मैं अपने रंग भर लूं

Ill fill in my colours
 
I'll fill in my colours

 ( लेखिका  नीतू माथुर  ) 

कुछ उलझनों को एक तरफ़ रखकर 
कभी ख़ुद को क़ाफ़िलों से दूर रखकर 
ठहरी हुई छाँव से करें जब मन की बात 
वादी में थमें परबतों का सुनते धीमा राग 

एक उजली किरन से रोशन हुआ नज़ारा 
नर्म धुली घाटी रस्तों से महके ज़र्रा ज़र्रा 
बहती हवा की झनकार से रोम खिल उठा 
अब ये सुकून यूँ ही बना रहे दिल कह उठा

ना बन के बिजली मेघ में गरजना है मुझे 
ना परबतों से कंकर की तरह टूटना है 
परतों परतों से बनी इस जगी मूरत में 
बस इक धड़क बन के धड़कना है मुझे 

बंद आँखों से देख मन भीतर समा लूँ 
टूटती नींदों में फ़िर से सपनें सजा लूँ 
मनोरम गगन को अपनी लालिमा जैसे 
मैं भोर सांझ में सुंदर सजीले रंग भर लूं 

 ( लेखिका  नीतू माथुर  ) 

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