हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब क्या होता है | What Is Horse Trading In Indian Politics?

क्या राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग की अनुमति है | Horse Trading Meaning In Politics In Hindi

हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब क्या होता है

राज्यसभा वोटिंग क्या है?

Rajya Sabha Election 2024

हॉर्स ट्रेडिंग कल्चर क्या है?

अभी हाल ही में राज्यसभा चुनाव गुजरा, बड़ा हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला... सियासी दलों ने अपनी पूरी जोर आजमाइश लगा दी चुनाव जीतने में... हम किसी एक पार्टी का नाम नहीं लेंगे क्योंकि लगभग सभी पार्टियां कह रही हैं कि हमारे कुनबे में सेंध लगाने की कोशिश की गई है... कुनबे में सेंध लगाने का मतलब दरअसल यहां यह है कि किसी भी विधायक को अपनी पार्टी के हक में वोट ना करने देना... फिर चाहे उसे डरा धमका कर, या भविष्य में उसे कोई अहम पद देने का लालच देकर या फिर एक मोटा पैकेज देकर... वजह कुछ भी हो सकती है, मकसद.. सिर्फ एक रहता है कि उन्हें अपनी पार्टी के लिए वोट नहीं करने देना है, बल्कि उनका वोट अपने पाले में करना भी प्राथमिकता होती है...

राज्य सभा चुनाव् में भाजपा पर लगा हॉर्स ट्रेडिंग का इल्जाम 

अमूमन, विधायकों की खरीद-फरोख्त का इल्ज़ाम सत्ता दल पर ही लगता है... हमेशा की तरह इस बार भी यही हुआ... भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर Horse Trading के आरोप लग रहे हैं...  अब आप सोच रहे होंगे की सियासत में आखिर यह Horse Trading का जिक्र क्यों आ गया है... क्योंकि इसके नाम से तो यह पता चल रहा है कि इसमें घोड़ों को खरीदने और बेचने की बात हो रही है... जी हां आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं, बस यहां घोड़ों से मुराद विधायकों से है... हो सकता है कि अभी भी आपको समझ नहीं आया होगा, तो चलिए आसान भाषा में समझते हैं कि सियासत में आखिर यह हॉर्स ट्रेडिंग जैसी क्या चीज है... 1820 के आसपास घोड़ों की बिक्री के लिए ही Horse Trading  शब्द का इस्तेमाल किया जाता था... कारोबार का यह तरीका कुछ ऐसा था कि इसमें चालाकी, पैसा और आपसी फायदों के साथ घोड़ों को किसी के अस्तबल से खोलकर कहीं और छुपा दिया जाता था... फिर पैसों के लेनदेन के ज़रिए सौदा किया जाता था... मतलब, व्यापारी अपने घोड़ों की खरीद फरोख्‍त के लिए जो अलग अलग तरीके अपनाते थे, उन्‍हें ही हार्स ट्रेडिंग कहा जाता था... हालांकि, कुछ सालों में इस शब्‍द का इस्‍तेमाल सियासत के लिए होने लगा... जब एक पार्टी विपक्ष में बैठे अन्‍य नेताओं को अपने साथ मिलाने के लिए हर तरह का लालच देती है... तब यह कला हॉर्स ट्रेडिंग कहलाती है.. सियासत में Horse Trading Chronology को आप पर्दे के पीछे होने वाले खेल की तरह समझ सकते हैं... Horse Trading दो पार्टियों के बीच होने वाली ऐसी बातचीत है, जिसमें दोनों का फायदा हो... हॉर्स ट्रेडिंग एक ऐसी सौदेबाजी है जिसमें दोनों ही पार्टियां इस कोशिश में रहती हैं कि ज्यादा से ज्यादा फायदा उन्हें हो जाए... और आखिर में दोनों पार्टियां एक नतीजे पर पहुंचती हैं...  बात जब राज्यसभा चुनाव की चल रही है तो फिर यहां आप हॉर्स ट्रेडिंग को क्रॉस वोट से जोड़कर देख सकते हैं... राज्यसभा चुनाव के दौरान हर पार्टी के विधायक अपना मत तय करते हैं... वोटों को पार्टी के लीडर को दिखाया जाता है... इसके बाद उसे सभापति के पास जमा कर दिया जाता है... जब विधायक अपनी पार्टी के उम्मीदवार की बजाय किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार को वोट दे देता है, तो उसे क्रॉस वोटिंग कहते हैं... 27 फरवरी को हुए राज्यसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के विधायकों ने जमकर क्रॉस वोटिंग की... और इसका पूरा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला...

What is the meaning of political horse?

हॉर्स ट्रेडिंग की शुरुआत कब हुई थी?

भारतीय राजनीति में क्रास वोटिंग की बात नई नहीं है... दशकों पुरानी है लेकिन अक्सर राष्ट्रपति चुनावों से लेकर राज्यसभा चुनावों तक में ये स्थिति देखने में आती है कि सांसद और विधायक पार्टी लाइन से अलग जाकर वोट देते हैं... पार्टी कसमसा कर रह जाती हैं... उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं पातीं... कार्रवाई जरूर कर सकती हैं लेकिन वोटिंग के बाद ही... और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है... इस राज्यसभा चुनाव में कहा गया कि विधायकों की अंतरात्मा जागी और उन्होंने अपने वक्तव्य से वोटिंग की... इन विधायकों की ऐन वक्त पर जगी हुई अंतरात्मा ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का बेड़ा गर्क के रख दिया है... वैसे अंतरात्मा के इस खेल में बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सबसे टॉप पर आते हैं... उन्होंने अपनी अंतरात्मा जगाने का एक रिकॉर्ड कायम किया है...  बहरहाल, अब सवाल उठने लगा है कि राज्यसभा चुनाव के लिए व्हिप क्यों नहीं जारी किया जाता है... व्हिप को आप एक तरह से नियंत्रण रेखा कह सकते हैं... व्हिप की अनुपस्थिति और “अंतरात्मा की आवाज पर वोट” की अपील से विधायकों के लिए दल-बदल विरोधी कानून या 10वीं अनुसूची के तहत किसी भी कार्रवाई से बचना आसान हो जाता है, भले ही वो क्रॉस-वोटिंग करें... खैर, अभी फिलहाल Horse Trading के इल्जाम भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर लग रहे हैं... तो हो सकता है कि आपको ऐसा लग रहा हो कि बीजेपी ने इसकी शुरुआत की है... हालांकि, इसकी बुनियाद रखने वाली ही कांग्रेस की सरकार थी... हम अपनी किसी भी बात को यूं ही नहीं कहते, बल्कि तमाम तथ्यों को सामने रखकर कहते हैं... चलिए आपको बता देते हैं कि भारतीय सियासत के इतिहास में हॉर्स ट्रेडिंग की शुरुआत कब और किसने की थी... आपने एक बड़ा ही मशहूर जुमला सुना होगा... आया राम गया राम... इस जुमले की बुनियाद ही हॉर्स ट्रेडिंग से जुड़ी हुई है... वह कैसे चलिए बताते हैं... 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा एक अलग राज्य बना, अगले साल यानी 1967 में हरियाणा में पहले आम विधानसभा चुनाव हुए... हरियाणा के पलवल जिले के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए गया लाल... इसके बाद उन्होंने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली... पहले तो उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़कर जनता पार्टी का दामन थाम लिया... फिर थोड़ी देर में कांग्रेस में वापस आ गए... करीब 9 घंटे बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ और एक बार फिर जनता पार्टी में चले गए...

aaya ram gaya ram

खैर गया लाल के हृदय परिवर्तन का सिलसिला जारी रहा और वापस कांग्रेस में आ गए... कांग्रेस में वापस आने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन नेता राव बीरेंद्र सिंह उनको लेकर चंडीगढ़ पहुंचे और वहां एक संवाददाता सम्मेलन किया... राव बीरेंद्र ने उस मौके पर कहा था, 'गया राम अब आया राम हैं।' इस घटना के बाद से भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि आम जीवन में भी पाला बदलने वाले दलबदलुओं के लिए 'आया राम, गया राम' वाक्य का इस्तेमाल होने लगा...

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