सच्ची प्रतिज्ञा

 sachchi pratikshs
 
लेखिका नीतू माथुर

( लेखिका नीतू माथुर )

दिन भर की थकन बिना बयाँ किए 
समंदर से अलविदा कहता है सूरज 
तपन धीमे सहेजे हुए एक वादा लिए
लालिमा समेटे हुए फ़िर आता है सूरज 

वहीं चाँद को ना चाह है किसी की 
ना किसी से कोई उम्मीद आरज़ू है 
बस परबतों का हमज़ोली  बनकर 
नई सपनों वाली रैन की ज़ुस्तजू है 

अपने गीतों से क्यूँ  ना मैं लुभाऊँ इन्हें 
सागर को सूरज से, चाँद को परबत से 
प्रीत अनुराग की धुन नूपुर संग ताल पर 
थिरक थिरक इठलाना सिखाऊँ इन्हें 

या सीखूँ इनसे सच्चा वादा निभाना 
परबत से सीखूँ  शिखर तक का मार्ग 
सूरज से तेज सीखूँ चाँद से शीतलता 
सागर से गहराई सीखूँ गगन से अनंतता,

धरा गगन के मध्य रंगों का मिश्रण 
मोहक सुगंध बिखेरती बहती पवन 
अद्भुत अलौकिक ऋतु मनोहर छटा 
नव सृजन  सृष्टि का हर दुख दूर हटा

हर साँझ नए सवेरे का वचन देती है 
हर भोर  उज्ज्वल दिन का सत्कार 
एक दूजे से सच्ची प्रतिज्ञा निभाते हुए 
ये सुंदर सृष्टि निरंतर सुखद चलती है।

( लेखिका नीतू माथुर )

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