थालियाँ

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थालियाँ 

(लेखक: इंजीनियर अरुण कुमार जैन  स्रोत: विनायक फीचर्स)

तीनों के सामने भोजन परोसा गया।
पहली थाली में थी सिर्फ दाल और रोटी।
दूसरी में दाल-रोटी के साथ तोरई की सब्ज़ी भी थी।
तीसरी थाली में दही और नमकीन का अतिरिक्त स्वाद भी मौजूद था।

पहली थाली थी परिवार के बुज़ुर्ग ससुर की,
दूसरी थाली उस युवक की थी जो अभी पढ़ाई कर रहा था — देवर,
और तीसरी थाली थी उस व्यक्ति की, जो घर का कमाने वाला सदस्य था — पति।

भोजन की थाली सिर्फ भूख नहीं, बल्कि परिवार में आपकी भूमिका और योगदान की कहानी भी कहती है।

लघुकथा 2: स्मृतियों का खजाना

दादी ने पुराने संदूक से एक कपड़े की पोटली निकाली।
जैसे ही उन्होंने उसे खोला, बच्चों की हँसी गूंज उठी।
पोटली में चाँदी के तीस पुराने सिक्के थे।

कई पीढ़ियों के साथ रहने वाली रुक्मिणी दादी, जो अब एक समृद्ध परिवार की मुखिया थीं, अपने नाती-पोतों को 60 साल से सहेजे गए ये सिक्के दिखा रहीं थीं।

"दादी, इससे तो एक पार्टी भी नहीं हो सकती!" छोटा मोनू हँसते हुए बोला।

दादी की आँखें नम हो गईं।
"इन्हीं में से साठ सिक्कों में से तीस सिक्कों से तुम्हारे दादाजी ने व्यापार की नींव रखी थी।
बाकी बचे तीस को मैंने बुरे वक़्त के लिए संजो कर रखा था  इन्हीं सिक्कों ने हमें कठिनाइयों में ढांढस दिया।"

फिर उन्होंने वे सिक्के वापस पोटली में रख दिए —
उनके लिए वे सिर्फ धातु के टुकड़े नहीं थे,
बल्कि जीवन की यादों और संघर्षों की चुप दास्तान थे।

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