ताजमहल की असली कहानी क्या है | Tajmahal Me Urs Par Vivad Ki Vajah Kya Hai?
ताजमहल से पहले वहां पर क्या था | Tajmahal Me Pahle Kis Bhagwan Ka Mandir Tha?
Urs Kya Hota H
क्या ताजमहल एक हिंदू मंदिर था?
Taj Mahal Vivad In Hindi
ताजमहल में उर्स पर विवाद की असली वजह क्या है आज इस पर चर्चा करेंगे. तो जिन्हें नहीं पता कि उर्स क्या होता है वो इसे इस तरह समझ लें कि किसी सूफी संत की मजार या कब्र पर हर साल लगने वाले उत्सव को ही उर्स कहते हैं. यहां कव्वालियां गाई जाती हैं, एक बड़ा सा मेला लगता है और एक अच्छी तादाद में लोग इन जगहों पर जियारत करने के लिए आते हैं.
ताजमहल में उर्स पर विवाद की क्या है असल वजह?
खैर, अब आते हैं असल मुद्दे पर . और मुद्दा यह है कि ताज महल में शुरू हो रहे शाहजहां के उर्स पर अब एक विवाद छिड़ गया है. और विवाद कुछ इस तरह है कि एक हिंदू संगठन ने आगरा की कोर्ट में याचिका दाखिल की है. याचिका में ये जानने की कोशिश की गई है कि ताजमहल में हर साल होने वाले उर्स की अनुमति आखिर देता कौन है. और इसका प्रमाण न दे पाने की स्थिति में ताजमहल पर होने वाले उर्स पर पाबंदी लगाने की मांग रखी गई है. वैसे उर्स पर हिंदू महासभा की एक और दलील भी है. दरअसल उर्स का आयोजन ताजगंज कमेटी के सैयद इब्राहिम ज़ैदी करवा रहे हैं. हिंदू महासभा ने कोर्ट में दाखिल की गई अपनी याचिका में सैयद इब्राहिम जैदी को प्रतिवादी बनाते हुए सवाल किया है कि उनका ताजमहल से क्या ताल्लुक है. हिंदू महासभा का कहना है ना ही वह ताजमहल के कर्मचारी हैं और ना ही इसका कोई प्रमाण है कि ताजमहल सैयद इब्राहिम ज़ैदी के पुरखों की अमानत है. लिहाजा फिर वो किस हैसियत से ताजमहल में उर्स का आयोजन करवा रहे हैं.
ताजमहल का दरवाजा क्यों नहीं खोला जाता है?
बहरहाल, हिंदू संगठन के कार्यकर्ता ताजमहल के मेहताब बाग क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने शिव चालीसा का पाठ करना शुरु कर दिया. इतना ही नहीं भगवान शिव शंकर भोलेनाथ का चित्र लगाकर वहां जलाभिषेक भी किया गया. दरअसल हिंदू संगठनों का कहना है कि ताजमहल में किसी भी धार्मिक कार्य की कोई अनुमति नहीं है, बावजूद इसके वहां इतने बड़े स्तर पर उर्स का आयोजन किया जा रहा है जो कि उन्हें ना काबिल-ए-बर्दाश्त है. लिहाजा अब उनका कहना है कि अगर उर्स होगा तो फिर पूजा पाठ भी होगी. हालांकि बताया जा रहा है कि हिंदू संगठन की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने 4 मार्च की तारीख मुक़र्रर की है. अब इस सुनवाई में क्या कुछ निकल कर सामने आता है यह देखने वाली बात होगी. लेकिन इन्हीं सबके बीच अब इस मुद्दे को एक बड़ी सियासी लड़ाई में बदलने की कोशिश की जा रही है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक बार फिर 'तेजो महालय' वाली थ्योरी पर बात की जाने लगी है. उर्स की आड़ में तेजो महालय का दांव खेला जा रहा है.
ताजमहल से पहले वहां पर क्या था?
हो सकता है कि तेजो महालय वाली थ्योरी आप में से बहुत से लोगों को पता हो. लेकिन जिन्हें नहीं पता उनकी जानकारी के लिए हम उन्हें बता दें कि साल 1965 में एक किताब आई थी जिसका टाइटल था ताजमहल-द ट्रू स्टोरी. इस किताब में बताया गया था कि ताजमहल असल में एक मंदिर है और उसका नाम तेजो महालय है. बाबरी और ज्ञानवापी की तरह ताजमहल के बारे में भी कहा बताया गया है कि मंदिर के ऊपर इसका निर्माण कराया गया था. अब इस बात में कितनी हकीकत है यह तो शोध का विषय है. लेकिन हां सियासतदानों को बैठे-बिठाये एक बहुत बड़ा मुद्दा तो मिल ही गया जिस पर वो कई सालों तक अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सकते हैं. और यही वजह है कि बीच-बीच में इस विवाद को तूल दे दिया जाता है.
कहने को मोहब्बत की यह निशानी असल में सियासत की एक कहानी बनती जा रही है. खैर, कोर्ट में इसकी सुनवाई के दौरान क्या कुछ निकल कर आता है इसका आप भी इंतजार कीजिए और हम भी करते हैं.