मन मचले तो मचलने दे भीगे तो भीगने दे उड़े तो उड़ने दे, रास्ते में रुके तो रुकने दे

 
Man ko halka kaise kare
 

मन हल्का कर के :;

भोर की अरुणिमा ने मुझे दी है नई उमंग
सफेद कागज़ पे यूं चल पड़ी स्याही मलंग

छोटे काले बादलों की तफ़री यहां वहां
गुड़हल के लाल फूल चमेली की सुगंध
पुष्प पराग से आकर्षित भंवरे की गूंज
मस्त पवन सा उड़ता मन जाने ठहरे कहां 

मन कहीं भी उड़े अब उड़ने दूंगी उसे
मस्तानों की गली में झांके, ठहरे गर
अगर बहे हल्के मधुर तरंगों में जाकर
बिन रोक टोक के जाने दूंगी मैं उसे 

जिल्लत  से दबकर मचलना भूल गया
मन मेरा बस आहें भरता था हरदम
खुल के सांस लेना बरसों पहले भूल गया
खुद की ही बंदिशों में कैद सा हो गया

मन मारकर जीना जैसे बेमतलब सा है
बेमन जिंदा रहना बस सांस लेने जैसा है 
चलो करते हैं खुल के जो जी चाहे आज
देखें घूमें मन मिलाएं फुरसत से देखें ताज 

ये ज़री किनारे की पोशाक पे चूनर धानी
बारिश में फिसले पैर हे तालाब पानी पानी
गीली रेत के आंगन में बनें बारीक आकार
मन भी फिसला तो बाजी पायल झनकार

मन मचले तो मचलने दे भीगे तो भीगने दे
उड़े तो उड़ने दे, रास्ते में रुके तो रुकने दे
किसी गुफ्तगू की ख्वाहिश रखे तो हर्ज क्या है
मिल जाए प्यार से किसी से तो बुरा क्या है

अब इस उम्र में वादे कसमें रस्में नहीं चाहिए 
बस दो घड़ी सुकून मिले तो और क्या चाहिए
थक गए हैं अपनों और गैरों से मन मिला के
काम कुछ आसान हो अब इसे बोझ से हल्का कर के!

                                ~नीतू माथुर

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