Happy Birthday Rekha : इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं

Happy Birthday Rekha : Thousands are crazy about the fun of these eyes
 
Happy Birthday Rekha : इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं
Happy Birthday Rekha : सांवली-सी काया, लम्बे-लम्बे केश, सागर-सी गहरी आंखें और उन आंखों में ढ़ेर सारे रंग-बिरंगे सपनों को बेशकीमती गहनों की तरह संजोकर रखने वाली बला की ख़ूबसूरत अदाकारा रही हैं भानुरेखा गणेशन। दक्षिण भारत की मिट्टी में पले-बड़े होने के बावजूद हिंदी सिनेमा में अपनी बेमिसाल अदाकारी और सम्मोहक मुस्कराहट से रेखा ने क़रीब चार दशकों तक बॉलीवुड की दुनिया में राज़ किया। इस दरमियान उनका नाम सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ काफ़ी सुर्खियों में रहा। रेखा की मासूमियत और उनका मिलनसार व्यक्तित्व उन्हें भीड़ से परे दर्शकों के दिलों में इज़्ज़त से बिठाता रहा है। रेखा अपने आप में एक दास्तान हैं, एक सफ़र हैं। उनका आज़ाद ख़्याल और बेबाक अन्दाज़ उनके प्रशंसकों को बहुत भाता है।



° रेखा मूलतः साउथ इंडिया की रहने वाली हैं
° सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और रेखा की जोड़ी मीडिया जगत में सुर्खियां बटोरने के लिए जानी जाती थी 
° रेखा को फ़िल्म उमराव जान के लिए मिल चुका है बेस्ट अभिनेत्री का नेशनल अवॉर्ड 


'इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं '! अस्सी के दशक की शुरुआत में आयी फ़िल्म उमराव जान के इस गाने को देखकर; यही कहा जा सकता है कि जिन आंखों की बात की जा रही है वो सचमुच में रेखा की ही आंखें थीं। क्या जबरदस्त अभिनय किया था रेखा ने उस मूवी में! दक्षिण भारत के एक बड़े ही मशहूर अभिनेता हुए हैं जेमिनी गणेशन। उन्हीं की बेटी हैं भानुरेखा गणेशन। रेखा का जन्म 10 अक्टूबर,1954 को, दक्षिण भारत के मद्रास में हुआ था। इस साल अक्टूबर में, वो अपने जीवन के सत्तर बसंत देखने की साक्षी बनेंगी। बॉलीवुड में आने से पहले रेखा तेलुगू फिल्मों में काम कर चुकी हैं बतौर बाल कलाकार। 70 के दशक में, उन्होंने दक्षिण भारत से बॉलीवुड की तरफ रुख किया था। 1970 में, फिल्म 'सावन भादो' से रेखा ने बॉलीवुड में बतौर अभिनेत्री पर्दापण पर किया था। उनका जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था। उन्होंने अपने करियर में तक़रीबन डेढ़ सौ से अधिक फिल्मों में काम किया और एक कामयाब अभिनेत्री रहीं। उन्होंने कई सारे अवार्ड्स जीते। हिंदी सिनेमा की चकाचौंध में अपने लिए एक नया मंच तैयार किया। रेखा ने तंज़ भरी आंखों का हिम्मत से सामना किया और तीखे-नुकीले सवालों का गम्भीरता से ज़वाब भी दिया। रेखा ने अपने ज़ीने के रास्ते और तौर-तरीके ख़ुद बनाए। उन्हें अपनी आज़ादी प्यारी थी। उस आज़ादी का भरपूर ख़्याल भी रखा।

 Happy Birthday Rekha
किसे पता था कि 'ख़ूबसूरत' मूवी की प्यारी सी चुलबुली लड़की आने वाले चन्द ही सालों में बॉलीवुड की दुनिया में लीक से हटकर अपनी मुकाम बनाने वाली है। सलवार-कमीज पहने और दो बड़ी-बड़ी चोटियां रखे हुए नटखट अन्दाज़ वाली लड़की जब अशोक कुमार के साथ प्यार से लड़ती-झगड़ती है; तो ऐसा लगता है जैसे सादगी की शमा बन्द कमरे में उजाला फैला रही है। 'ख़ूबसूरत' में रेखा ने अपनी अदाओं से दर्शकों को प्रभावित किया था। वहीं, अमिताभ बच्चन के साथ 'सुहाग' में उनको ख़ूब सराहा गया। फिल्म के एक दृश्य में अमिताभ और रेखा दोनों अपनी भेष-भूषा बदल कर एक अन्य पात्र की तलाश कर रहे होते हैं। तलाश करते-करते उन दोनों पर एक गीत फिल्माया गया था- " अठरह बरस की तू होने को आई रे, जतन कर ले !" दरअसल, इस गाने ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। शादी-विवाह आदि समारोहों में इस गाने पर थिरकना आम हो गया था। इस गाने में रेखा की डांस स्टाइल की नक़ल की जाने लगी थी। उसके बाद रेखा की एक और मूवी रिलीज हुई थी, अमिताभ बच्चन के साथ। फिल्म थी नटवरलाल। 'नटवरलाल' में रेखा ने एक पहाड़ी ग्रामीण लड़की की भूमिका को बख़ूबी ढ़ंग से प्रस्तुत किया था। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा कर रख दिया था। अमिताभ और रेखा की जोड़ी पर कुछ कर्णप्रिय गीत फिल्माए गये थे। नटवरलाल का एक फेमस गीत था," परदेशिया..परदेशिया ये सच है पिया, लोग कहते हैं मैंने तुझको दिल दे दिया..!" इस गाने को आज भी सुना जाता है।

Happy Birthday Rekha
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी को बड़े पर्दे पर सुपरहिट होने की गारंटी मानी जाती थी। इस जोड़ी को बड़े पर्दे पर देखने में हर किसी को मज़ा आता था। इन दोनों की जोड़ी ने उस दौर में धमाल मचाकर रख दिया था। लेकिन, कहते हैं न कि वक्त सदा एक सा नहीं होता। ज़वानी चार दिनों की मेहमान है। फ़िर, झूर्रियों ही हमारी पहचान बन जाती हैं। वक्त धीरे-धीरे दफ़न होता गया और रेखा-अमिताभ की जोड़ी बस स्मृतियों में सिमटकर रह गई। रेखा की ख़ूबसूरती कुदरत का नायाब तोहफ़ा था। कुदरत ने उन्हें बड़े नाज़ से सौंदर्य बख़्शा होगा। रेखा की ख़ूबसूरती उन्हें सबसे अलग करती थी। उनकी आंखों में कशिश होता था। रेखा का नृत्य कौशल, उम्दा आवाज़ और सम्मोहन शक्ति की पर्याय कही जाने वाली उनकी ख़ूबसूरत आंखें उनकी अदाकारी में जान डाल देती थी।

Happy Birthday Rekha
रेखा की शख्सियत बेमिसाल थी। आज उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। सत्तर और अस्सी का दौर अमिताभ-रेखा की जोड़ी का दौर कहें तो ग़लत न होगा। रेखा और अमिताभ बच्चन, दोनों एक्टरों‌ ने अपने-अपने करियर में न सिर्फ़ कामयाबी की इमारतें खड़ी की, बल्कि आज भी वे दोनों छोटे-बड़े पर्दे पर उसी जोश के साथ नज़र आते हैं। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तो अभी भी छोटे और बड़े पर्दे पर लगातार दिखाई पड़ते ही रहते हैं, लेकिन रेखा भी अपने दौर की सह अभिनेत्रियों की तुलना में अधिक सक्रिय नज़र आती हैं। उन्हें अक्सर किसी इवेंट या समारोह में देखा जाता है। जिस पार्टी या इवेंट में रेखा और बॉलीवुड के शहंशाह दोनों नज़र आ गये; समझो उस दिन मीडिया रिपोर्टों में किसी और की ख़बरें सुर्खियां बटोर ही नहीं सकतीं, सिवाय इस सदाबहार जोड़ी के। 
रेखा ने अतीत से लड़कर अपनी मुक़द्दर का फ़ैसला लिखा है। उनके अफसाने में तंज़, दर्द, तनहाई, कामयाबी और उपलब्धियों की गवाही साफ़-साफ़ नज़र आती है। उन्होंने हिंदी सिनेमा में सावन-भादो की बारिशें देखीं तो ज़ोहरा बाई की मुहब्बत में कश्मकश भी। उस ज़माने में शाय़द ही ऐसा कोई निर्माता-निर्देशक रहा होगा जिसने रेखा के साथ काम करने को लेकर मना किया होगा। रेखा दर्शकों का ख़्वाब थीं। उस ख़्वाब में उनके दिलकश अन्दाज़ और कभी न भूलने वाली हसीन मुस्कुराहटों की रंग-बिरंगी तस्वीरें छपी हुई होती थीं। रेखा अद्वितीय थीं। उनके बोलने का तरीका और ठहरी हुई आवाज़ एक पल के लिए मानो ज़ेहन में उतरकर कुछ कहना चाहती हों।

Happy Birthday Rekha
रेखा होना इतना आसान नहीं है। जिस भी चुनौतीपूर्ण किरदार को उन्होंने निभाया, उसे अमर कर दिया।‌ साल 1978 में, एक मूवी आयी थी जिसका नाम था मुक़द्दर का सिकंदर। इस मूवी में रेखा ने ज़ोहरा बाई नामक एक कोठेवाली का किरदार अदा किया था। उस दौर में तवायफ़ों की सामाजिक भूमिका को पर्दे पर दिखाने का चलन आम था। तब, फिल्मों की कथानक हो अथवा गीत-संगीत-संवाद, सब कुछ जानदार दिखाई पड़ता था। 'मुक़द्दर का सिकंदर' को प्रकाश मेहरा ने निर्देशित किया था और इस मूवी के कुछ हिस्सों के संवाद को लिखने का श्रेय दिवंगत चरित्र अभिनेता क़ादर ख़ान को भी जाता है। ज़ोहरा (रेखा) का उसके कोठे पर अक़्सर आने वाले सिकंदर (अमिताभ बच्चन) नाम के युवा लड़के से इश्क़ हो जाता है। ढ़ाई-तीन घण्टे की मूवीज़ में नायिका का नायक से मिलन की चाहत हर दर्शक को रहती है। जब उनकी चाहत को निर्देशक की हामी मिल जाती है तो अचानक से पूरा सिनेमाघर तालियों तर्तराहट और सीटियों की गूंज से सहम उठता है। उस ढाई-तीन घण्टे के लिए हमारे रूढ़िवादी समाज से निकले हुए दर्शक गण सारी मान्यताओं और रस्मों को दरकिनार करते हुए सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने ख़ुशी और संतुष्टि के लिए जीना चाहते हैं। इस काल्पनिक ख़ुशी को परोसने का काम निर्देशक और उसकी टीम बख़ूबी कर रही होती है। ज़ोहरा को सिकंदर की बाहों में देखने के लिए हर आंखें, हर नज़र बेताबी से तड़पती जा रही है। उसे यह भी नहीं पता कि सिनेमाघरों के बड़े पर्दों की दुनिया ढाई-तीन घण्टे तक ही चलती है। उसके बाद हक़ीक़त मुंह बाए सिनेमा हॉल के बाहर हमारा इन्तज़ार कर रही होती है। ज़ोहरा के साथ तक़दीर ने ही खुन्नस निकाली है। इसमें सिकंदर का कोई दोष नहीं।

Happy Birthday Rekha
" सलाम-ए-इश्क मेरी जां ज़रा कुबुल कर ले, मुझसे प्यार करने की... ओ साथी रे.. तेरे बिना भी क्या जीना..! " मुक़द्दर का सिकंदर फिल्म की इन दो गीतों ने ख़ूब तालियां बटोरीं।  यह एक सुपरहिट फिल्म साबित हुई। लेकिन, ज़ोहरा की कश्मकश को हर कोई नहीं समझ सकता, सिवाय रेखा के। रेखा ने ज़ोहरा को अपने भीतर जिया है। ज़ोहरा, सिकंदर को पाने के लिए तड़प रही है। ज़ोहरा समाज द्वारा फेंकी गयी इस घिनौनी दलदल में घूंट-घूंट कर गुमनामी की मौत नहीं मरना चाहती। उसे भी इज़्ज़त की ख़्वाहिश है। उसे भी रस्मों के साथ ज़माने के साथ चलना है। ज़ोहरा को पता है कि समाज द्वारा बनायी गयी जिस कूड़े के ढ़ेर पर वो नंगे पांव थिरकने को मजबूर है; उसमें उसका कोई गुनाह नहीं है। यह समाज है ही ऐसा। पुरुषवादी मानसिकता को दर्शाती इस रूढ़िवादी समाज में ज़ोहरा के लिए कोई जगह नहीं है; भले ही ज़ोहरा का जन्म उस गन्दगी फैलाने वाले विचारों से ही क्यों न हुआ हो! ज़ोहरा एक औरत है।‌ वो मजबूर है। लेकिन, सिकंदर भी कम मजबूर नहीं है। अपनी "मैम साहब" से भागते-भागते उसे ज़ोहरा का आसरा होता है। ज़ोहरा का दिल बड़ा है। वो एक दिलदार औरत है। उसे सब पता है, फ़िर भी जानकर भी नासमझ बने रहने का स्वांग रचती है। रेखा ने ज़ोहरा के किरदार को अमर कर दिया था। आलम यह हो गया था कि रेखा को ऐसी चुनौतियों से भरी हुई किरदारों को निभाने के लिए निर्देशकों की क़तारें खड़ी हो गयी थीं। बॉलीवुड को अपनी सुपर नायिका मिल चुकी थी। और दर्शकों को भी। लोग रेखा की नृत्य के दीवाने थे। उनके डांस को देखकर कोई भी ऐसा नहीं था जो उनके लिए तारीफ़ों के पूल न खड़ा किया हो।

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सन 1981 में, एक और ऐसी ही किरदार वाली मूवी आयी थी उमराव जान। इस फिल्म में रेखा ने उमराव जान के रूप में एक बार फ़िर अतीव महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उमराव जान की पृष्ठभूमि लखनऊ से शुरू होती है। फिल्मकार मुज्जफर अली ने एक पीरियड म्यूजिकल ड्रामा आधारित फिल्म 'उमराव जान' बनाई थी। इस मूवी की कामयाबी और शोहरत का तकाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म के आने के बरसों बाद इसकी लोकप्रियता जस की तस बनी हुई है।‌ लखनऊ की सड़कों से लेकर गली-मोहल्लों तक में उमराव जान के नाम का ज़िक्र आते ही आम आदमी भी ख़ुद को इतिहासकार समझने लगता है। निर्देशक मुजफ्फर अली ने समाज की कड़वी सच्चाई को बड़े पर्दे पर उतारने का साहस दिखाया। उस साहस को चार चांद लगाया रेखा ने, अपनी यादगार भूमिका के साथ वफ़ा करके। आज दौर बदल चुका है।‌ वो ख़्याल, वो मौसम और रुसवाईयां भी बदलाव के साथ कहीं बह गयी हैं। बस बाकी है तो उन किरदारों के क़िस्से और कहानियां। रेखा ने बेबाकी से हर खट्ठे-मीठे सवालों का ज़वाब दिया। साहस के साथ मुश्किलों का सामना किया। अपनी ज़िन्दगी को किसी बे-रहम के रहम की उम्मीद में ख़ाक़ नहीं किया। रेखा ने दक्षिण भारत की आबो-हवा में पले-बड़े होने के बावजूद हिंदी भाषी माहौल को कभी ख़ुद से अनजान नहीं होने दिया। वे खुले विचारों की खुश मिज़ाज औरत हैं। उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि कौन उनकी आलोचना कर रहा है। उन्होंने आलोचकों के तीखे सवालों का ज़वाब सही वक्त आने पर सहूलीयत और परिपक्वता से दिया। फिल्म उमराव जान में उनके द्वारा निभाई गयी उम्दा किरदार के कारण उन्हें बेस्ट अभिनेत्री के नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

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साल 1981 में, रिलीज हुई थी एक और ब्लॉकबस्टर हिट मूवी ' सिलसिला '। इस मूवी में रेखा ने दिवंगत दिग्गज अभिनेता संजीव कुमार की बीवी का किरदार निभाया था; वहीं अमिताभ बच्चन के साथ उनकी पत्नी की भूमिका में थीं मशहूर एक्ट्रेस और जया भादुड़ी। सिलसिला एक ऐसी मूवी थी जिसने रेखा-अमिताभ के बीच अफेयर की ख़बरों को विराम लगाया था। इस मूवी को देखने के बाद न तो दर्शकों के ज़ेहन में कोई भ्रम रह गया था और न ही मीडिया वालों के दिमाग़ में कोई सवाल बाकी था। देखा जाए तो सिलसिला एक ऐसी मूवी थी जिसने एक नयी "सिलसिला" के चलन का आगाज़ किया था। इस फिल्म में जिस तरह से रेखा और अमिताभ बच्चन ने रोमांटिक दृश्यों को दर्शाया; उसके बाद हर किसी ने इस मूवी को देखकर पहले तो दांतों तले उंगलियां दबाईं और फ़िर उसके दिल में बस एक ही धून बजता -"खेले गोरी का यार बलम तरसे, रंग बरसे.."

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सिलसिला एक म्यूजिकल ड्रामा आधारित सिनेमा थी। इस मूवी को बनाने वाले और प्रोड्यूस करने वाले रहे प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा। इस सिनेमा ने बॉलीवुड में रेखा-अमिताभ की जोड़ी को यादगार कहानी बनाकर हमेशा के लिए दिलो-दिमाग़ में क़ैद कर दिया। रेखा मीडिया और विरोधियों के आरोपों से बेपरवाह दिखीं। उन्होंने अपने भी सकारात्मकता को कम नहीं होने दिया। उनकी दृढ़ता ने युवाओं को उनके विचारों का कायल बना दिया था।सिलसिला में, जब रेखा और अमिताभ बच्चन चोरी-छिपे अपने प्यार को परवान चढ़ा रहे होते हैं; तब संजीव कुमार और जया भादुड़ी की भाव-भंगिमाओं को देखते ही बनता है। भारतीय सिनेमाई इतिहास में ऐसे अवसर कम ही आये, जब दो दिग्गज एक्टरों की मौन वार्तालाप ने ज़ेहन में अमिट छाप छोड़ी हो। संजीव कुमार और जया भादुड़ी की भाव-भंगिमाओं में बेबसी और बे-सहारा होने की आशंकाएं भीतर ही भीतर खाये जा रही हैं।

उधर, रेखा-अमिताभ भी समाज के बनाए हुए परम्पराओं को सदा के लिए तोड़कर 'एक' होने की कवायद में लगे रहते हैं। सिलसिला, केवल एक सिनेमा ही नहीं, बल्कि आने वाले दौर की संकेत भी थी।  देखा जाए तो सिलसिला चन्द मिनटों की कहानी न होकर, आज के समाज की हक़ीक़त भी है। सिलसिला ने रेखा को जहां नया मुकाम दिया, वहीं अमिताभ बच्चन के खाते में जमकर सवालिया उपल्बधियां भी आयीं। रेखा की ज़िन्दगी अपने आप में किसी सिनेमा की कहानी और उसमें अलग-अलग परिस्थितियों में निभाए गये किरदारों की भूमिका को सहेजे हुए है। हालांकि, मीडिया रिपोर्टों की मानें तो  हिंदी सिनेमा के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने कभी भी रेखा के साथ अपने अफेयर की ख़बरों पर हामी की मोहर नहीं लगाई। ये ख़बरें चर्चाओं में खोकर ही रह गयी थीं। जहां शहंशाह अपने वैवाहिक जीवन में खुशहाल और वैभवशाली पलों को जी रहे थे; वहीं रेखा की भी दो बार शादी हुई किन्तु दोनों शादियों की उम्र बेहद कम रही। फ़िर भी, रेखा ने न तो स्वयं को टूटने दिया और न ही परिस्थितियों के समक्ष अपने हौसलों को झुकने दिया। नब्वे के दशक में एक वक्त ऐसा भी आया जब चर्चित अभिनेत्री रेखा का नाम तब के युवा अभिनेता अक्षय कुमार के साथ जोड़ा जाने लगा था। हालांकि, इन ख़बरों में कोई सच्चाई नज़र नहीं आती और किसी ने इसे स्वीकार भी नहीं किया।


रेखा के जितने प्रशंसक थे, लगभग उसी अनुपात में उनके आलोचकों की भी संख्या थी। वे निडर होकर स्वतंत्र विचारों के साथ जीवन जीने में विश्वास रखती थीं। अब भी रेखा की जीवन-शैली में कोई ख़ास अन्तर नहीं आया है। 1996 में, अक्षय कुमार और रेखा की भूमिका वाली एक मूवी आयी थी 'खिलाड़ियों का खिलाड़ी'। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस की खिड़कियों पर कलेक्शन बटोरने से अधिक रेखा के साथ अक्षय कुमार की उड़ती हुई ख़बरों के लिए जाना जाता है।‌ उस मूवी में, अक्षय कुमार की सह अभिनेत्री की भूमिका में रहीं मस्त-मस्त गर्ल रवीना टण्डन का जादू भी रेखा की ग्लैमर को दबा न सका था। इस मूवी में रेखा ने माया नामक एक लेडी डॉन के रोल को प्ले किया था। ख़ास बात यह है कि तब रेखा की उम्र की अदाकारों का नाम युवा पीढ़ी के लिए पुराना हो चुका था। दर्शकों ने रेखा के इस रूप से प्रभावित होकर उन्हें एक बार फ़िर से सिर आंखों पर बिठाया। यह भी उतना ही कड़वा सच है कि तब महानायक अमिताभ बच्चन अपनी बादशाहत को गंवा चुके थे। नये-नये सितारों ने बॉलीवुड में दस्तक दे दिया था। उन सभी के बीच रेखा ने अपने लिए मार्ग ख़ोज लिया था।


रेखा न सिर्फ़ सिने स्क्रीन के पर्दे पर बल्कि निजी ज़िन्दगी में भी काफ़ी खुलकर जीना पसन्द करती थीं। उस समय रेखा को क़रीब छब्बीस-सत्ताइस साल हो गये थे बॉलीवुड में क़दम रखे हुए; फ़िर भी उन्हें ऐसा लग रहा था कि कुछ तो कमी है जिसको उन्होंने अभी तक पूरा नहीं किया है। उन्हें यह भी महसूस होने लगा था कि कहीं न कहीं कुछ तो बाकी है जिसे हासिल करने में वे अभी तक नाकाम रही हैं। बस, इसी ख़्याल से उन्होंने साल 1996 में, कामसूत्र और साल 1997 में आस्था जैसी मूवी में अपने बोल्ड किरदारों को दर्शकों के सामने रखा। रेखा के इस रूप से दर्शक तो दूर की बात है, ख़ुद बॉलीवुड भी अनजान था। लेकिन, रेखा ने बिना किसी विचारधारा का परवाह किए ' कामसूत्र ' में पूरी ईमानदारी के साथ अपने किरदार में जान डाल दिया था। उनके इस नये रूप को देखकर हर कोई अवाक रह गया था। कामसूत्र एक ऐसी मूवी थी जिस पर आरोप लगाया गया था कि उसमें उत्तेजक दृश्यों को फिल्माया गया है। यह मूवी पूरी तरह से विवादों में रही।‌ इस मूवी के लेखक, निर्देशक और स्क्रीनप्ले राइटर की भूमिका मीरा नायर ने निभाया था। रेखा को अच्छी तरह से मालूम था कि कामसूत्र विवादों में घिरेगी, और इसी विवाद के बाद उन्हें नई उपलब्धि मिलने वाली है। कामसूत्र में रेखा को देखने की उत्सुकता इस क़दर बढ़ गयी थी कि कामसूत्र से अधिक ख्याति रेखा को मिलने लगी थी। रेखा ने अपने करियर के उस मोड़ पर आकर कामसूत्र और आस्था जैसी मूवी में बोल्ड किरदारों को निभाने का फ़ैसला किया, जिस उम्र में अक़्सर अभिनेत्रियां अपने परिवार की देखभाल में व्यस्त हो जाती हैं। रेखा ने इन सबसे बेफ्रिक्र होकर अपने किरदार पर ध्यान केंद्रित किया। नतीज़ा यह हुआ कि एक बार फ़िर वे हिंदी सिनेमा में सबसे अधिक लोकप्रिय अभिनेत्री बन चुकी थीं।


कामसूत्र के अगले साल ही रेखा की एक और फिल्म आयी - आस्था। इस मूवी ने रेखा को न सिर्फ़ लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया, बल्कि रेखा को आलोचकों के बहस के विषय के रूप में खड़ा भी कर दिया।‌ यह मूवी व्यापारिक दृष्टि से सफल रही। इस फिल्म का निर्माण प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक बसु भट्टाचार्य ने किया था। रेखा ने 'आस्था' में एक ऐसी घरेलू महिला का किरदार अदा किया जो बाद में समाज की दूषित धारा में बहने लगती है। किसी भी सभ्य समाज में इस बात की इज़ाजत नहीं होती कि कोई शादीशुदा महिला 'आस्था' मूवी में रेखा द्वारा प्ले किए गये किरदार को वास्तविक जीवन में अपनाये। इस फिल्म में रेखा ने कई सारे उत्तेजक दृश्यों को संजीदगी से पर्दे पर उतारा था। रेखा के साथ अण्डररेटेड चरित्र अभिनेता ओमपुरी और नवीन निश्चल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। कामसूत्र और आस्था भले ही रेखा के फिल्मी करियर में मील का पत्थर साबित हुईं लेकिन, रेखा ने मीडिया की चर्चाओं सहित दर्शकों की तीखी प्रतिक्रियाओं का सामना भी करना पड़ा था। फ़िर भी, वे इन सब बातों को दरकिनार कर लगातार अपने काम के प्रति समर्पित रहीं। उनकी यही सक्रियता और सोच उन्हें हिंदी सिनेमा की 'मल्लिका' बनाता है।उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी जिस मंच पर वे खड़ी हो जाती हैं; हर एक नज़र बस उन्हें ही निहारने में व्यस्त हो जाती है। वे फ़ैशन और सेलेब्रिटी की सही मायने में पर्याय हैं। हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को कभी भी भूलाया नहीं जा सकता।


इतना ही नहीं था रेखा का फिल्मी करियर। इसके बाद भी उन्होंने मनोज वाजपेयी के साथ जुबैदा जैसी गम्भीर विषय पर बनी सिनेमा में काम किया। उसके बाद उन्होंने 'लज्जा, कृष और कोई मिल गया' में चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभाकर अपनी प्रतिभा और शोहरत का लोहा मनवाया। रेखा को बेस्ट अभिनेत्री का नेशनल अवॉर्ड और चार फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर अवॉर्ड्स भी मिल चुका है। सन 2010 में, हिंदी सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण योगदान की कद्र करते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया। बता दें कि पद्म श्री को भारत का चौथा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान समझा जाता है। एक्टिंग करने के अलावा रेखा सन 2012-2018 तक राज्यसभा की सदस्या भी रहीं। रेखा की कुछ बेहतरीन मूवीज़ की बात करें तो ख़ूबसूरत, सावन भादो, सिलसिला, उमराव जान, मुक़द्दर का सिकंदर, ख़ून भरी मांग, घर, कलयुग, उत्सव, सिलसिला, सुहाग, कामसूत्र, आस्था, कृष, कोई मिल गया और जुबैदा जैसी नामी फिल्में हैं।


यह बात बता देना सही होगा कि रेखा को इस बात से कोई भी फ़र्क नहीं पड़ता था कि ज़माना उनके बारे में क्या सोच रखता है। यही सोच उनकी सुन्दरता को संवार देता था। उन्होंने ज़माने की सख़्त नज़रिए को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उनका नाम जब कभी अमिताभ बच्चन से जुड़ता तो इससे सदी के महानायक को भी फ़ायदा मिलता। रेखा तो इन सबसे बे-परवाह आलोचकों द्वारा बनाई गयी कटाक्ष की रेखाओं को पार करने में ही रह जाती थीं। उन्हें इतनी कभी फुर्सत ही नहीं मिली होगी कि वे ज़ोर-शोर से सवाल खड़े करने वालों को पर रौब झाड़ सकें। उन्हें हर आरोप का ज़वाब हल्की सी मुस्कान से देने में आनन्द मिलता था। वे बला की ख़ूबसूरती की मिसाल थीं। रेखा ने ज़िन्दगी को अपने तरीके से जिया और युवाओं को इसके लिए प्रोत्साहित किया। रेखा आज भी बहुत ख़ूबसूरत हैं और हम उम्मीद करते हैं कि उनकी बेमिसाल अदाकारी को एक बार फ़िर से बड़े पर्दे पर देखने का मौक़ा मिलेगा। रेखा हिंदी सिनेमा की अविभाजित रेखा बन चुकी हैं। उस रेखा को पार करना नामुमकिन है।

Roshan Mishra 
reportermishraji90@gmail.com

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