कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंसे मोदी और भाजपा

कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंसे मोदी और भाजपा




23 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जैसे प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव घोषित किया वैसे ही विपक्षी दलों के होश ही उड़ गये। खासतौर से भाजपा के लेकिन दिखावा तो वैसे ऐसा कर रही है जैसे कि उन पर प्रियंका के आने न आने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन यह बात तो साफ दिख रही है कि हर स्तर पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका पर टीेका टिप्पणियां जारी हो गयी है।

वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह कह कर प्रियंका गांधी का स्वागत किया कि राजनीति में युवा लोग सक्रिय हों। उससे स्वच्छ राजनीति की शुरुआत होगी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी कोई ऐसी टिप्पणी नहीं की है जिससे कोई गलत बात होने का अहसास किया जाये। लेकिन उप्र भाजपा के अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने अखिलेश यादव पर तंज किया है कि अब अखिलश के पास लोों के स्वागत करने के अलावा कुछ बचा नही है। इससे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती के आगे हाथ जोड़ कर हो गये और अब प्रियंका गांधी के आगे स्वागत करने को तैयार हो गये हैं।

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जैसे ही कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को महासचिव बनाने की घोषणा की वैसे ही भारतीय राजनीति में खलबली मच गयी है। प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से सबसे ज्यादा हड़बड़ी भाजपा में देखने को मिल रही है क्यों कि उन्हे मालूम है कि कांग्रेस सपा व बसपा के खिलाफ इतना अधिक हमलावर नहीं होगी जितना कि मोदी सरकार और भापजा के। यह बात भी जगजाहिर है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा के निशाने पर सिर्फ मोदी और भाजपा ही रहेंगे। भाजपा के लिये सबसे ज्यादा परेशानी की बात यह है कि प्रियंका को पूर्वांचल का प्रभारी बनाया गया है। पूर्वांचल से पिछले आम चुनाव में भाजपा के 19 सांसद चुने गये थे। लेकिन आज के हालात पहले जैसे नहीं रहे हैं। स्वयं यूपी के सीएम योगी के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी ने उपचुनाव में कब्जा जमा लिया है। इतना ही नहीं फूलपुर उपचुनाव में भी बसपा और सपा के समर्थित प्रत्याशी ने भाजपा सांस
की सीट पर भारी मतों से जीत हासिल की है। इतना ही नही कैराना में बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से उपचुनाव में उनकी बेटी मृगांका को उम्मीदवार बनाया गया लेकिन यहां भी भाजपा की साांप्रदायिकता और जातिगत राजनीति नहीं चली और रालोद उम्तीदवार तबस्सुम हसन ने बाजी मार ली। रालोद प्रत्याशी को सपा, बसपा और कांग्रेस ने समर्थन दिया था। सपा बसपा के गठबंधन भाजपा के लिये काफी घातक साबित हुआ है। ऐसे में कांग्रेस ने प्रियंका को यहां लाकर भाजपा के लिये हालात और भी गंभीर कर दिये हैं।

सबसे पहले भाजपा के उपाध्यक्ष कैलाश विजय वर्गीय ने प्रियंका पर एक अशोभनीय टिप्पणी करते हुए कहा कि कांग्रेस अब चाकलेटी चेहरे चुनाव मैदान में उतार रही है। उनके इस बयान की मीडिया में काफी लानत भेजी गयी। लेकिन भाजपा का शीर्ष नतृत्व इस मामले में बिल्कुल चुप्पी साधे रहा है। इतना ही नहीं लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने एक महिला होते हुए प्रियंका गांधी पर तंज कसा। इस पर मीडिया ने उनके इस व्यवहार पर लानत भेजते हुए कहा कि उनको संवैधानिक पद पर रहते हुए ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिये। लेकिन वो निष्पक्ष नहीं रहीं और भाजपा पे्रम जाग उठा।


भाजपा के राज्यसभा सांसद और नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो प्रियंका के बारे में यह तक कहा कि वो एक प्रकार मानसिक बीमारी की शिकार हैं। वो किसी भी वक्त अपने आसपास के लोगों को चांटा मार सकती हैं। यह एक ऐसा हथियार है जिसका उपयोंग अपने विपक्षी दल के नेताओं पर करते हैं। स्वामी के बयान पर उनकी काफी निंदा हो रही है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की सोच पर तरस आ रहा है।
भाजपा तो भाजपा बालिवुड की एक सी ग्रेड ऐक्ट्रैस पायल रोहतगी ने तो प्रियंका की तुलना पोर्न स्टार सनी लियोनी से कर दी। उसके अनुसार सनी और प्रियंका का लुक एक सा ही है। पायल को कम से कम अपनी हैसियत का तो ध्यान रखना चाहिये था कि वो ऐसी महिला पर ऐसे कमेंट पास कर रही है जिसके परिवार में तीन तीन प्रधानमंत्री रह चुके हैं। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता आईपी सिंह एक कार्यक्रम में एन्कर के प्रियंका गांधी कहने पर भड़क उठे और कहने लगे कि प्रियंका राबर्ट बाड्रा की पत्नी हैं इसलिये उन्हें प्रियंका गांधी न कहकर प्रियंका वाड्रा कहा जाये।

इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रियंका की राजनीतिक सक्रियता से भाजपा कितनी खौफजदा है। वैसे भी एजेंसियों के सर्वे बता रहे हैं कि बुआ और बबुआ के गठबंधन से भाजपा को बहुत भारी नुकसान होने जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस ने टंªप कार्ड के रूप में प्रियंका को पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंप कर भाजपा के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी। वैसे भी सुलतानपुर, रायबरेली और अमेठी क्षेत्रों में प्रियंका चुनावों के दौरान काफी सक्रिय रहती है। यह बात और है कि वो पहले यहां अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल के लिये प्रचार की कमान संभालती थी। पहली बार पार्टी ने पूर्वांचल की जिममेदारी सौंपी है। वैसे भी लोगों को प्रियंका गांधी मंे श्रीमती इंदिरा गांधी की छवि नजर आती है। यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका के सक्रिय होने से पार्टी में जान आ गयी है। कार्यकर्ता भी जोश में भर गये है। पार्टी से नाराज और दूर रहने वाले कार्यकर्ता पार्टी कार्यालयों में वापस आने लगे हैं। अगर कांग्रेस प्रियंका के जरिये अपना संगठन और कार्यकर्ता जुटाने सफल हो गयी तो इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा के लिये अपनी लाज बचाना काफी मुश्किल हो जायेगा।

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विनय गोयल

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