Story : जल के निखरे हैं हम

( लेखिका नीतू माधुर )Resurge association के एक event में स्नेहा को chief guest के तौर पर बुलाया गया था, auditorium पूरा भरा हुआ था और सभी उसकी motivational speech और उसके अनुभव सुनने को उत्सुक थे। उसकी भावुक कहानी, संघर्ष और हिम्मत के उदाहरण से हॉल में बैठे सभी लोग अपनी कुर्सी से उठे बिना नहीं रह सके। सभी ने उसके सम्मान में ज़ोर से तालियाँ बजाई और उसकी हिम्मत की दाद दी।
अपने अस्तित्व की लड़ाई जीतकर एक विजेता के रूप में उसने समाज में अपने लिए एक अलग जगह बना ली थी और वो अब सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई थी अपनी speech के बाद जब उसने चेक किया तो उसके फ़ोन में 2,3 missed calls थीं और वो भी उसकी ख़ास दोस्त छाया की, प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद उसने जब voice mail message सुना तो वो यूं था…. “हाय स्नेहा, अगर तुमने आवाज़ पहचान ली है तो प्लीज़ मुझे कॉल करना”, उसकी आँखों में जैसे एक अलग चमक सी आ गई और चेहरे पर हैरानी और ख़ुशी के मिले जुले भाव थे। उसने फ़ोन अपने बैग में रखा और सोचा कि अब घर जाकर छाया से बात करूँगी। घर पहुँचकर उसने फ़ोन लगाया और छाया से बात की, थोड़ी तसल्ली दोनों तरफ़ दिख रही थी,उन्होंने अगले दिन मिलने का प्लान बनाया।
स्नेहा और छाया एक ही स्कूल में पढ़ते थे, उनके घर भी पास पास ही थे, इसलिए दोनों परिवारों में भी आना जाना लगा रहता था, स्कूल में दोनों एक साथ ही रहते थे, क्लास रूम हो या ग्राउंड या कोई स्कूल फंक्शन दोनों एक साथ रहते थे, उनकी दोस्ती पूरे स्कूल में लोकप्रिय हो गई थी।सीनियर सेकेंडरी के बाद छाया ने IIM इंदौर से पढ़ाई की और फिर उसकी मुंबई में corporate job लग गई थी, लगभग 5 साल बाद वो स्नेहा से दुबारा मिलने वाली थी। वहीं स्नेहा science topper थी और वो Btech के बाद दिल्ली में एक office में काम करने लगी।
काम में व्यस्त रहने के कारण उनकी फ़ोन पे भी बात कम होने लगी। छाया एक बहुत ही कुशल IT professional बन गई थी और office में उसके काम को बहुत ही सराहना मिलने लगी थी, promotion भी हो गया था, उसके बॉस सबके सामने उसके काम की तारीफ़ करते थे। वहीं उसके साथ काम करने वाले कुछ लोगों को उससे जलन और ईर्ष्या भी होती थी, वो बात बात पर उसे ताना देते और मज़ाक़ बनाते थे। स्नेहा इस बात से बेपरवाह बस लगन से अपना काम करती थी। लेकिन स्नेहा की ज़िंदगी में शायद एक तूफ़ान दस्तक देने वाला था जिसका उसे बिल्कुल अंदेशा नहीं था। विनय उसका collegue था और office में पहले उसके बराबर की position पर था लेकिन स्नेहा के प्रमोशन के बाद वो जूनियर हो गया था और ये बात वो बिल्कुल हज़म नहीं कर पा रहा था, उसे स्नेहा को नीचा दिखाने के लिए बस एक मौके की तलाश थी, जो शायद पूरी होने वाली थी।
“क्या आज मेरे साथ कॉफ़ी पर चलोगी स्नेहा मुझे तुम्हें अपनी मंगेतर से भी मिलना है, विनय जो उसका collegue था उसने इतनी सहजता से स्नेहा से पूछा और तो माना नहीं कर पायी, इसके पीछे की साज़िश की उसे भनक तक नहीं थी। दोनों coffee shop के बाहर खड़े थे, तभी विनय ने एकदम से acid की शीशी निकाली और स्नेहा के मुंह पर फेंक कर तुरंत अपनी गाड़ी से भाग गया। वो कुछ समझ पाती इससे पहले ही वो बेहोशी में लड़खड़ा कर गिर गई। होश आया तो उसने ख़ुद को hospital में पाया। उसका पूरा चेहरा और एक हाथ लगभग 70% जल चुका था।
जलन इतनी थी की आँख के आँसू भी भाँप बन कर बाहर आ रहे थे। उसके घाव शरीर पर ही नहीं बल्कि उसकी आत्मा तक को जला रहे थे। इलाज शुरू हो चुका था, कुछ दिन बाद सर्जरी से उसकी तबीयत में थोड़ा थोड़ा सुधार होने लगा था। उसके परिवार के प्यार परवाह और हौसले से स्नेहा में कहीं से फिर जीने की उम्मीद जागने लगी थी। लगातार 2,3 surgery के बाद स्नेहा के burns काफ़ी हद तक अब भरने लगे थे और डॉक्टर के मुताबिक़ recovery होनी शुरू हो गई थी। अगले दिन उसने अपनी माँ से आईना मंगवाया, अपने चेहरे को देखकर उसकी आँखों से फूट फूट कर आँसू बहते जा रहे थे मानो इतने दिनों से दबे दर्द को बाहर आने का रास्ता मिला हो, उसकी माँ ने पूरी ममता से उसे गले लगाया और दोनों ही भाव में पूरी तरह से बह गए। उसकी माँ ने कहा कि “ये दिन भी जल्दी गुज़र जाएँगे, तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगी स्नेहा, तुम्हारे पापा ने विनय के ख़िलाफ़ complain की है और वो अब जेल में है। तुम सब कुछ भूलकर वापस अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत कर सकोगी बेटा”।
इस बात को आज दो साल हो चुके थे, और आज वो छाया से मिलने वाली थी। बाहर हल्की बारिश भी हो रही थी। छाया ने जैसे ही स्नेहा को दूर से देखा तो खुशी से झूमती उसके पास आई और बोली “हेलो मेरी प्यारी सखी! कितने दिनों बाद आज मिलना हुआ है , अरे,… तुमने बारिश में भी काला चश्मा क्यूँ लगाया हुआ है”, चश्मा उतार कर छाया ने जब स्नेहा को करीब से देखा तो उसे ख़ुद पर विश्वास नहीं हुआ, उसकी आँखों से सागर छलकने लगा हो, उसने स्नेहा को गले लगा लिया और दोनों सखियाँ भावनाओं में बह गईं। कुछ देर तक मानो समय रुक सा गया था, फ़िर दोनों एक रेस्टोरेंट में गए और वहाँ स्नेहा ने छाया को अपनी सारी कहानी बतायी। छाया के पाँव के नीचे मानो ज़मीन खिसक गई हो, “तुमने मुझे फ़ोन क्यू नहीं किया, कुछ भी बताया नहीं, मैं तुमसे पहले ही मिलने आ जाती, क्या हमारी दोस्ती में इतनी भी ताक़त नहीं थी,
मुझे बहुत अफ़सोस है कि मैं उस कठिन दौर में तुम्हारे साथ नहीं थी”। “नहीं छाया, प्लीज़ ऐसा बिल्कुल मत सोचो , मैंने कई बार तुमसे बात करने की कोशिश की लेकिन मैं अपने दुख से तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती थी, और मैं ये भी जानती थी कि जब भी मैं तुम्हें बुलाऊँगी तुम दौड़ कर मुझसे मिलने आ जाओगी, लेकिन ये मेरी अकेली की लड़ाई थी, मेरा अपना संघर्ष था जिससे लड़ते हुए मुझे ख़ुद बाहर आना था। विनय, जिसने मेरे साथ ये दुस्साहस किया उसे उसकी सज़ा मिल रही है, लेकिन उसे सज़ा दिलाना ही मेरा मकसद नहीं था, मैं चाहती थी कि जो भी मेरे साथ या बाक़ी लड़कियों के साथ हुआ है वो आगे किसी के साथ ना हो। Acid attack से ना सिर्फ शरीर बल्कि उस व्यक्ति की आत्मा, स्वाभिमान और उसके अस्तित्व भी पूरी तरह से जल जाता है,
ऐसे घिनौने कर्म को रोकने के लिए हमें समाज में एक जागरूकता का माहौल बनाना पड़ेगा। लड़कियों को सतर्क और सावधान रहने की बजाय निडरता से और बेख़ौफ़ जीने का अधिकार देना होगा, और ये तभी संभव है जब हम, आप, पूरा समाज, सामाजिक संस्थाएं और सरकार सब मिलकर एक ठोस नियम और क़ानून बनाये”, स्नेहा ने पूरे आत्म विश्वास और समझदारी साथ छाया से बात की , “मुझे तुम पर फ़क्र है मेरी दोस्त, आज से इस मिशन में मैं भी तुम्हारे साथ हूँ और हमेशा रहूँगी, तुम्हारी हिम्मत और हौसले से मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली है”। “आज से हम नए अटूट बंधन में दोबारा बंध गए हैं, बंधन दोस्ती का, हिम्मत का, हौसले का, और इसी बात पर चाय पकोड़े हो जाएँ”, छाया ने एक नए विश्वास और सच्चाई से स्नेहा का हाथ पकड़ा और उसे ये वचन दिया।
स्नेहा मानो आज बिना रुके सब कुछ बोलकर ख़ुद को हल्का करना चाहती थी, वो छाया को आगे बताने लगी… “कुछ महीने के इलाज के बाद मैंने break लिया और अपनी health पर ध्यान दिया, फिर धीरे धीरे दूसरी नौकरी मिली, और मैंने सोचा कि मैं इसके अलावा भी अपना समय social awareness और welfare में दूँगी , मैं Resurge association से जुड़ी और अब तक हम 18 acid attack survivors को हर तरह से मदद कर चुके हैं। जिनमें उनके इलाज, स्किन सर्जरी से लेकर आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से सहायता करते हैं, और उन्हें आगे बढ़ना सिखाते हैं, और आज से तुम भी हमारे साथ जुड़ गई हो, तुम्हारा स्वागत है छाया”, स्नेहा के इस हिम्मत वाले स्टेटमेंट से स्तब्ध छाया ज़ोर से ताली बजाने लगी और गर्व से उसे सैल्यूट करने लगी।
घाव भर जाते हैं, लेकिन निशान रह जाते हैं। सही बात है, लेकिन इन निशानों को देखकर दुखी होने की बजाय उनको अपनाकर आगे बढ़ने और उनसे उभर कर बाहर आने में ही आपकी असली परीक्षा है। जलन के दाग ही आपकी असली ख़ूबसूरती है जो आपको इतनी हिम्मत देते हैं आप फिर से दुनिया का सामना कर सकते हैं। मुश्किल है मगर नामुमकिन नहीं, कोशिश कीजिए। झुलसी आँखों पे लगा काला चश्मा उन्हें छुपाने के लिए नहीं बल्कि एक नए style statement की पहचान को दुनियां के सामने लाने के लिए लगायें। जलन के दाग से ही आप निखर कर आए हैं।