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Kunal Kamra satire on Police and T- series: क्या सरकार से भी नहीं डरते कुनाल कामरा, पुलिस के तीसरे बार समन भेजने पर बोले ये बात...
What did Kunal Kamra say about Eknath Shinde

अपनी comedy के साथ साथ politicians पर तंज कसने वाले कुणाल कामरा इन दिनों काफी चर्चा में है जो हंसाने के चक्कर में खुद विवादों की आग में कूद पड़े है। जी हां, स्टैंड-अप कॉमेडियन, पॉलिटिकल सटायर का बादशाह, और अब मुंबई पुलिस के लिए एक 'वांटेड' नाम! हाल ही में मुंबई पुलिस उनके घर समन लेकर पहुंची, और कुणाल ने इसे क्या खूब तंज के साथ 'समय की बर्बादी' करार दिया। तो क्या है पूरा मामला ? कॉमेडी, पुलिस, और ये तंज—क्या ये सब सच में समय की बर्बादी है, या इसके पीछे कुछ कुछ और ही राज है ? चलिए,बताते है आपको डिटेल में है,
कुणाल कामरा कोई नया नाम नहीं हैं। ये वो शख्स हैं जो अपने चुटकुलों से नेताओं की नींद उड़ा देते हैं। लेकिन इस बार मामला थोड़ा सीरियस हो गया। कुछ दिन पहले कुणाल ने अपने शो में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर एक पैरोडी गाना गाया। गाना था कुछ ऐसा—'दिल तो पागल है' की ट्यून पर, लेकिन बोल थे शिंदे को निशाना बनाते हुए। नाम तो नहीं लिया, लेकिन सबको पता था कि तीर किसकी ओर था। और बस, यहीं से बवाल शुरू हो गया।
शिवसेना के कार्यकर्ता भड़क गए। कुछ ने स्टूडियो में तोड़फोड़ की, कुछ ने धमकियां दीं, और फिर खार पुलिस स्टेशन में कुणाल के खिलाफ FIR दर्ज हो गई। पुलिस ने उन्हें समन भेजा—पहला, दूसरा, और अब तीसरा। लेकिन कुणाल कहां हार मानने वाले थे ? वो तो अपने अंदाज में मुंबई पुलिस पर ही तंज कस आए.
अब सुनिए क्या हुआ। 31 मार्च को मुंबई पुलिस की एक टीम कुणाल कामरा के दादर वाले घर पहुंची। मकसद था—उनसे पूछताछ करना। लेकिन कुणाल वहां थे ही नहीं! पुलिस को पता चला कि वो पिछले 10 साल से उस पते पर रहते ही नहीं हैं। अब ये तो मजेदार बात हो गई—पुलिस जिसे ढूंढ रही थी, वो वहां था ही नहीं।
और कुणाल ने मौके का फायदा उठाते हुए सोशल मीडिया पर लिख डाला—'एक ऐसे पते पर जहां मैं पिछले 10 साल से नहीं रहा, वहां जाना आपके समय और public resources की बर्बादी है। वाह! क्या तंज है! एक तरफ पुलिस समन भेज रही है, दूसरी तरफ कुणाल कह रहे हैं—'भाई, थोड़ा होमवर्क तो कर लो!' लेकिन सवाल ये है की क्या सच में ये समय की बर्बादी थी, या पुलिस का ये कदम एक मैसेज था ?
कुणाल कामरा की ये सीरियस कॉमेडी कोई नई बात नहीं है। वो पहले भी सरकार, नेताओं, और सिस्टम पर तंज कसते रहे हैं। लेकिन इस बार मामला हाथ से निकल गया। शिवसेना का कहना है कि कुणाल ने एकनाथ शिंदे का अपमान किया। दूसरी तरफ, कुणाल के सपोर्टर्स कहते हैं—ये तो बस व्यंग्य था, इसे इतना सीरियस क्यों लेना ?
यहां बड़ा सवाल ये उठता है—कॉमेडी की सीमा क्या है ? क्या एक कॉमेडियन को कुछ भी कहने की आजादी है, या फिर उसे भी limit में रहना चाहिए ? कुणाल ने तो साफ कर दिया कि वो माफी नहीं मांगेंगे। और यही बात उन्हें बाकियों से अलग बनाती है। लेकिन इसके साथ ही उनकी मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। मुंबई पुलिस ने उन्हें 31 मार्च तक पेश होने को कहा था, पर कुणाल उस दिन भी नहीं आए। फिर खबर आई कि उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट से ट्रांजिट जमानत मांगी, क्योंकि उन्हें लगता है कि मुंबई लौटते ही गिरफ्तारी होगी।"
मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुईं। एक तरफ पुलिस का समन, दूसरी तरफ टी-सीरीज भी कुणाल के पीछे पड़ गया। कुणाल ने अपने शो 'नया भारत' में एक और पैरोडी गाना गाया था, जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और सरकार की नीतियों पर तंज था। लेकिन टी-सीरीज ने इसे कॉपीराइट उल्लंघन बता दिया।
कुणाल ने फिर एक्स पर लिखा—'हैलो टी-सीरीज, कठपुतली बनना बंद करो। पैरोडी और व्यंग्य कानूनी तौर पर ठीक हैं।' उनका कहना था कि उन्होंने ओरिजिनल गाने के बोल या म्यूजिक का इस्तेमाल नहीं किया, फिर भी वीडियो पर पाबंदी लग गई। अब ये तो समझ नहीं आता—क्या टी-सीरीज को भी कुणाल की कॉमेडी से मिर्ची लग गई?"
"अब बात करते हैं हमारे दर्शकों की। सोशल मीडिया पर कुणाल कामरा का ये वीडियो वायरल हो चुका है। कोई कह रहा है—'कुणाल ने सच बोला, शिंदे को गद्दार कहने में क्या गलत है?' तो कोई कहता है 'ये कॉमेडी नहीं, अपमान है।'
तो दोस्तों, कुणाल कामरा का ये पूरा किस्सा कॉमेडी से लेकर पुलिस के समन तक हमें सोचने पर मजबूर करता है की क्या ये सब सच में समय की बर्बादी है, जैसा कुणाल कहते हैं? या फिर ये एक बड़े सवाल की ओर इशारा करता है हमारे देश में हंसी-मजाक की कितनी जगह है ?
कुणाल की हिम्मत को सलाम करना बनता है, क्योंकि वो डटकर अपने स्टैंड पर खड़े हैं। लेकिन साथ ही ये भी सच है कि इस हिम्मत की कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही है। अब आगे क्या होगा क्या कुणाल को जमानत मिलेगी ? क्या पुलिस उन्हें ढूंढ पाएगी? या ये सारा ड्रामा यूं ही खत्म हो जाएगा
सोशल मीडिया पर भी दो sides बन गए हैं। एक वो जो कुणाल को अभिव्यक्ति की आजादी का चैंपियन मानते हैं, और दूसरा वो जो कहते हैं कि नेताओं का मजाक उड़ाना ठीक नहीं। आप क्या सोचते हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताइए—क्या कुणाल सही हैं, या उनकी कॉमेडी सच में हद पार कर गई ?