किसके प्रयासों से 1948 ओलंपिक में रचा था भारतीय हॉकी टीम ने इतिहास | Why Was The 1948 Olympics Important For India

In Which Year India Won Its First Gold Medal In Hockey | 1948 का लंदन ओलंपिक 

1948 ओलंपिक में रचा था भारतीय हॉकी टीम ने इतिहास

1948 Olympics Hockey Team Win Gold Medal
Who Won The First Gold Medal For India In Olympics After Independence?
भारत ने हॉकी में अपना पहला स्वर्ण पदक किस वर्ष जीता था?

क्या आपको पता है कि 1948 में खेला गया लंदन ओलंपिक का हॉकी मैच भारत के लिए इतना ख़ास क्यों था। भारत के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के अद्वितीय प्रयासों से 15 अगस्त 1947 में भारत को लगभग 200 वर्षों बाद अंगेजी हुकूमत से आजादी मिली थी। जब भारत आज़ाद हुआ तो विभाजन का एक बड़ा परिणाम पाकिस्तान के रूप में सामने आया। इसका बड़ा असर हॉकी टीम पर भी पड़ा। कुछ खिलाडियों के पकिस्तान जाने के बाद हॉकी टीम का नए सिरे से चयन किया गया। लेकिन क्या आपको पता है कि किसके प्रयासों से स्वतंत्र भारत की हॉकी टीम लंदन ओलंपिक में जा पायी थी। 

1948 Olympics Hockey Team Win Gold Medal

नवल टाटा के प्रयासों से हॉकी टीम पहुंची ओलंपिक्स

आज हम बात करेंगे कि हॉकी की टीम स्वतंत्रता के बाद कैसे पहली बार लंदन ओलंपिक्स में भाग लेने के लिए गयी। इसके लिए हमे जाना होगा इतिहास में जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। उस समय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष थे टाटा संस के डायरेक्टर नवल टाटा। नवल टाटा की इक्छा थी कि आजाद भारत की टीम लंदन ओलंपिक्स में भाग लेने के लिए जाए। लेकिन उस समय टीम को लंदन भेजने लिए फेडरेशन के पास पर्याप्त फंड नहीं था। जिसके लिए नवल टाटा काफी प्रयासों में लगे हुए थे। उनका मानना था कि अगर आजादी के बाद टीम खेलने नहीं जा पायेगी तो यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात होगी। 

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तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से की मुलाकात 

इसी बात को लेकर नवल टाटा ने लार्ड माउंटबेटन से मुलाकात की। उन्होंने नवल टाटा को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिलने और हॉकी टीम को ओलंपिक्स में भेजने के लिए नेहरू को प्रस्ताव देने की सलाह दी। सदियों की गुलामी के बाद आजाद देश के नए नए प्रधानमंत्री बने नेहरू के पास देश से जुड़े तमाम मुद्दे थे जिन पर उनका विशेष ध्यान था। जिस कारण नेहरू के पास समय की कमी थी। टाटा के कई प्रयासों और इस व्यस्तता के बाद दोनों के मिलने का समय रात 10 बजे का तय हुआ। जिसका जिक्र हरीश भट्ट की किताब 'टाटा स्टोरीज' में मिलता है। वे लिखते हैं की दिन भर के तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने और दिमाग खपाने के बाद पंडित नेहरू चिड़चिड़े मन से नवल टाटा से मिले। 

फंड जुटाने के लिए  खेल उत्सव का किया आयोजन

हरीश भट्ट लिखते हैं कि नेहरू ने टाटा से कहा कि अगर हम हॉकी टीम को न भेजें तो क्या हो जायेगा? जिसे सुनकर पहले तो टाटा पहले दंग रह गए। लेकिन बाद में उन्होंने माना कि टीम को भेजना जरुरी नहीं है। लेकिन फिर भी उन्होंने नेहरू को समझाया कि आजादी  के बाद पहली सरकार के गठन के बाद यह विडंबना होगी अगर टीम खेलने ना जाए। जबकि गुलामी में भी 25 साल हॉकी की टीम जीतती आ रही है। कई दौर की बातचीत के बाद, टाटा की बात सुनकर पंडित नेहरू ने टीम को ओलंपिक में भेजने के लिए हामी भरी। अब भी सबसे बड़ी समस्या फंड की थी हालांकि इसके लिए पंडित नेहरू ने एक लाख रुपये की मंजूरी दी। टाटा और पंडित नेहरू ने फंड जुटाने के लिए एक खेल उत्सव का आयोजन भी कराया। जिसके बाद भारतीय हॉकी टीम 1948 में लंदन ओलंपिक खेलने के लिए गयी। 

टीम ने रचा इतिहास 

सरकारी सहायता और खेल उत्सव से जुटाए गए फंड से लंदन ओलंपिक खेलने गयी हॉकी टीम ने रचा था इतिहास। देश की आजादी के बाद हो 1948 में हो रहे लंदन ओलंपिक में भारत ने अपना पहला स्वर्ण पदक हॉकी में ही जीता था। यह सिलसिला अगले दो ओलंपिक तक जारी रहा और दोनों में गोल्ड मेडल जीत कर भारतीय हॉकी टीम ने देश का नाम रोशन किया। 

 

 

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