विजयी मुस्कान

(लेखक: रमेश मनोहरा | स्रोत: विनायक फीचर्स)
थाना प्रभारी इंस्पेक्टर रामसिंह अभी थाने पहुँचे ही थे कि उनका मोबाइल बज उठा। दूसरी ओर से आवाज आई — "मैं मंत्री सूबेदार सिंह बोल रहा हूँ।"
रामसिंह तत्परता से बोले, “नमस्ते सर! आदेश दें, क्या सेवा कर सकता हूँ?”
मंत्रीजी हँसते हुए बोले, “सुना है तुम्हारा थाना तो कमाई का खजाना है। बस, एक ‘पेटी’ का इंतज़ाम कर दो।”
रामसिंह थोड़ी झिझक के साथ बोले, “इंतज़ाम तो हो जाएगा सर, लेकिन... कुछ रियायत मिल सकती है क्या?”
मंत्रीजी बोले, “ठीक है, आधी पेटी कर लो। पार्टी के बड़े कार्यक्रम के लिए है, व्यवस्था ज़रूरी है।”
रामसिंह को मंत्रीजी के आदेश का पालन करना ही था। आखिर, इसी नेता की सिफारिश से वे इस 'लाभकारी' थाने पर आए थे। इस पोस्टिंग के लिए उन्होंने ऊपरी अधिकारियों को अच्छी-खासी रकम चुकाई थी, लेकिन अब तक उससे कहीं ज्यादा कमा भी चुके थे।
उन्हें पता था कि अगर मंत्रीजी नाराज़ हुए, तो अगला तबादला किसी ऐसे इलाके में होगा, जहाँ ‘कमाई’ का नामोनिशान भी नहीं होगा। और यही नहीं, भविष्य का प्रमोशन भी खतरे में पड़ सकता है।
रामसिंह ने तत्काल अपने स्टाफ—मान सिंह, शरद कुमार, अंजली शर्मा, कौशल्या, कैलाश और किशन धोलपुरे को बुलाया और आदेश दिया, “हाईवे पर विशेष चेकिंग अभियान चलाना है।”
“सर, ये अचानक चेकिंग का आदेश?” किशन धोलपुरे ने सवाल किया।
रामसिंह मुस्कराते हुए बोले, “जब ऊपर से आदेश आता है तो अचानक ही आता है।”
फोर्स के साथ रामसिंह हाईवे पर पहुँचे और वाहनों की तलाशी शुरू हुई। असल मक़सद था ‘ऊगाही’। कुछ वाहन चालक चुपचाप ‘समझौता शुल्क’ चुका रहे थे, कुछ शासकीय रसीद की माँग कर रहे थे।
इसी बीच एक वाहन से 3 किलो अफीम बरामद हुई। ड्राइवर को जब थाने लाया गया तो वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा, “साहब, पहली बार है... छोड़ दो... गरीब आदमी हूँ।”
रामसिंह ने सख्त लहजे में पूछा, “किसके लिए ये माल ले जा रहे थे?”
आदमी चुप रहा। फिर बोला, “साहब, जैसा कहो वैसा कर दूँ, बस केस मत बनाओ।”
रामसिंह को तो इसी मौके की तलाश थी। बोले, “ठीक है, तीस हज़ार दे दो, और निकल जाओ।”
कुछ देर की बहस के बाद व्यक्ति ने रकम निकालकर थमा दी और मामला वहीं निपटा दिया गया।
“साहब, आप तो माहिर हो,” धोलपुरे ने मुस्कराते हुए कहा।
रामसिंह बोले, “पुलिस की नौकरी यूँ ही नहीं कर रहा। 3-4 ऐसे और मिल गए तो मंत्रीजी का काम हो जाएगा।”
करीब पाँच-छह घंटे की मुहिम में ₹1.3 लाख जुटा लिए गए। उसमें से ₹40,000 रसीद के ज़रिए सरकारी खाते में जमा किया गया। ₹75,000 मंत्रीजी के लिए सुरक्षित रखे गए, बाकी का बँटवारा आपस में कर लिया गया।
रामसिंह ने मंत्रीजी को फोन किया, “सर, इंतज़ाम हो गया है।”
मंत्रीजी बोले, “बहुत अच्छा। नेताजी भेरूलाल को पैसे दे देना, वही पार्टी का कार्यक्रम देख रहे हैं।”
रामसिंह ने हामी भरी, फिर विनम्रता से कहा, “सर, अगर मेरी पदोन्नति के लिए डीआईजी साहब से एक शब्द कह दें तो...”
“हां हां, मैं बात कर लूंगा,” कहकर मंत्रीजी ने फोन काट दिया।
फोन कटते ही रामसिंह के चेहरे पर एक आत्मसंतुष्ट, विजयी मुस्कान उभर आई।