्या ज्यादा है और वह कृष्ण को एक तौर पर पुरुषों में सबसे उत्तम मानते हैं. आखिर क्या वजह है कि भारत के बाहर दुनिया के बाकी देशों में भगवान राम से ज्यादा भगवान कृष्ण की लोकप्रियता है. तो इसके जवाब में हम एक बात कहेंगे, इस्कॉन मंदिर. जी हां, भगवान श्री कृष्ण को समर्पित यह एक अनोखा मंदिर है जिसने भारत क्या, पूरे विश्व के कृष्ण भक्तों को एक साथ जोड़ रखा है.

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इस्कॉन मंदिर के पीछे का इतिहास क्या है?

ISKCON दरअसल एक संगठन है जिसका पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है. हिंदी में इसे अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ कहते हैं. खास बात यह है कि इस मंदिर की स्थापना भारत में नहीं बल्कि विदेश में हुई थी. जी हां, भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने साल 1966 में इस मंदिर की स्थापना अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में की थी. स्वामी प्रभुपाद भगवद गीता के एक महान विद्वान थे. महाभारत में कृष्ण ने धर्म की रक्षा और धर्म का पालन करने के महत्व को समझाया है. भगवान कृष्ण का यही संदेश पूरी दुनिया भर में फैले, यह इस्कॉन मंदिर का मुख्य उद्देश्य है. स्वामी प्रभुपाद ने भगवद गीता का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया, जिससे दुनिया भर में भगवद गीता के सिद्धांतों का खूब प्रचार-प्रसार हुआ. और यही वजह है कि आज की तारीख में पश्चिमी देशों में भगवान कृष्ण के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, रशिया, जापान, साउथ अफ्रीका, हांगकांग, अर्जेंटीना, केन्या समेत और भी कई देशों में इस्कॉन मंदिर बनाए गए हैं. दुनिया भर में इस्कॉन के करीब 400 से भी ज्यादा मंदिर अब तक स्थापित हो चुके हैं. ये मंदिर हर उस व्यक्ति का स्वागत करता है जो कृष्ण की भक्ति में लीन रहना चाहता है.वैसे इस्कॉन के चार कड़े नियम हैं जिनको अपना कर ही कोई यहां का भक्त बन सकता है. सबसे पहली बात ये कि उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा. तामसिक भोजन यानी उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा जैसी चीजों से दूर रहना होगा. दूसरी शर्त है अनैतिक आचरण से दूर रहना. आप यूं कह लीजिए कि इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसे जगहों पर जाना वर्जित है. तीसरा नियम है शास्त्रों का अध्ययन. इसके तहत गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है और उनके बताएं मार्गों पर चलना होता है. चौथा और आखिरी नियम ये कि यहां के भक्तों को हरे कृष्णा-हरे कृष्णा नाम की 16 बार माला जपनी होती है.

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इस्कॉन मंदिर के संस्थापक कौन हैं?

चलिए बात कर लेते हैं इस्कॉन मंदिर से जुड़े विवाद की. साल था 2016. उस वक्त हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु माने जाने वाले स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने इस्कॉन मंदिरों को कमाई का अड्डा बताया था. उन्होंने कहा था कि इस्कॉन के मंदिरों से चढ़ावे की राशि अमेरिका भेजी जा रही है. स्वरूपानंद सरस्वती ने इस्कॉन मंदिरों को अमेरिका की साजिश बताते हुए कहा था कि इन मंदिरों में कृष्ण भक्ति की आड़ में धर्मांतरण कराया जाता है और करोड़ों रूपये हर साल विदेश भेजे जाते हैं. शंकराचार्य ने प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्र सरकार से इस्कॉन मंदिरों की जांच कराए जाने की मांग की थी और हिंदू धर्म के लोगों को इस्कॉन मंदिरों के बजाय भारतीयों द्वारा स्थापित कृष्ण मंदिर में ही पूजा-अर्चना करने की नसीहत भी दी थी. आपको बता दें कि दावा किया जाता है कि अमेरिका की कोलगेट कंपनी एक साल में जितना जितना शुद्ध लाभ अमेरिका भेजती है उससे 3 गुना ज्यादा अकेले बैंगलोर का ISKCON मंदिर भारत का पैसा अमेरिका भेज देता है. हालांकि हमारा चैनल इन दावों की पुष्टि नहीं करता है. 

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बहरहाल जो भी हो, हमारा सवाल बस इतना ही था कि आखिर विदेशों में रहने वाले गैर हिंदुओं में भगवान राम से ज्यादा भगवान कृष्ण की लोकप्रियता क्यों ज्यादा है. और उसके जवाब में हमने इस्कॉन टेंपल को सबसे सटीक माना. 'हरे कृष्ण मूवमेंट' की शुरुआत करके इस्कॉन टेंपल ने भगवान कृष्ण का धर्म से जुड़ा संदेश दुनिया के कोने-कोने में फैलाया है. और इस हकीकत को कोई नहीं झुठला सकता.

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