जो पहुंच गए हैं डायबिटीज के करीब, वो अपना डेली रूटीन बदलकर फिर से पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं और डायबिटीज से बचे रह सकते हैं
आमतौर पर यही धारणा है कि अगर कोई व्यक्ति प्री-डायबिटिक है तो उसे डायबिटीज़ होना तय है। प्री-डायबिटीज़ का मतलब है ख़ून में शक्कर की मात्रा सामान्य से ज़्यादा होना।
गर्दन पर त्वचा की सिलवटों का रंग गहरा काला होना, प्री-डायबिटीज़ का सबसे आम संकेत है। शरीर का वज़न ज़्यादा होना, पेशाब ज़्यादा आना और कमज़ोरी महसूस होना आदि लक्षण प्री-डायबिटीज़ की ओर इशारा करते हैं,
लेकिन ऐसे मरीज़ों में डायबिटीज़ के मुख्य लक्षण नहीं होते हैं। जिनका वज़न अधिक है या मोटापे से ग्रस्त हैं, जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह हुआ हो, या परिवार में मधुमेह का इतिहास रहा है,
सुस्त जीवनशैली, मानसिक तनाव, शक्कर का अधिक सेवन, अत्यधिक धूम्रपान एवं शराब का सेवन, पर्याप्त नींद न लेना, नमक का अधिक सेवन प्री-डायबिटीज़, डायबिटीज़ और हृदय से संबंधित समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं।
यह समस्या 18-35 साल के लोगों में ज़्यादा देखने को मिलती है। पिछले 5 से 10 सालों में प्री-डायबिटीज़ के मरीज़ों की संख्या में 5 से 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस मधुमेह में ख़ाली पेट का रक्त शर्करा स्तर ज़्यादा आता है और खाना खाने के बाद का शुगर लेवल सामान्य आता है।
इससे भी मरीज़ के शरीर में दिल, धमनियां, किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को लंबे समय में नुक़सान पहुंचता है। इसलिए प्री-डायबिटीज़ को लेकर भी व्यक्ति को ज़्यादा सतर्क रहना चाहिए।
जैसे-जैसे शरीर का वज़न बढ़ता जाता है, वसा लिवर और पैनक्रियाज़ के आस-पास जमा हो जाती है। इस वसा के जमा होने के कारण इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है, जिसके कारण मधुमेह होने का जोखिम बढ़ जाता है।
रोज़ पोषण से भरपूर संतुलित आहार जैसे ताज़ी हरी सब्जि़यां, ताज़े फल, अंकुरित दालें, भुने हुए चने, दही, नट्स, बादाम आदि का सेवन करें। भोजन के बीच लंबे समय का अंतराल न रखें, समय पर भोजन करें, वज़न कम करने के लिए रोज़ाना लगभग 50 मिनट व्यायाम करें।
गेहूं के आटे की जगह मिलेट/मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, रागी का सेवन करें। मैदा और चावल के सेवन से बचें। तले-भुने और अधिक मसालेदार खाद्यपदार्थों का सेवन न करें। अधिक तेल और मांसाहारी भोजन से भी परहेज़ करें।