संघर्ष से सफलता की कहानी | What Is The History Behind Hyundai?

संघर्ष और सफलता में क्या संबंध है | Hyundai Success Story In Hindi

‘Hyundai Civil Works Company’

Success Ki Kahani

Motivational Story In Hindi

Hyundai Car History

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आज की तारीख में जितनी तेज़ी से नए-नए स्टार्टअप शुरू हो रहे हैं... उतनी ही तेजी से वो बंद भी हो रहे हैं... इसकी वजह सिर्फ एक है... और वो है Failure से घबरा जाना... जी हां, कोई भी बिजनेस हवा हवाई का खेल नहीं होता जिसे शुरू करते ही वह तेजी पकड़ ले और मोटा मुनाफा देना शुरू कर दे... बल्कि हर किस्म का बिजनेस धैर्य मांगता है... Failure से लड़ने का जज़्बा मांगता है... और जो कोई भी Failure से हताश हो जाता है, निराश हो जाता है, वो कभी कामयाबी नहीं पा पाता...

संघर्ष और सफलता में क्या संबंध है?

​​​​​आज हम आपको एक ऐसे गरीब बच्चे की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसको बचपन में एक साइकल भी नसीब नहीं हुई लेकिन अपनी मेहनत के दम पर उसने बिलियन डॉलर की कार की कंपनी खड़ी कर दी... अब जरा सोचिए ऐसा तो हुआ नहीं होगा कि उस बच्चे के सामने किसी भी तरह की मुश्किलात नहीं आई होंगी... वो तो बेचारा गरीब घर से ताल्लुक करता था, उसने अपनी जिंदगी में ऐसे ऐसे फेलियर देखे जिसके बाद कोई भी आम इंसान टूट सकता था... लेकिन कहते हैं ना कि इंसान के अंदर अगर Focus का नशा हो तो उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है... तो चलिए बिना देर किए उसे बच्चे की success story सुनते हैं जो कहीं ना कहीं आपके अंदर भी एक नए तरीके का जज़्बा पैदा करेगी...  जिस गरीब बच्चे की हम बात कर रहे हैं उसका नाम है Chung Ju Yung... ये बच्चा दक्षिण कोरिया के एक गरीब परिवार में जन्मा था... उसके 7 भाई-बहन थे और उसके पिता किसानी से अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे... 7 भाई-बहन होने और किसानी में बेहद कम कमाई होने की वजह से उसके परिवार की financial condition बहुत ही ज़्यादा ख़राब थी... चुंग जु-युंग का ख़्वाब तो एक टीचर बनने का था पर घर की स्तिथि के चलते वो खुद की पढाई भी पूरी नहीं कर पाया... घर में कमाई के लिए वह अपने खेत में अपने पिता के साथ 17-17 घंटे काम करता था... वो भी ठंड के मौसम में बदन पर बिना कपड़ों के...

एक गरीब बच्चे की Inspiring Story

खैर, लकड़ियां बेचने के लिए चुंग जु-युंग को कई बार पास के शहर भी जाना होता था... जब भी शहर जाता तो शहर की चकाचौंद से वो काफी influence होता... लोगों के एक से बढ़कर एक खूबसूरत पहनावे, खाने में एक से बढ़कर एक लज़ीज़ dishes, सड़कों पर चलती बड़ी-बड़ी गाड़ियां... मतलब खुशियां ही खुशियां... उस बच्चे का बहुत मन होता कि वह भी किसानी छोड़ शहर जाकर काम धाम करे लेकिन उसकी कच्ची उम्र और घर की बदहाल हालत की वजह से घरवाले उसकी ये ख्वाहिश कभी ना मानते... लिहाजा, वो बच्चा अपनी ख़्वाहिश का गला घोंट कर किसानी में ही व्यस्त रहा...  एक बार की बात है अखबार में एक इश्तिहार निकलता है... उसमें लिखा होता है कि पास के एक शहर में एक निर्माण योजना में मजदूरों की जरूरत है वह बच्चा थोड़ा बड़ा हो चुका था और 16 साल की उम्र पर पहुंच गया था... उसे पता था कि उसके घर वाले उसे कभी शहर नहीं जाने देंगे इसलिए उसने अपनी जिंदगी का एक बड़ा फैसला लिया और शहर में काम करने के लिए घर छोड़कर भाग गया... घर से भाग कर वो कोवोन शहर पहुंचा, जो आज उत्तर कोरिया में है... वहां पहुंच कर उसने कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी का काम पकड़ लिया... हालांकि इस काम में मेहनत ज्यादा थी और पैसा कम था लेकिन फिर भी वो खुशी-खुशी काम कर रहा था क्योंकि वो इस बात से मुत्मइन था कि वो अपने दम पर कुछ कर रहा है... लेकिन काम करते हुए सिर्फ दो महीना ही हुए थे कि उसके घर वालों ने उसे ढूंढ लिया और वापस घर ले आए और उसे दोबारा से किसानी में ही झोंक दिया... 

संघर्ष और सफलता में क्या संबंध है?             

यह वह वक्त था जब चुंग जु-युंग कुछ शहर में काम करने की हवा लग चुकी थी... वो दो बार और घर से भागा और शहर में जाकर काम करने लगा लेकिन दोनों बार उसके घर वाले उसे पड़कर घर ले आए... लेकिन एक बार वह ऐसा घर से भागा की घर वालों की पकड़ में ही नहीं आया और शहर का ही होकर रह गया... खैर, अब साल आया 1934... चुंग-जू-युंग सीओल शहर पहुंचता है... वहां पहुंचने पर सबसे पहले उसे एक कंस्ट्रक्शन वर्क में ही मजदूरी का काम मिलता है... लेकिन धीरे-धीरे वह मजदूरी से हटकर अपने लिए एक अलग काम तलाशने लगता है... उसकी यह तलाश तब जाकर खत्म होती है जब उसे ‘bokhyang rice store’ पर डिलीवरी बॉय की जॉब मिल जाती है... इस जॉब के बाद से उसकी लाइफ पटरी पर आने लगती है... उस राइस स्टोर में वो पूरी मेहनत और लगन से काम कर रहा होता है... उसकी इसी लगन को देखकर स्टोर के मालिक ने 6 महीने में ही चुंग को राइस स्टोर के डिलीवरी बॉय से सीधे स्टोर का मैनेजर बना दिया... 1937 में स्टोर के मालिक बीमार हो गए और अब स्टोर चलाना उनके लिए नामुमकिन हो चुका था... लिहाज़ा उन्होंने अपना पूरा स्टोर चुंग को सौंप दिया और इस तरह से 22 साल की उम्र में ही अपनी मेहनत और लगन से चुंग एक राइस स्टोर्स का मालिक बन गया... यह वो दौर था जब कोरिया में जापान का कब्ज़ा हुआ करता था और जापान second world war में कूद चुका था... जापानी सरकार ने अपने सैनिकों की सेहत का ख्याल रखने के लिए कोरिया की सभी चावल की दुकानों को अपने कब्ज़े में ले लिया... इसमें चुंग की दूकान भी शामिल थी... और ऐसे चुंग का उससे सब कुछ छिन गया...

सफलता की प्रेरक कहानी

अब जब सब कुछ उनसे छिन गया था तो उन्हें फिर से अपने गांव की याद आई... वह अपने गांव वापस लौट गए और दोबारा से खेती किसानी करने लगे... 1 साल तक वो किसानी ही करते रहे... लेकिन इससे उनका कुछ भला नहीं हो रहा था... फिर उन्होंने हिम्मत जुटा कर 3000 वोन का लोन लेकर ‘Ado Service’ नाम का गेराज खोला... उस वक्त आलम यह था कि एक गाड़ी को ठीक होने में 20 दिन लगते थे... लेकिन चुंग ने अपने गराज में एक गाड़ी को 5 दिन में ठीक करना शुरू किया और इस तरह से उन्होंने तरक्की के नए आयाम बुनना शुरू कर दिये... एक बार फिर से सब कुछ अच्छा चलने लगा लेकिन शायद जिंदगी उनसे कुछ और परीक्षा लेना चाहती थी... एक दिन उनके गराज में आग लग गयी और उनको भारी नुकसान हुआ... भारी भरकम नुकसान इसलिए क्योंकि उन्हें अपना 3000 वोन का कर्ज तो चुकाना ही था लेकिन उसके साथ ही जो गाड़ियां उनके गेराज में जल गईं थी उसका भी भुगतान उन्हें कार मालिकों को करना था... हालांकि वो अपनी काबिलियत जानते थे इसलिए उन्होंने 3500 वोन का एक और लोन लिया और पहले से भी बड़ा गेराज खोला...उनका यह नया गेराज बहुत चला और 3 साल के अंदर ही उन्होंने अपना सारा कर्ज चुकता कर दिया... अब गेराज में काम करने वालों की संख्या भी बढ़ गई और मुनाफा भी मोटा आने लगा... यही वह समय था जब चुंग अपने परिवार को लेकर शहर चले गए... लेकिन अब तक की कहानी जानकर आपको यह समझ में आ गया होगा कि चुंग किस्मत के बहुत बुरे थे... किस्मत ने उनका साथ एक बार फिर छोड़ा और उनका सब कुछ तबाह हो गया... वह कैसे चलिए अब यह भी जान लीजिए... दरअसल, उस दौर में जापानी सरकार ने वॉर में इस्तेमाल होने वाले हथियारों को बनाने के लिए उनके गेराज को एक स्टील प्लांट के साथ जोड़ दिया था... पिछली बार उनका गेराज आग की वजह से तबाह हुआ था और इस बार जापानी सरकार की तानाशाही से...

एक अच्छी सफलता की कहानी क्या है?

खैर... सीओल शहर में वॉर का तनाव बढ़ता जा रहा था... इसके चलते चुंग अपने परिवार के साथ वापिस गाँव चले गए और एक बार फिर कारोबार शून्य पर आ गया... लेकिन इस बार उनके पास 50 हज़ार वोन की savings थी और वह ये जानते थे कि वह फिर से अपने कारोबार को शुरू कर लेंगे... साल 1946 में second world war ख़त्म हुआ और कोरिया जापान के कब्ज़े से आज़ाद हो गया... इसी वक़्त पर चुंग ने फिरसे सीओल में एंट्री मारी और अपना तीसरा कारोबार शुरू करने में जुट गए... इस बार उन्होंने अपना गेराज Hyundai Auto Service’ नाम से शुरू किया... अब दक्षिण कोरिया में जापान का नहीं बल्कि अमेरिका का प्रभाव था... और चुंग को अमेरिका के इस प्रभाव का फायदा मिला... चुंग को अमेरिकन आर्मी के ट्रक रिपेयरिंग का काम मिल गया और इस तरह से चुंग की जिंदगी फिर पटरी पर लौट आई...  चुंग समझ चुके थे कि अमेरिका को अपनी आर्मी के लिए बड़ी संख्या में बिल्डिंग की जरूरत है... आप जानते ही हैं कि चुंग काफी वक्त तक एक कंस्ट्रक्शन वर्क में बतौर एक मजदूर भी काम कर चुके थे लिहाजा निर्माण कार्य का उनका पुराना प्यार एक बार फिर जाग गया... इसी लिए उन्होंने ‘Hyundai Civil Works Company’ की शुरुआत की और उन्हें छोटी-छोटी निर्माण योजनाए मिलने लगीं... वह अपने काम में मेहनत करते रहे और 3 साल बाद तक उन्हें बड़ी-बड़ी निर्माण योजनाए भी मिलने लगीं... एक बात आपने ध्यान दी होगी, जब-जब चुंग की जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा होता है तो कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता है कि सब कुछ खत्म हो जाता है... इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ... दरअसल 1950 में उत्तरी कोरिया और दक्षिणी कोरिया में जंग छिड़ गयी और उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया पर भारी पड़ने लगा... उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के शहर सीओल को अपने कब्ज़े में करने के लिए उसके आसपास घेराबंदी करना शुरू कर दिया और सीओल के लोगों में दहशत फ़ैल गयी... सीओल के लोग शहर छोड़ कर जाने लगे और उसी बीच चुंग भी अपना कारोबार छोड़ कर कुछ savings के पैसों के साथ दूसरे शहर चले गए...

‘Hyundai Civil Works Company’

जंग की वजह से दक्षिण कोरिया की सड़कें, इमारतें, दुकानें सब कुछ तबाही का शिकार हो चुकीं थीं और अब उन्हें दोबारा बनाने का काम चलने वाला था... इसी बीच चुंग ने ‘Hyundai Engineering & Construction Company’ की तरफ से एक प्रस्ताव भेजा कि इस पुनर्विकास में उन्हें भी कुछ योजनाए दी जाएं... उस वक़्त तक चुंग का नाम बड़ा हो चुका था और इसीलिए उन्हें कई योजनाए प्राप्त हुई... इन सरकारी योजनाओ के मिलने से ‘Hyundai Success’ रॉकेट से भी तेज़ हुई... 1960 के दशक तक Hyundai, construction work की एक बहुत ही बड़ी कंपनी बन चुकी थी... इसी दौर में दक्षिण कोरिया की सरकार ने एक कानून बनाया जिसके तहत कोई भी विदेशी कार कंपनी दक्षिण कोरिया में सिर्फ तभी बिज़नेस कर सकतीं थीं जब वो कोई दक्षिण कोरियाई कंपनी के साथ partnership करेगी... इसमें चुंग का दिमाग चमका और उन्होंने 1967 में ‘Hyundai Motor’ कंपनी की शुरुआत कर दी... चुंग ने गाड़ी बनाने की कंपनी की शुरुआत तो कर दी थी लेकिन उन्हें गाड़ी बनानी नहीं आती थी इसलिए उन्होंने अमेरिकी कंपनी फोर्ड के साथ साझेदारी की... उस वक़्त पर फोर्ड की Cortina काफी मशहूर थी... इसलिए कंपनी ने दक्षिण कोरिया में ‘Hyundai Cortina’ को बनाने का फैसला लिया... लेकिन यह एक बहुत बड़ी असफलता साबित हुई... दरअसल ‘Hyundai Cortina’ अमेरिका की सड़कों के हिसाब से सही थी पर दक्षिण कोरिया की सड़कें जो अभी उतनी अच्छी नहीं थी, वहां पर यह गाड़ी एक बड़ी असफलता बनी... कंपनी को भारी नुक्सान हुआ और लोग रिफंड की मांग करने लगे... इस बार चुंग ने दक्षिण कोरिया की सड़कों के हिसाब से Hyundai Cortina बनाई जो खूब चली...

प्रेरक कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?

अमेरिकी कंपनी फोर्ड को हुंडई की यह सफलता रास नहीं आई और उसने हुंडई से अपनी पार्टनरशिप तोड़ ली... अब सबसे बड़ी समस्या हुंडई के सामने यह थी कि उन्हें कार बनानी तो आती नहीं थी, लिहाजा चुंग ने एक दूसरी कर कंपनी की तलाश शुरू कर दी... आखिरकार, Mitsubishi Motors के साथ उनकी साझेदारी हुई और हुंडई ने अपनी selfmade कार बनाई जिसका नाम था Hyundai Pony... यह गाड़ी दक्षिण कोरिया में इतनी मशहूर हुई कि Hyundai ने इसके दम पर दक्षिण कोरिया की कार मार्किट का 60 फीसदी market share अपने कब्ज़े में ले लिए... हुंडई ने अपनी कारों को दूसरे देशों में निर्यात करने के लिए साल 1982 में ‘Pony 2’ कार लॉन्च की... यह कार दक्षिण कोरिया में तो सफल हुई साथ ही Africa, Latin America और Canada में भी कामयाब हुई... Hyundai अबतक एक अच्छी global car company बन चुकी थी पर अमेरिका में नहीं... उन्होंने अमेरिका की मार्किट में भी पैर पसारे और ‘Hyundai Excel’ launch की... अबतक वह कार बनाने में माहिर हो चुके थे... साथ ही उन्होंने देखा कि अमेरिका में लोग सेकंड हैंड गाड़ियां लेते है... उन्होंने सेकंड हैंड गाड़ियों के दाम पर अपनी गाड़ी बेचीं और वो भी 5 साल की वारंटी के साथ... 1986 में उन्होंने अमेरिका में 1,70,000 गाड़ियां बेचीं वही 1987 में 2,60,000... इसी के साथ Hyundai Excel उस वक़्त की अमेरिका की टॉप सेलिंग कार बन गयी और अमेरिकी मार्किट को हिला कर रख दिया... आज की तारीख में हुंडई करीबन 47 बिलियन डॉलर की कंपनी है... भारत के साथ ही दुनिया के कई देशों में हुंडई कार मार्केट में टॉप की कंपनी बनी रहती है... और यह सब कुछ Chung-Ju-Yung नाम के उस गरीब बच्चे की सोच की ही बदौलत मुमकिन हो पाया है...  तो यह थी कहानी Hyundai की success story की... हमें उम्मीद है कि यह कहानी आपको जरूर मोटिवेट करेगी और आप इसे जरूर कुछ सबक लेंगे... 

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