पहचानने की विसंगति: जब नाम स्मृति से हो जाता है पलायन

(विवेक रंजन श्रीवास्तव - विभूति फीचर्स द्वारा)
"पहचाना आप ने?"— यह सवाल अक्सर हमें संकोच में डाल देता है। ऐसी परिस्थिति में हम बातों-बातों में वह सूत्र खोजने की कोशिश करते हैं कि किसी तरह सामने वाले का नाम याद आ जाए। दरअसल, नाम व्यक्ति की पहचान है, लेकिन याददाश्त के साथ उसका रिश्ता हमेशा लुका-छिपी का ही रहा है। चेहरा तो लोग आसानी से पहचान लेते हैं, पर नाम अक्सर हमारी स्मृति से सबसे पहले पलायन कर जाता है। यहाँ तक कि फोन करते समय भी याद नहीं आता कि नंबर किस नाम से सेव किया था (क्योंकि एक 'विवेक' ढूंढो तो तीन निकल आते हैं, इसलिए रिफरेंस या शहर का नाम साथ लिखना पड़ता है)।
"अरे आप!": मजबूरी और अपराधबोध का छलावा
किसी पार्टी या सभा में नाम याद न आने की यह समस्या सबसे अधिक होती है। सामने वाला मुस्कराते हुए पूछता है "कैसे हैं आप?" और हम उतनी ही आत्मीयता से जवाब देते हैं, "अरे आप!"। इस "आप" के पीछे कितनी मजबूरी और कितना अपराधबोध छिपा होता है, यह वही समझ सकता है जिसने मिलने वाले का नाम दिमाग की हार्ड डिस्क से डिलीट कर 'रीसायकल बिन' में पहुँचा दिया हो, और फिर रीसायकल बिन भी क्लीन कर दी हो। ऐसे में, ढेर सारे खाए हुए बादामों की कसम देने के बावजूद नाम याद नहीं आता, तब सभ्यता बनाए रखने के लिए पहचानने की एक्टिंग करनी पड़ती है।

सेलिब्रिटी फार्मूला और देसी जुगाड़
दिवंगत अभिनेता शशि कपूर ने इस विसंगति का एक समाधान खोजा था। वह मिलते ही सामने वाले से कहते, "हाय, आई एम शशि कपूर।" सामने वाला भी शिष्टाचारवश अपना परिचय दे देता। यह फ़ॉर्मूला कलाकारों और सेलिब्रिटीज के लिए तो काम करता है, पर अगर मोहल्ले का गजोधर प्रसाद या हरिप्रसाद यही तरीका अपनाए तो सामने वाला शक करने लगेगा कि कहीं यह बीमा एजेंट तो नहीं!
इस समस्या को छिपाने के लिए कुछ लोग रचनात्मक वाक्य गढ़ते हैं:
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"भाई साहब, आप तो बिल्कुल नहीं बदले!" (सामने वाला सोचता है कि बदली तो तुम्हारी याददाश्त है)।
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रिश्तों का सहारा: जब नाम याद न आए तो लोग "भाभी जी", "भाई साहब", या "चाचा जी" जैसे रिश्ते का लेबल चिपका देते हैं। यही तो भारतीय संस्कृति का अद्भुत चमत्कार है—सामने वाला खुद ही अपना नाम बता देता है!
ईमानदारी का सीधा रास्ता
हमारे एक अंकल ने इस समस्या को सीधे और ईमानदारी से हल किया। वे मिलते ही कहते, "बेटा, याददाश्त कमजोर हो चुकी है, बातें करने से पहले नाम और पता बता दीजिए।" उनकी इस सादगी में न दिखावा है, न शिष्टाचार का जाल, और सामने वाला झट से नाम बता देता है, मानो परीक्षा हॉल में अपना एडमिशन कार्ड दिखा रहा हो।
नाम भूलने की समस्या अक्सर हास्यास्पद हालात पैदा कर देती है। शादी-ब्याह में रिश्तेदारों की बातचीत का सारांश अक्सर यही होता है: "अरे आप!" और "जी, वही!" ऑफिस पार्टियों में भी लोग पूरे आत्मविश्वास से बतियाते हैं और फिर पूछते हैं, "वैसे आपने मेरा नाम तो नहीं भुलाया?" यदि नाम स्मृति की फाइलों से समय रहते रिकवर हो जाए, तो मुस्कराते हुए हम कहते हैं, "अरे फलां जी, कैसी बात करते हैं आप भी!"
