महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर गाँव में हुआ था। और उनके बचपन का नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।
जब भी हम गाँधी जी का नाम सुनते हैं तो दिमाग में एक खादी का शॉल और धोती लपेटे हुए एक साधारण से इंसान की छवि उभर कर सामने आती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की गाँधी जी शुरुआत से खादी के वस्त्र नहीं पहनते थे।
शुरूआती दिनों में गांधी जी भी कोट पैंट और टोपी पहनते थे उसके बाद उन्होंने एक लम्बा कोट, धोती और पगड़ी पहनना शुरू किया। और 22 सितम्बर 1921 को वो समय आया जब गाँधी जी ने पोशाक बदलने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया।
गुजराती पोषक में उन्होंने एक साधारण सी धोती और शॉल पहनने का फैसला किया। और ये निर्णय गाँधी जी ने मदुरै में लिया जब उन्होंने फैसला किया की उन्हें भारत के गरीब लोगों के साथ मिलकर काम करना है और अगर वे अलग कपड़े पहनेगे तो गरीब लोगों के साथ कैसे काम करेंगे और कैसे चल सकेंगे।
सबसे खास बात ये कि महात्मा गाँधी ने जब से स्वदेशी कपड़े पहनने शुरू किये, उसके बाद से विदेशी यात्राओं से लेकर अंतिम क्षणों तक स्वदेशी कपड़ा ही पहना।
इसके साथ ही महात्मा गांधीन महात्मा गाँधी चाहते थे की खादी राष्ट्रीय कपड़ा बने। उनका ऐसा मानना था की खादी का उपयोग करने के बाद अमीर और गरीब के बीच की खाई को भरने का सबसे अच्छा तरीका था
लेकिन आज 150 साल बाद 21वीं सदी में भी खादी अब फैशन स्टेटमेंट के रूप में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है हालाँकि यह एक ऐसा बदलाव है जो गाँधी जी के दृश्टिकोण से काफी अलग है। दरअसल गाँधी की खादी को किसी फैशन में नहीं बल्कि उसके जरिये स्वरोजगार को उत्पन्न करने का बढ़ावा देना चाहते थे।
स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी ने बहुत सारे आंदोलन किये। इसमें सत्याग्रह और खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह और डांडी यात्रा आदि प्रमुख आंदोलन शामिल है।
आपको बता दे की गाँधी जी ने देश की आजादी की लड़ाई में अहिंसा का सिद्धांत अपनाया। और हिन्दू मुश्लिम एकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया।
वहीँ महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहने का स्त्रोत पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने किया, क्यूंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान था और वो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख नेता थे। इसके बाद राष्ट्रपिता का उपयोग गाँधी जी के सम्मान में आमतौर पर किया जाने लगा।