गांव से उपराष्ट्रपति तक: जगदीप धनखड़ की प्रेरणादायक जीवन यात्रा

 Jagdeep Dhankhar's journey from village to Parliament

 
Jagdeep Dhankhar's journey from village to Parliament

How Jagdeep Dhankhar became Vice President of India 

आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शख्स की, जिन्होंने राजस्थान के एक छोटे से गांव से निकलकर भारत के उपराष्ट्रपति जैसे गरिमामय पद तक का सफर तय किया।
जी हां, हम बात कर रहे हैं श्री जगदीप धनखड़ की—जिनकी कहानी मेहनत, आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प की मिसाल है।

उनकी यात्रा बताती है कि अगर लक्ष्य साफ हो और हौसले बुलंद हों, तो कोई भी सपना हकीकत बन सकता है।

शुरुआती जीवन: संघर्षों से भरा लेकिन उम्मीदों से रोशन

जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव में एक साधारण जाट किसान परिवार में हुआ।
पिता गोकल चंद और माता केसरी देवी ने उन्हें परिश्रम और ईमानदारी के संस्कार दिए।

बचपन में उन्हें प्रतिदिन 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था, लेकिन इस कठिनाई ने उन्हें कभी हरा नहीं पाया।

शुरुआती शिक्षा किठाना और घरधाना के सरकारी स्कूलों में हुई। इसके बाद उन्होंने सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ में दाखिला लिया, जहां उनके भीतर नेतृत्व और अनुशासन की नींव पड़ी।

बाद में, उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से B.Sc और फिर LLB की डिग्री हासिल की।

वकालत को चुना, IAS ठुकराया: पहला साहसिक निर्णय

जगदीप जी ने IAS बनने का मौका ठुकरा दिया, क्योंकि उनका सपना था समाज में बदलाव लाना।
उन्होंने वकालत को अपना माध्यम बनाया और जल्द ही राजस्थान हाई कोर्ट में एक कुशल, निष्पक्ष और सम्मानित वकील के रूप में पहचान बना ली।

राजनीति में प्रवेश: 35 साल की उम्र में सांसद

1989 में उन्होंने जनता दल के टिकट पर झुंझुनू से लोकसभा चुनाव जीता और मात्र 35 साल की उम्र में संसद पहुंचे।
फिर 1990-91 में उन्होंने चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य राज्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।

1993 से 1998 तक वे राजस्थान विधानसभा के सदस्य भी रहे।
राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होंने विभिन्न दलों जैसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के साथ काम किया, लेकिन उनका निष्ठा हमेशा राष्ट्रहित में रही।

राज्यपाल की भूमिका और कड़ी चुनौतियाँ

2019 में, उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
इस दौरान, उन्होंने कई संवैधानिक चुनौतियों का सामना किया, खासकर राज्य सरकार के साथ उनके मतभेद कई बार सुर्खियों में रहे।

लेकिन उन्होंने हमेशा संविधान और लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन किया।

भारत के उपराष्ट्रपति: एक नई ऊंचाई

2022 में, भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया।
11 अगस्त 2022 को, उन्होंने भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और राज्यसभा के सभापति बने।

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने:

  • संसद में अनुशासन और गरिमा बनाए रखने की कोशिश की

  • भारत की संस्कृतिक विरासत और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहल की

  • युवा सांसदों को प्रोत्साहित किया और लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त किया

हाल ही में उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया है।

चुनौतियों का सामना: स्वास्थ्य और विपक्ष

उनका कार्यकाल आसान नहीं रहा।
विपक्ष के साथ टकराव, कई राजनीतिक दबाव और 2024 में आई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बावजूद, उन्होंने हर चुनौती का साहसपूर्वक सामना किया।

उन्होंने एक बार कहा था:

“मैं चुनौती के साथ जीता हूं।”

यह एक ऐसा वाक्य है जो उनके पूरे जीवन को परिभाषित करता है।

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